Home > Archived > जनमानस

जनमानस

शौक से नहीं होता कोई बागी-विद्रोही


चम्बल संभाग के भिण्ड -मुरैना देशभर में दस्यु (बागियों) के लिए मशहूर हैं। यह समय की विडम्बना ही कहा जा सकता है। दस्युगर्भा चम्बल की घाटी के क्षत्रियों को फिल्म वालों ने भी खासा बदनाम किया है। जो निश्चिय ही चम्बलांचल के निवासीयों के खिलाफ नाइंसाफी है। बागी शौक से कोई नहीं होता, हालात ऐसे बन जाते हैं कि बन्दूक उठानी ही पड़ती है। उदाहरण के तौर पर पानसिंह तोमर ग्राम भिड़ोसा का एक सिपाही जो अंतर्राष्ट्रीय एथीलेट होते हुए भी सैना से वापस आने पर बागी होने के लिए विवश होना पड़ा अपने हक के लिए लुटा पिटा और अंतत: बागी हो गया। तिमांगसु धुलीया ने फिल्म बनाकर निश्चय ही एक अंतर्राष्ट्रीय फिल्म बनाकर एक चम्बल के सपूत और देश के भावी एथलीट को उसकी ठीक पहिचान दिला दी है। निश्चय ही फिल्मकार को किसी के व्यक्तिगत जीवन के साथ पुलिस एवं दंबगों की दादागिरी आदमी को बागी और विद्रोही बना देती है। निश्चित ही देश की कानून व्यवस्था चुस्त नहीं है। पुलिस अंग्रेजी सिस्टम पर काम कर रही है। अंग्रेजों पुलिस को अपने हितों की रक्षा के लिए तैयार किया था सो आज हमारी पुलिस छुटभैय्या व्यक्ति को तो प्रताडि़त करती है और दवंगों के तलबे चाटकर चापसूली करती है। कल एक खबर पढ़ी थी होटल बोल्गा में कुछ पुलिस अफसरों को खाना नहीं खिलाने की वजह से हंगामा किया गरीब गार्ड को थप्पड़ मार दिए क्यों? मैनेजर को को क्यों नहीं मारा गया उक्त व्यवस्था के चलते हमारा सिस्टम भोले चम्बल के सपूतों को बागी बनाने को बाध्य करता है।

कुवर वी.एस. विद्रोही, ग्वालियर


Updated : 29 March 2013 12:00 AM GMT
Next Story
Top