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जनमानस

भव्यता की भेंट चढ़ी दिव्यता

वर्तमान समय में सम्पूर्ण समाज भव्यता की चकाचौंध में दीवाना हो गया है। इसमें आम आदमी से लेकर लोक सेवक और साधु संत भी दिव्यता को छोड़ भव्यता का दामन थाम लिया है। ऐसी ही कई संत देश में है। जो कार्पोरेट शैली में जीवन जी रहे है। फिर चाहे आशा राम बापू हो अथवा गोल्डन बाबा बेशकीमती आभूषणों से लदे फंदे इतावली मॉडलो के साथ किसी फिल्म सितारे की तरह कुंभ मेले में प्रकट होकर मीडिया के फोटो शूट कराया। क्या वास्तव में यही धर्म के ठेकेदार है। संतों का चरित्र सो सादगी सौम्यता का परिचायक होना चाहिए। लेकिन आज हम देखते है। संतों का आचरण विशुद्ध व्यापारिक हो गया है। जो प्रवचन करने मात्र के लाखों रुपए लेते है। और भक्तों की भी कैटेगिरी होती है। जो सबसे ज्यादा धनी वह बड़ा भक्त माना जाता है। आम आदमी को चरण स्पर्श तक करने का मौका नहीं दिया जाता। बड़े-बड़े महानगरों में कार्पोरेट कार्यालयों की तरह बड़े-बड़े आश्रम स्थापित कर रखे है। जहां साहित्य, दवाएं, मोमवत्ती, अगरवत्ती अन्य सामग्री का उत्पादन और विक्रय किया जाता है। मुफ्त में सेवा नहीं बल्कि शुद्धता की गारण्टी के नाम पर महंत बेचा जाता है। क्या? यही संतों का काम रह गया है।
कुवर वी.एस. विद्रोही, ग्वालियर

Updated : 21 Feb 2013 12:00 AM GMT
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