Home > Archived > ज्योतिर्गमय

ज्योतिर्गमय

निष्ठा और सत्य

निष्ठा अविभाजित मन, अविभाजित चेतना का स्वभाव है। ईश्वर में तुम्हारी निष्ठा है, उसे जानने का प्रयत्न मत करो। आत्मा में तुम्हारी निष्ठा है, उसे जानने का प्रयत्न मत करो। जिसमें भी तुम्हारी निष्ठा है, उसे जानने की कोशिश न करो। बच्चे को मां में विश्वास है। बच्चा मां को जानने का प्रयत्न नहीं करता, उसे केवल मां में विश्वास है। जब तुममें निष्ठा है, जानने की क्या आवश्यकता है? यदि तुम प्रेम को जानने का विषय बनाते हो, प्रेम लुप्त हो जाता है. ईश्वर, प्रेम, आत्मा और निद्रा समझ के परे हैं। यदि तुम केवल विश्लेषण करते हो, संशय उत्पन्न होता है और निष्ठा खत्म होती है। जिसमें तुम्हारी निष्ठा है, उसे जानने की या विश्लेषण करने की चेष्टा न करो। विश्लेषण दूरी पैदा करता है, संश्लेषण (संकलन) जोड़ता है। निष्ठा संकलन है, जानना विभाजन। निष्ठा और विश्वास में फर्क है, विश्वास हल्का होता है, निष्ठा ठोस, अधिक सबल। हमारे विश्वास बदल सकते हैं मगर निष्ठा अटल होती है। निष्ठा के बिना चेतना नहीं। यह दिये की लौ के समान है। निष्ठा है चेतना की शान्त, स्थायी प्रकृति। निष्ठा चेतना का स्वभाव है।
सत्य वह है जो बदलता नहीं। अपने जीवन को देखो और पहचानो कि वह सब जो बदल रहा है, सत्य नहीं। इस दृष्टि से देखने पर तुम पाओगे कि तुम केवल असत्य से घिरे हुए हो। असत्य को पहचानने पर तुम उससे मुक्त होते हो। जब तक तुम असत्य को पहचानोगे नहीं, उससे मुक्त नहीं हो सकते। स्वयं के जीवन के अनुभव तुम्हें तुम्हारे असत्यों की पहचान कराते हैं। जैसे-जैसे जीवन में परिपक्वता आती है, तुम पाते हो कि सभी कुछ असत्य है- घटनाएं, परिस्थितियां, लोग, भावनाएं, विचार, मत-धारणाएं, तुम्हारा शरीर-सभी असत्य है।
और तभी सच्चे अर्थ में सत्संग (सत्य का संग) होता है। मां के लिए बच्चा तब तक असत्य नहीं है जब तक बालिग नहीं हो जाता। बच्चे के लिए मिठास असत्य नहीं और किशोर के लिए सैक्स असत्य नहीं। ज्ञान यदि शब्दों तक सीमित है, तो वह असत्य है। परंतु अस्तित्व के रूप में यह सत्य है। प्रेम भावना के रूप में सत्य नहीं, अस्तित्व के रूप में यह सत्य है।

Updated : 2 April 2013 12:00 AM GMT
Next Story
Top