Home > Archived > ज्योतिर्गमय

ज्योतिर्गमय

कितने मन


ऐसा लगता है कि आदमी के पास कई मन हैं या कहा जा सकता है उसके कई हिस्से हैं। कम्पार्टमेंट हैं। सब अलग-अलग सोचते हैं और आदमी परेशान, अशान्त हो जाता है या कहा जा सकता है कि आदमी परेशान होता है तो उसके मन के अलग-अलग हिस्से से अलग-अलग विचार उठते हैं। एक मन कहता है ये काम करो बस कर ही डालो तो दूसरा मन कहता है कि इस काम में हाथ नहीं डालना नुकसान में रहोगे कहते हैं ऐसे में आत्मा की आवाज सुननी चाहिए पर क्या आत्मा कोई आवाज देती है? क्योंकि मन ही सोचता है, बोलता है। विवादास्पद स्थिति में ला देता है तब आदमी को जो करना होता है वह नहीं कर पाता। यह स्थिति इसीलिए बनती है कि आपका मन अशान्त और परेशान रहता है। इसे कैसे नियंत्रण में लाया जाए इसी के लिए इंसान को कभी निर्विचारता या अचिंतन में जाना चाहिए कभी तो उसे भी आराम चाहिए। आखिर थक जाता होगा बेचारा। भले ही वह सूक्ष्म है, दिखाई नहीं देता है पर काम तो करते रहता है। उसे कभी उसके हाल पर छोड़ देना चाहिए। जैसे कोई बच्चा जब किसी के सामने होता है बहुत उछल-कूद, शैतानी, तोडफ़ोड़ करता है पर उसे यदि अकेला छोड़ दिया जाए तो वह शांत हो जाता है। मन भी एक अशान्त, चंचल बच्चा ही तो है। उसकी तरफ ज्यादा ध्यान न दो तो वह अपने आप शांत हो जाएगा। कहते हैं मन कभी सोता नहीं। चेतन, अवचेतन, सुप्त कई प्रकार के मन हैं। सबके अलग-अलग काम हैं। अलग-अलग महत्व है। हमें सब में एकता स्थापित करनी चाहिए ताकि हम चैन से जी सकें। चेतन मन में जो विचार उठते हैं वे भी कार्यान्वित होते हैं। यदि आपने अस्वस्थता के बारे में सोचा तो आप वाकई अस्वस्थ हो जाएंगे और यदि आपका अवचेतन मन सोचता है कि आप अस्वस्थ नहीं हैं या हैं तो ठीक हो जाएंगे तो आप स्वस्थ होने लगेंगे। हम हमारे मन की शक्ति का बहुत कम उपयोग करते हैं या कर पाते हैं। मन की शक्ति अपरम्पार है पर हम कभी उसका सही ढंग से उपयोग करना सीखें तो सही। हम बहुत उथले मन से सोचते हैं इसीलिए कहीं पहुंच नहीं पाते वरना मन सब कुछ दे सकता है। दौलत, सेहत, प्रतिष्ठा, दीर्घायु जीवन, सुखी, शांत जीवन। जब हम मांगेंगे नहीं तो मिलेगा कैसे? अवचेतन मन में भगवान का वास है जो सब कुछ देने में समर्थ है। कहा है मांगोगे मिलेगा।
खटखटाओ दरवाजे खुल जाएंगे। सब कुछ देने वाला, ऊपर आसमान पर बैठा है। इतने बड़े विश्व को चला रहा है पर सबका ख्याल रखता है। वह सबसे बड़ा प्रबंधक है उसके यहां देर है अंधेर नहीं है। पर हम थोड़ी सी असफलता या अप्राप्ति में बेचैन हो जाते हैं।
उसे कोसने लगते हैं और अपना काम और बिगाड़ लेते हैं। अपने कर्मों को नहीं देखते। विचार भी कर्म है। सुविचार, सकारात्मक विचार सत्कर्म और कुविचार, कुभाव, नकारात्मक विचार कुकर्म है। सबका फल मिलता है। जैसा बोएंगे वैसा ही काटेंगे। इसीलिए कहा है कि बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय। तो हमें क्या करना चाहिए? हमें अच्छे विचारों से शुरुआत करनी चाहिए।
यह पूरा विश्व उसी पर चल रहा है। कितने लोग कितने कैसे-कैसे विचार। कहते हैं कि विचार कभी नष्ट नहीं होते तो अब हमें सोचना है कि कहां से प्रारंभ करें और पाएं अपनी मनचाही चीज, सफलता, सेहत, दौलत आदि आदि। बस यही मेरा संदेश है।

Updated : 23 March 2013 12:00 AM GMT
Next Story
Top