नारी सशक्तीकरण से दूर हो सकती है लैंगिक असमानता : राष्ट्रपति

नारी सशक्तीकरण से दूर हो सकती है लैंगिक असमानता : राष्ट्रपति
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नई दिल्ली | राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाकर और शासन व्यवस्था में उनकी भूमिका में सुधार लाकर ही लैंगिक असमानता खत्म की जा सकती है। मुखर्जी ने कहा, "महिलाओं का आर्थिक सशक्तीकरण, पर्याप्त सामाजिक और भौतिक बुनियादी ढांचे का निर्माण और शासन व्यवस्था में महिलाओं की भूमिका में सुधार लाने जैसे कार्यो में सक्रिय हस्तक्षेप के माध्यम से ही हमारे देश में लैंगिक असमानता को मिटाया जा सकता है।" सेल्फ एम्पावर्ड वूमेंस एसोसिएशन (एसईडब्लयूए) की इला रमेश भट्ट को वर्ष 2011 के लिए इंदिरा गांधी शांति, नि:शस्त्रीकरण एवं विकास पुरस्कार अर्पण समारोह को संबोधित करते हुए मुखर्जी ने जोर देते हुए कहा कि नारी सशक्तीकरण लैंगिक समानता की कुंजी है और राष्ट्र निर्माण में नागरिकों की ओर से उन्हें पूरी भागीदारी की छूट मिलनी चाहिए।
उन्होंने कहा, "हमारी अर्थव्यवस्था में यदि महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम होगा तो इसे न केवल विवेकहीनता माना जाएगा, बल्कि सामाजिक प्रगति की दृष्टि से इसे घातक भी माना जाएगा।"
राष्ट्रपति ने आंकड़े भी साझा किए और कहा कि कुल लिंगानुपात 'निराशाजनक' है और महिलाओं की साक्षरता दर काफी पीछे है।
मुखर्जी ने कहा, "हमारी कुल आबादी में 48.5 फीसदी महिलाएं हैं। वर्ष 2001 और 2011 के दौरान कुल लिंगानुपात हालांकि बढ़ा है। वर्ष 2011 में प्रति 1,000 पुरुषों पर 940 महिलाएं थीं। यह आंकड़ा निराशाजनक है और इससे पता चलता है कि वास्तविक समानता के लक्ष्य से हम अभी दूर हैं। इला भट्ट को पुरस्कार प्रदान करते हुए मुखर्जी ने कहा, "विकासशील देशों में स्वयं सहायता समूहों को नारी सशक्तीकरण में सहायक अत्यंत प्रभावकारी उपायों में से एक माना गया है।"
यह पुरस्कार प्रत्येक वर्ष ऐसे व्यक्ति या समूह को दिया जाता है जिसने आजादी को व्यापक आयाम देने और मानवतापूर्ण कार्यो को प्रोत्साहित करने की दिशा में अपने रचनात्मक प्रयासों के लिए जाना जाता है।

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