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जनमानस

गाय का मांस ही क्यों


केन्द्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय ने अपनी ओर से एक बुकलेट जारी की है उक्त बुकलेट में कहा गया है कि खून बढ़ाने के लिए गाय का मांस खाएं। मंत्रालय ने अपनी बुकलेट जारी तो कर दी लेकिन उसने इस विषय पर हानि और लाभ पर गौर नहीं किया। हमारा राष्ट्र कुछ वर्षों से धर्मनिरपेक्ष बना है। उसके पूर्व यह अपने धार्मिक सिद्धांतों पर चलता रहा है। गाय भारतीय चिंतन और धर्म की मूल धुरी है। बहुसंख्यक समाज की पूज्यनीय मां से भी बढ़कर उच्च मां है। जिसका हिन्दू ही नहीं सभी वर्ग और धर्म के लोग दूध पीकर अपनी शारीरिक और मानसिक वृद्धि करते हैं। बड़े दुर्भाग्य का विषय है कि राजनैतिक स्वार्थी और कुर्सी की धृतराष्ट्रीय सोच अच्छे और बुरे के बीच भेद नहीं कर पा रही है। केन्द्र में बैठी वोटों की सौदागर कांग्रेस को सिर्फ सत्ता चाहिए वह सत्ता के बगैर जिंदा नहीं रह सकता उसी सरकार का अल्पसंख्यक मंत्रालय गाय के मांस को खून बढ़ाने वाला बता रहा है। एक और गाय के पूजक दूसरी और उसके मांस के खाने वाले आखिर इन दोनों के बीच पटरी कैसे बैठेगी सुर और आसुरी वृत्ति साथ-साथ कैसे चल पाएगी। यह बेहद चिंता का विषय है। हालांकि गाय को मारने के कई आध्यात्मिक दोष हैं और वैज्ञानिक कारण भी गाय के पक्ष में जाते हैं। उसका मारना उसके मांस को खाना निंदनीय तो है ही चिकित्साय अनुपालन में भी गाय का मांस खाना वर्जित ही है। ऐसी स्थिति में अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय एवं अन्य अल्पसंख्यक संस्थान क्यों बार-बार गाय के मांस को खाने पर बल देते हैं। देश का राष्ट्रवादी मुसलमान और बुद्धिजीवी अल्पसंख्यक देश में अशांति फैलाने वाले इस प्रकरण पर गौर करं और कांग्रेस के इस स्वार्थ भरे मंसूवे की समय रहते हवा निकाल दें। तभी राष्ट्र का कल्याण होगा।

मुकेश घनघोरिया, घांटीगांव

सुरक्षा गार्डस स्टेटस सिंम्बल बन गया है


आज नेता, धनपतियों, कथित सैलीब्रिटीज अपनी सुरक्षा में निजी बाउंसर, सुरक्षा गार्ड, एवं पुलिसकर्मियों को रखते हैं। ऐसा करना अपनी शान समझते हैं। देश में 250 करोड़ रुपए अकेली दिल्ली के नेताओं पर सरकारी धन खर्च होता है। आम आदमी के साथ घटना होने पर पुलिस बल कम होने का रोना पुलिस विभाग रोता है। वी.आई.पी. सुरक्षा महत्वपूर्ण है। आम आदमी की नहीं स्वामी (जनता) सड़कों पर कुत्ते की मौत मरे कोई गम नहीं सेवक(नेता) जी की सुरक्षा में जेट प्लस कमाण्डोज की दर्जन भर सिपाही तैनात रहने जरुरी है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने वी.आई.पी. सुरक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान लगाकर उक्त मुद्दे पर सकारात्मक विचार चिंतन को जगाया है। कि वास्तव में किसे सुरक्षा मिले किसी ने, आम आदमी की जान से वीआईपी की जान आधिक महत्वपूर्ण होती है।

कुवर वी.एस. विद्रोही, ग्वालियर




Updated : 22 Feb 2013 12:00 AM GMT
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