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जनमानस

लय में लौटी टीम इंडिया


बार्डर-गावस्कर ट्राफी के पहले टेस्ट मैच में जिस तरीके से भारत ने आस्टे्रलिया को पराजित किया उससे देश विदेश में बैठे भारतीय प्रशंसकों को पुन: मुस्कुराने का अवसर प्रदान किया। पिछली टेस्ट श्रंखला में जिस तरह से भारत को इंग्लैंड के हाथों अपनी ही धरती पर हार का मुंह देखना पड़ा था उसके बाद क्रिकेट समीक्षकों से लेकर करोड़ों क्रिकेट प्रेमियों के मन में संशय था कि क्या भारत आस्टे्रलिया के विरुद्ध अच्छा प्रदर्शन कर पाएगा? टेस्ट मैच में शुरुआती झटकों के बाद जिस जिम्मेदारी से मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर ने पारी को संभाला उसने भारत को एक बार फिर मैच में वापसी का अवसर दिया। अवसर को भुनाते हुए विराट कोहली और कप्तान धोनी ने जिस सूझ-बूझ के साथ आस्टे्रलिया के सामने इतना बड़ा लक्ष्य खड़ा किया उसने भारतीय गेंदबाजों को खुलकर गेंदबाजी करने की छूट दी जिसके परिणाम स्वरूप पहली पारी की तरह दूसरी पारी में भी आस्टे्रलियाई बल्लेबाज भारतीय फिरकी के जाल में कुछ इस तरह फंसे की शुरू से लेकर अंत तक उससे बाहर नहीं निकल पाए। अश्विन ने अपनी विविधता से कंगारूओं को उलझा कर रखा जिसके परिणाम स्वरूप कोई भी बल्लेबाज उन पर हावी नहीं हो पाया। आशा करते हैं कि इसी प्रदर्शन को दोहराते हुए भारत अपनी जीत का क्रम जारी रखेगा और करोड़ों क्रिकेट प्रेमियों को जश्न मनाने का अवसर देगा।

अंशुल वाजपेयी, ग्वालियर

सुरक्षा श्रेणियों को समाप्त करना उचित

यह आश्चर्यजनक तथ्य है कि विशिष्ट व्यक्तियों की सुरक्षा में औसतन 3 जवान लगे रहते हैं, वहीं 800 नागरिकों की सुरक्षा में एक जवान कार्यरत है। गृह मंत्रालय द्वारा यह सुरक्षा प्रदान की जाती है। यह जनता के पैसे की बर्बादी तो है ही, बल्कि भारत के नागरिकों का अपमान भी है।
किसी नेता, अफसर आदि विशिष्ट या अतिविशिष्ट व्यक्ति के दौरे के दौरान रास्ते का बंद कर देना या रास्ता रोकना भी उचित नहीं कहा जा सकता है। लोकतंत्र में जनता का शासन होता है और संप्रभुता जनता में निहित होती है, किन्तु वर्तमान में यह देखा जा रहा है कि युक्तियुक्त भेदभाव के नाम पर नागरिकों के साथ भेदभाव किया जा रहा है।

पंकज वाधवानी, इन्दौर

Updated : 27 Feb 2013 12:00 AM GMT
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