अग्रलेख

माजुली द्वीप का मराठी शिक्षक
- मा.गो. वैद्य
ब्रह्मपुत्र के पात्र में रेत-मिश्रित मिट्टी जमा होकर निर्माण हुए माजुली द्वीप बहुत ही सुंदर है। इन द्वीपों पर छोटे-बड़े 10-12 गांव है। नारियल-सुपारी के बगीचे, बेंत (पतले और कड़े बांस) के वन, बड़े-बड़े वृक्षों पर खिले ऑर्किड, पानी से भरी जगह पर चावल की खेती और बाढ़ से सुरक्षा के लिए गहराई का भाग छोड़कर बांस पर, रास्ते के किनारे बेंत से बनाए घर हैं! यहां हर घर में आपका आदर के साथ स्वागत होगा। महाराष्ट्र से आए है, ऐसा बताते ही तुरंत प्रश्न पूछा जाता है, ''रवि सर कैसा है? फिर हर घर में यही प्रश्न आपका पीछा करता है। तब आप भी सोचते होंगे, ''कौन हैं ये रवि सर? माजुली में हर आदमी इस रवि सर के बारे में इतनी आस्था से क्यों पूछ-तांछ करता है? और इस रवि सर के बारे में महाराष्ट्र के सब लोगों को जानकारी होनी ही चाहिए, ऐसी उनकी अपेक्षा क्यों है?
ये रवि सर है - रविन्द्रनाथ देवेन्द्रनाथ सावदेकर। नासिक जिले के चांदवड गांव के। देवेन्द्रनाथ सावदेकर गुरुजी के एकमात्र पुत्र स्वामी विवेकानंद के तत्वज्ञान से प्रेरित होकर रविन्द्रनाथ ने भारत परिक्रमा में भाग लिया। कन्याकुमारी के विवेकानंद केन्द्र में 'आचार्य का प्रशिक्षण पूर्ण किया। केन्द्र ने उन्हें नागालैंड के डायांग में जाने के लिए कहा। अकेला लड़का इतने दूर, हिंसाग्रस्त भाग में जाएगा, इस विचार से मां का हृदय विचलित हुआ। लेकिन 'एक माह जाकर देखता हूं ऐसा कहकर सन् 2000 में रविन्द्रनाथ सावदेकर ने घर छोड़ा। डायांग के अतिदुर्गम प्रदेश की शाला में एक-दो माह नहीं करीब दो वर्ष काम करने के बाद माजुली द्वीप पर नई शुरु होने वाली शाला में उनकी मुख्याध्यापक पद पर नियुक्ति हुई। जोर्एहाट में के निमाटी घाट पर सर सुबह आठ बजे पहुंचे। ब्रह्मपुत्र के किनारे सुबह बिताने के बाद, सायंकाल छ: बजे सर माजुली द्वीप पर पहुंचे। कमलाबारी गांव की सुंदरता देखकर खो गए।
53 विद्यार्थी और 2 शिक्षक किराए की छोटी सी इमारत के साथ सर की शाला शुरु हुई। लेकिन नया प्रदेश नया वातावरण होने के कारण सर के सामने अनेक प्रश्न थे। उन प्रश्नों का हल लोगों की सहायता के बिना निकलना कठिन था। उसमें भी एक समस्या थी। गांव के लोग हिंदी या अंग्रेजी नहीं जानते थे और सर को असमिया भाषा नहीं आती थी। फिर प्रश्नों का हल कैसे ढूंढे?
सर ने असमिया भाषा सीखना आरंभ किया। मराठी और आसामी की समानता का उन्हें अच्छा उपयोग हुआ। धीरे-धीरे टूटी-फूटी आसामी में सर ने गांववालों के साथ संवाद आरंभ किया। गांव में लोगों के साथ संवाद बनाने के लिए सर रोज सायंकाल गांव में चक्कर लगाते। उनके आने का समय लोगों को याद हो गया। वे सर की राह देखने लगे और फिर सावदेकर सर गांव के 'रवि सर बन गए। रवि सर ने शाला के लिए गांव के बाहर की जगह हासिल की। अब शाला किराए की इमारत से अपनी खुद की जगह में गई थी। लेकिन यह जगह थी बेंत का जंगल और झाडियों से घिरी दलदल। लोगों की सहायता से सर ने जगह साफ की। वहां सिमेंट कंक्रीट की इमारत बनाना एक आव्हान ही था। वहां की दलदली और भुरभुरी जमीन में कंक्रीट का स्ट्रक्चर बनाते, तो भूजल का स्तर कब बदलेगा इसकी कोई गारंटी नहीं थी। द्वीप पर निर्माण कार्य के लिए पत्थर, गिट्टी नहीं थी और द्वीप की रेत भी निर्माण काम के लिए उपयुक्त नहीं थी। द्वीप पर सीमेंट कहां से और कैसे लाएं, यह भी प्रश्न था. लेकिन रवि सर ने प्रयास किया। 'माजुली हितैषी बंधु नाम का पालक संगठन बनाया और उस संगठन की सहायता से काम शुरु किया। 15 ट्रक पत्थर नाव से लाए। यह थे नदी के गोल पत्थर। पत्थर तोडऩे के लिए आदमी नहीं मिलते थे। पत्थर तोड़ते समय उड़े हुए टुकड़ों से सिर और आंखों पर घाव होने के कारण काम करने वाले लोग भाग जाते थे। फिर सर ने बड़े गॉगल लाए। वह गॉगल लगाकर मजदूर पत्थर तोडऩे लगे। लगातार बारिश, प्रतिकूल जलवायु और चारों ओर पानी ही पानी इस स्थिति में कड़ी मेहनत कर सर ने शाला की इमारत बनाई।
