ज्योतिर्गमय
दुनिया न रुकी है न रुकेगी
यह दुनिया का नियम है चलते रहना बाढ़ आए या अन्य प्राकृतिक विपदाएं, सुनामी, भूकम्प, ज्वालामुखी का ताण्डव, नक्सलियों का तांडव, अन्य आतंकवादियों द्वारा नरसंहार, युद्ध, बीमारियां जो भी हुए हों या हो रहा है, दुनिया तो चलती रहती है। देश पर आक्रमण किया उन्हें सदियों गुलाम बनाए रखा, राज्य किया फिर छोड़कर भागे पर सब चलता रहा। दुनिया चलाने वाला कोई और है वही चलाता है पर मन में कभी प्रश्न उठता है कि इतने जघन्य, हृदयविदारक, कार्य या घटनाएं क्यों होती हैं। प्राकृतिक विपदाओं की छोड़ें तो शायद पचास प्रतिशत घटनाओं को इंसान ही अंजाम देता है। विश्व युद्ध थोपे गये। कई देशों ने दूसरे पड़ोसी देशों पर आक्रमण किये, या अंग्रेजों की तरह व्यापार के बहाने आकर सब कुछ अपनी बादशाहत में ले लिया। शताब्दियों दुनिया के कितने देशों पर राज्य किया। कहावत थी कि अंग्रेजी शासन में कभी सूर्यास्त नहीं होता क्योंकि दुनिया के कितने देशों पर उनका आधिपत्य था। आज की स्थिति क्या है, आप को मालूम है। ज्यादा विस्तार में बताने की जरूरत नहीं है। इंसान ने सभ्यता के साथ-साथ अपनी सीमा का विकास किया पर यह दुनिया चलती रहती है। गुलामी कई तरह की होती है शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक और बौद्धिक। पहले शहंशाहों के गुलाम हुआ करते थे जिन्हें वे खरीदते थे। कैसी सभ्यता थी। भेड़-बकरी की तरह इंसान बिकता था। वह खरीदने वाले की हर वक्त गुलामी करता था। जैसा वह चाहे करना पड़ता था। यह उसकी नियति थी। हमारा कहना यही है कि दुनिया रुकती नहीं चलती रहती है। कभी यह प्रश्न हमारे देश में उठा था कि नेहरू के बाद कौन पर नेहरूजी के बाद लालबहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी और अन्य कई राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री आये आपातकाल लगा समाप्त हुआ। देश चलता रहा। यह तो हुई बड़ी बात। पर एक परिवार मेंं यही होता है कई बार कमाने वाला केवल एक आदमी दुनिया से चला जाता है, तकलीफ होती है। बहुत मुश्किल से गुजारा होता है पर धीरे-धीरे सब ठीक होता जाता है ऐसा हजारों परिवार में हुआ है होता है पर दुनिया चलती है। तकलीफ से ही सही। घटनाओं में बच्चे अनाथ हो जाते हैं उन्हें या तो अनाथाश्रमों में जगह मिलती है या कोई उन्हें गोद ले लेता है। आजकल वृद्धाश्रमों की भी बाढ़ आई हुई है या एक बहुत बड़ी सामाजिक विसंगति है। बच्चों के होते हुए वृद्धों को आश्रमों में रहना पड़ता है। पर दुनिया चलती है विसंगतियों के बावजूद रुकता कुछ नहीं। चलते रहना चाहिए। कहावत है चलती का नाम गाड़ी। तो आदमी का जीवन कितना लम्बा होता है नवजात शिशु से लेकर एक शतायु जीवन तक आदमी की उम्र होती है। उसी में सब देखना है, करना है, भोगना है और चले जाना है चार कंधों पर। दुनिया रहती है तो हमें चाहिए कि जीवन को संवारें, सजाएं सुगंध फैलाएं, बस यही मेरा संदेश है।