ज्योतिर्गमय
भिक्षावृत्ति व्यवसाय न बने
मनुष्यता का यह सबसे बड़ा अपमान है कि समर्थ होते हुए भी व्यक्ति दूसरों के आगे व्यक्तिगत व्यय के लिए हाथ पसारे।
स्वाभिमान, आत्मसम्मान को कष्ट और अभाव सहकर भी सुरक्षित रखा जाना चाहिए. सामान्यत: यही नीति है कि मनुष्य काम करके गुजारा करे। दूसरों के आगे हाथ पसार अपने आत्म सम्मान को न गिराये। भिक्षा व्यवसाय पर निर्भर लोगों में लाखों लोग साधु ब्राह्मणों का वेश बनाकर विचरण करते हैं और लाखों अपने को दरिद्र-असमर्थ बताते हैं. भजन के लिए जरूरी नहीं कि भिक्षाजीवी बनकर ही उसे किया जाये। अपनी आजीविका से निर्वाह करते हुए भी भजन का उद्देश्य पूरा हो सकता है। प्राचीनकाल में साधु-ब्राह्मण भिक्षा मांगते थे। उन्होंने अपना सारा समय समाज के कल्याण हेतु समर्पित किया।
उनकी निज की न कोई सम्पत्ति होती थी, न आकांक्षा। भजन और स्वाध्याय भी वे इसलिए करते थे कि इन माध्यमों से विनिर्मित उनका प्रखर व्यक्तित्व लोकमंगल के लिए अधिक उपयोगी व समर्थ सिद्ध हो सके। वे लोग भिक्षा इसलिए मांगते थे कि आजीविका उर्पाजन में उनका बहुमूल्य समय नष्ट न होकर समाज के काम आये। ऐसे लोकसेवियों की संख्या कम ही होती थी, उनके पुनीत कार्य को देखकर लोग भिक्षा देते हुए अपने को धन्य मानते थे। उन दिनों हजारों-लाखों लोकसेवी, साधु-ब्राह्मणों के सत्प्रयत्नों से समाज हर दृष्टि से सुविकसित और समुन्नत बनता था. तब साधु-ब्राह्मणों की संख्या वृद्धि, राष्ट्रीय सौभाग्य माना जाता रहा।
आज परिस्थितियां उल्टी हो गई हैं।प्राचीनकाल जैसे साधु-ब्राह्मण अब उंगलियों पर गिने जा सकते हैं। अधिसंख्य परिश्रम से बचने के लिए यह धंधा अपनाये हुए हैं। क्या यह उचित है कि इतनी बड़ी जनसंख्या इस प्रकार जनता पर भार बनी बैठी रहे और अपनी उपयोगिता सिद्ध करने के लिए नाना प्रपंच तथा मूढ़ विश्वास फैलाती हुई लोकमानस को विकृत करती रहे। इसी प्रकार उन भिखारियों का प्रश्न है, जो काम करने में सर्वथा असमर्थ न होते हुए भी भिक्षा पर उतर आये हैं।
मनुष्य थोड़ी बहुत शारीरिक असमर्थता के बीच भी कुछ न कुछ श्रम और उपार्जन कर सकता है। इच्छा हो तो काम भी मिल सकता है और राह भी। राष्ट्र की आर्थिक और नैतिक कमर तोड़ देने वाले इस भिक्षा-व्यवसाय के अन्त के लिए हर विचारशील व्यक्ति को सजग होना चाहिए। कुपात्रों को दान देना इस दुष्प्रवृत्ति को फलने-फूलने का अवसर देता है. हर उदार मनुष्य को विवेक से काम लेना चाहिए और देते समय यह जांच-परख लेना चाहिए कि उसका पैसा किस प्रयोजन में लगेगा।