2004 में सर ने अहमदनगर की पूर्वा नाम की युवती से विवाह किया। पूर्वा असम में ब्रह्मपुत्र द्वीप पर रहने के लिए तैयार थी। पूर्वा दीदी भी रवि सर के साथ शाला में पढ़ाने लगी। रवि सर के समान ही उन्होंने भी स्वयं को असम की प्रतिकूल परिस्थिति के अनुकूल ढाल लिया है।
ब्रह्मपुत्र में बाढ़ आने के बाद माजुली द्वीप का अधिकांश भाग पानी में डूब जाता है। गांव के लोगों का एक-दूसरे के साथ का और अन्य गांवों के साथ का भी संपर्क टूट जाता है। उस समय रवि सर नाव से घूमते हुए गांव वालों की सहायता करते। सन् 2008 में इतनी बाढ़ आई कि नाव से दिखने वाले घरों के छप्पर देखकर अनुमान लगाना पड़ता था कि हम किस गांव में है। लेकिन उस स्थिति में भी रवि सर छोटी नाव लेकर दिन-रात हर प्रकार से गांव वालों की मदद कर रहे थे।
माजुली द्वीप के इस प्रतिकूल वातावरण में काम करने के लिए क्या कोई शिक्षक तैयार होगा? लेकिन रवि सर कहते है, ''मैं महाराष्ट्र में नौकरी करता तो शायद एक अच्छा शिक्षक बन भी जाता। लेकिन यहां माजुली द्वीप पर लोगों के सांस्कृतिक बंधु देश के साथ मजबूती से बने रहे इसलिए हम जो काम कर रहे हैं, वह नहीं कर पाता।
आज रवि सर असम के डिब्रूगढ़ में स्थित विवेकानंद केन्द्र के विद्यालय के प्राचार्य है। माजुली द्वीप छेाड़े हुए उन्हें दो वर्ष हो गए हैं। लेकिन आज भी द्वीप का हर छोटा-बड़ा अत्यंत भावुक होकर पूछता है, ''रवि सर कैसा है?
(लोकसत्ता, 9 जुलाई 2012 से साभार)
अमेरिका में गीता पठन
व्हँकुअर. अमेरिका में का एक शहर. वह यूएसए में मतलब संयुक्त राज्य संस्थान में है या कनाडा में यह मुझे पता नहीं. शायद, इन दो देशों की सीमा पर होगा।
लेकिन वह बात महत्व की नहीं। महत्व की बात है वहां के 'वीणा संस्कृत फाऊंडेशन संगठन ने ली गीता पठन की स्पर्धा। स्पर्धा का नाम था 'श्रीमद्भगवद्गीता श्लोकोच्चारण प्रतियोगिता. 34 लड़के-लड़कियों ने इसमें भाग लिया। पांच ने संपूर्ण गीता सुनाई। व्हँकुअर के ही नवनीत कौशल और सुचिता रामन् परीक्षक थे।
सात वर्ष के सिद्धार्थ गणेश ने गीता का संपूर्ण सातवां अध्याय सुनाया। सुब्रमण्यम् जनस्वामी, 8 वर्ष की निकिता शिवराम ने 15 वां अध्याय, और श्रद्धा कौशिक ने 12 वां अध्याय सुनाया। 25 वर्ष से अधिक आयु के लोगों ने भी पाठ प्रकट किया। लेकिन उनका समावेश स्पर्धकों में नहीं था।
इस स्पर्धा में पहला पारितोषिक 6 वर्ष की कुमारी श्रेयांसी वाला ने हासिल किया। सात वर्ष के विष्णुगुप्त दीक्षित और छ:वर्ष की वेदांशी वाला को संयुक्त दूसरा क्रमांक मिला. तीसरा क्रमांक पांच वर्ष के उदय गणेश ने हासिल किया।
एक गांव की कहानी
तामिलनाडु के कोमतुर जिले के इस गांव का नाम है 'कालीथिंबम्Ó। गांव में अभी भी बिजली नहीं। फिर अन्य सुविधा तो बहुत दूर की बात है।
गांव में 'अराली जनजाति की बस्ती है। गांव के लोग आजीविका के लिए कोमतूर और इरोडा शहरों में जाते हैं और उल्लेखनीय यह कि साथ में पत्नी भी ले आते है। अन्य जाति की वधू लाने में इस जनजाति के लोगों को अभिमान अनुभव होता है। गांव में 300 परिवार हैं। उनमें से 40 परिवारों की बहुएं अन्य जनजाति से है। उनमें से कुछ दलित भी है।
इस चत्मकार के पीछे एक कारण है। पहले कभी, कुछ लड़कों ने अपनी जनजाति से बाहर की लड़कियों से प्रेम किया, तब लड़कों के घरवालों ने उनके विवाह का कड़ा विरोध किया। इस कारण अनेकों ने आत्महत्या की। तब उनके घर के लोगों की आंख खुली; और उन्होंने ऐसे विवाहों को मान्यता दी। अब तो ऐसे विवाहोत्सव में पूरा गांव शामिल होता है। इन विवाहों के समय गांव के लोग शपथ लेते हैं कि हम ऐसे प्रेमविवाहों का विरोध नहीं करेंगे। लड़की के परिवार में ऐसे विवाह का विरोध हुआ, तो लड़के के पक्ष के लोग उन्हें समझाते हैं। अपनी जनजाति की लड़कियों ने जनजाति से बाहरी युवक के साथ विवाह किया, तो उसे भी गांव वालों की सहमति होती है।