भारतीय महिला हॉकी टीम के लिए संतोषजनक रहा साल

नई दिल्ली। भारतीय महिला हॉकी टीम के लिए यह साल संतोषजनक रहा। लड़कियों ने इतिहास रचते हुए जूनियर विश्व कप में पहले कांस्य पदक समेत तीन तमगे भारत की झोली में डाले। महिला टीम ने जुलाई अगस्त में जर्मनी के मोंशेंग्लाबाख में हुए जूनियर विश्व कप में इंग्लैंड को पेनल्टी शूटआउट में 3-2 से हराकर पहली बार कांस्य पदक जीता। इसके अलावा सितंबर में कुआलालम्पुर में जूनियर एशिया कप में भी कांसा अपने नाम किया और नवंबर में जापान में संपन्न एशियाई चैम्पियंस ट्रॉफी में रजत जीतकर वर्ष 2013 को भारतीय महिला हॉकी के लिये यादगार बनाया। हालांकि दिल्ली में फरवरी में विश्व हॉकी लीग में शीर्ष रही महिला टीम सेमीफाइनल में हार गई।
वहीं दूसरी तरफ, इस साल पुरूष टीम बड़ी जीत के लिये तरसती रही। पुरूष टीम ने एकमात्र खिताबी जीत सितंबर में मलेशिया में हुए जोहोर कप में दर्ज की। पुरूष टीम हालैंड के रोटरडम में हुए सेमीफाइनल में बुरी तरह हारकर अगले साल हालैंड में होने वाले विश्व कप में सीधे जगह नहीं बना सकी। इसके कारण कोच माइकल नोब्स की भी रवानगी हुई। भारत को बाद में ओशियाना क्षेत्र से उसे विश्व कप 2014 में बैकडोर प्रवेश मिल गया। मार्च में हुए अजलन शाह कप और नवंबर में जापान में एशियाई चैम्पियंस ट्रॉफी में भारत छह टीमों में पांचवें स्थान पर रहा। वहीं इपोह में सितंबर में हुए एशिया कप में फाइनल में कोरिया से हारकर रजत पदक जीता। दिल्ली में दिसंबर में हुए जूनियर विश्व कप में मेजबान भारत शर्मनाक दसवें स्थान पर रहा। इस साल की शुरूआत में फ्रेंचाइजी आधारित हॉकी इंडिया लीग के जरिये खेल में एक नये युग का आगाज हुआ। हालांकि आईपीएल की तर्ज पर हॉकी इंडिया लीग के जरिये खिलाड़ियों की जेबें जरुर भर गयीं। 

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