जनमानस
रोएं नहीं सोचें
बजट इसका संबंध जीवनचर्या से गाढ़ा है और कभी कभी घर का कर्ता अथवा पूरा परिवार विचलित दुखित हो जाता है। यह संभव है, परन्तु इसको कम करके महंगाई से थोड़ा बहुत बचा जा सकता है। इसके लिए पहले भी गंभीर होना पड़ेगा। मनुष्य इच्छुक हो तो बजट पर अंकुश लगाकर सुखी पारिवारिक जीवन व्यतीत कर सकता है। और यह सामूहिक सम्मति से ही संभव है कि घर में क्या अनिवार्य है और क्या नहीं। उदाहरण के तौर पर हर कमरे में एक टीवी, हर सदस्य के लिए स्कूटर, हरेक की भोजन में भिन्न रुचि, हरेक की भिन्न सोच। उदाहरण के तौर पर किसी का दो सौ रुपए रोजाना पेट्रोल में खर्च होता है, परन्तु वह चाहे तो शेयर ऑटो में अपना कार्यालय जा सकता है, बाजार में सौदा खरीद सकता है। किसी का रोजाना पचास रुपए सेल फोन पर खर्चा होता है, परन्तु वह इस्तेमाल में कटौती कर सकता है। रोजाना घर में तीन सब्जियों के स्थान पर एक से ही काम चलाया जा सकता है और पसंद की सब्जी दूसरे दिन भी खाई जा सकती है। महंगे पहनावे बाहर पहनकर घर में सस्ते पहनावे इस्तेमाल किए जा सकते हैं। साज-सज्जा, संवार-निखार की सामग्रियों में भी कटौती की जा सकती है। विशेष पर्व अथवा संदर्भ के अवसर पर सामूहिक सम्मति से सामान्य ढंग को अपनाया जा सकता है। कमरों में उचित ढंग से बिजली की कटौती भी की जा सकती है।
बजट पर अंकुश और जीवनचर्या पर संतुलन दोनों ही खुशी जीवन जीने के उपाय हैं। जब मनुष्य अनावश्यक वस्तुओं का पराधीन हो जाता है तब जीवनयापन महंगा हो जाता है। अतएव उन चीजों से बचने की सोचें, जो जरुरी नहीं। किसी की देखादेखी में आमदनी को नजर अंदाज करके आधुनिकता-भौतिकता का शिकार न बनें। अनाप शनाप खर्च करके न बजट को कोसें न छाती पर मुक्का मारें। बल्कि जीवन का जीना सामान्य बनाएं, अनावश्यक ईच्छाओं पर अंकुश लगाएं और आध्यात्मिक ढंग से जीवन यापन करें। न बजट को खामखा बढ़ाने की सोचें, न ही महंगाई को रोना रोएं। बजट के गुलाम नहीं, बादशाह बनें बादशाह।
जवाहरलाल 'मधुकर चेन्न्नै