संपादकीय

रामसेतु का विध्वंस बड़ा षड्यंत्र
तरस आता है केन्द्र सरकार में बैठे नेताओं की बुद्धि पर यह नेता कभी भाजपा और संघ परिवार के शिविरों में आतंकवाद के प्रशिक्षण की बात करते हैं, कभी हाफिज और अफजल जैसे आतंकवादियों को आदर सूचक शब्दों से अलंकृत करते हैं तो कभी भगवान राम के अस्तित्व को ही नकार देते हैं। कई बार तो इनके इस तरह के बयानों से इनकी विश्वसनीयता ही संदिग्धता के घेरे में आ जाती है। सहसा विश्वास ही नहीं होता कि भारत जैसे महान लोकतंत्र की सत्ता पर आसीन चेहरे इस कदर ओछी मानसिकता वाले भी हो सकते हैं। अब रविवार को रामसेतु के बारे में सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में जो कुछ कहा गया वह बेहद अफसोसजनक होने के साथ-साथ चिंताकारक भी है। यह इस बात का संकेत भी देता है कि केन्द्र सरकार ने पिछले समय में की गई तमाम गलतियों से कोई सबक नहीं लिया। जरा याद कीजिए पूर्व में सरकार ने रामसेतु को तोडऩे वाली सेतु समुद्रम परियोजना को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में जो हलफनामा दिया था उसमें भगवान राम को काल्पनिक पात्र करार दे दिया था। इसके बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके तमाम परिवार संगठनों सहित भाजपा ने जोरदार विरोध दर्ज कराया था। इतना ही नहीं रामभक्त सड़कों पर उतर आए थे और तीन घंटे के देशव्यापी चक्काजाम और विरोध प्रदर्शन के बाद सरकार घबरा गई थी। विरोध बढ़ता देख सरकार को वो हलफनामा वापस लेना पड़ा था। इस सम्पूर्ण घटनाक्रम में सरकार की खासी किरकिरी हुई थी। अब एक बार फिर केन्द्र सरकार इस संवेदनशील मामले पर गैर जिम्मेदाराना व्यवहार प्रदर्शित करने पर उतारू नजर आती है। उसने सुप्रीम कोर्ट में दिए अपने ताजा बयान में जहां अपने पूर्व के बयान को सही ठहराने की कोशिश की है। वहीं सेतुसमुद्रम परियोजना को आगे बढ़ाने के भी संकेत दिए हैं। सरकार ने उस पचौरी समिति की रिपोर्ट को भी नामंजूर कर दिया है जिसमें साफ तौर पर यह कहा गया है कि यह परियोजना आर्थिक और पर्यावरण की दृष्टि से व्यवहारिक नहीं है। साफ है सरकार इस मुद्दे पर टकराव का रास्ता अख्तियार करती नजर आ रही है। इस बात के संकेत भी मिलने लगे हैं। सरकार के ताजा रवैये पर भाजपा समेत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और तमाम धार्मिक, सामाजिक संगठनों में बेचेनी साफ दिखाई दी। भाजपा ने तो यहां तक कहा है कि रामसेतु में किसी भी तरह की छेड़छाड़ को हिन्दू समाज कतई सहन नहीं करेगा पार्टी ने केन्द्र सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि वह पचौरी समिति की सिफारिशों को नजरअंदाज कर इस परियोजना पर आगे न बढ़ें, क्योंकि यह मामला करोड़ों हिन्दुओं की आस्था और भावना से जुड़ा है। भाजपा द्वारा दी गई चेतावनी हो या संघ परिवार की चिंता एक दृष्टि से पूरी तरह सही कही जा सकती है। सवाल केवल रामसेतु से जुड़ा नहीं है। इसके पीछे करोड़ों हिन्दुओं की आस्था और सांस्कृतिक धार्मिक प्रतीकों की सुरक्षा जुड़ी है। जिस रामसेतु के अस्तित्व और पौराणिकता को अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा स्वीकार चुकी है और उसके चित्र प्रकाशित कर चुकी है। केन्द्र सरकार द्वारा उसे तोडऩे की योजना को हरी झंडी देना आखिर कैसे स्वीकार किया जा सकता है। इतना ही नहीं हिन्दुओं की आस्था और इस देश की आत्मा स्वरूप भगवान राम के अस्तित्व को नकार कर केन्द्र सरकार आखिर क्या करना चाहती है? निश्चित ही इसके पीछे एक बहुत बड़ा हिन्दू विरोधी षड्यंत्र है। इसे कतई बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी देखा जाए तो रामसेतु को तोड़े जाने के बाद भारत का दक्षिणी क्षेत्र और पर्यावरण खतरे में पड़ जाएगा। इस बात के भी शोध हो चुके हैं कि जिस स्थान पर रामसेतु स्थित है वहां दुनिया का सबसे परिष्कृत थोरियम मौजूद है। यदि यहां सेतु समुद्रम परियोजना साकार होती है तो यह स्थान दुनियाभर के समुद्री जहाजों के आवागमन के लिए खुल जाएगा, परिणाम स्वरूप यहां स्थिति थोरियम जो कि परमाणु ऊर्जा में उपयोग होता है वह खतरे में पड़ सकता है। अत: रामसेतु का तोड़ा जाना जहां धार्मिक दृष्टि से गलत है वहीं वैज्ञानिक दृष्टि से भी देश के लिए खतरनाक है।