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ज्योतिर्गमय

भूल मानो, अपराध बोध से बचो



सामान्यत: हम अपनी भूलों को उचित ठहराते हैं ताकि अपराधबोध न हो पर इससे काम नहीं बनता। अपराधबोध टिका रहता है।
तुम अपराधबोध का प्रतिरोध करते हो और वह बना रहता है और फिर कहीं अन्तर की गहराई से व्यवहार को विकृत कर देता है। तुम्हें अपने द्वारा की गई भूलों के लिए अपराधी महसूस करने का पूरा पूरा अधिकार है। पूर्ण रूप से दुखी बन जाओ पूरे एक मिनट, दस मिनट या पच्चीस मिनट के लिए।
उससे अधिक नहीं। और फिर उससे बाहर निकल जाओगे। भूल को सही साबित करने की बजाय उसे स्वीकार करो। औचित्य सिद्ध करना बहुत सतही है क्योंकि यह अपराधबोध को नहीं हटाता। बल्कि अपराध का और भी अधिक बोध कराता है। अपने अपराधबोध के साथ सौ प्रतिशत रहो। वह पीड़ा ध्यान की तरह बन जायेगी और तुम्हें अपराधबोध से भारमुक्त करेगी।
दूसरों की भूलों के पीछे अभिप्राय मत देखो। जब कोई कुछ गलत करता है तो अक्सर हम सोचते हैं कि ऐसा उसने जानबूझकर किया। परंतु एक विशाल दृष्टिकोण से देखने पर हम पाते हैं कि एक अपराधी वस्तुत: स्वयं एक शिकार भी है। हो सकता है वे अशिक्षा, अज्ञान, अत्यधिक तनाव या संकीर्ण मनोवृत्ति का शिकार हों। इनके रहते किसी से भूल हो सकती है।
यदि एक प्रबुद्ध व्यक्ति दूसरों में गलतियां देखता है तो करुणा के साथ उन्हें उन भूलों से उबरने में सहायता करता है परंतु एक मूर्ख दूसरों की भूलों पर खुश होता है और सारे संसार के समक्ष उसकी सगर्व घोषणा करता है। एक बुद्धिमान व्यक्ति सदैव दूसरों की प्रशंसा करता है।
आत्मा का उत्थान करना विवेक है। जब तुम केंद्रित होते हो, हमेशा अपने चारों ओर सभी का उत्थान करने को तत्पर रहते हो। अपने मन को सहेजो। जब मन स्थापित होता है, तुम चाहो तो भी गलत नहीं कर सकते। आत्मज्ञान से भय, क्रोध, अपराधबोध, अवसाद जैसी सभी नकारात्मक भावनाएं तिरोहित हो जाती हैं।

Updated : 17 Dec 2013 12:00 AM GMT
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