जनमानस

ईमान के मसीहा


मनमोहन ईमानदार, एंटनी ईमानदार और अब नए ईमानदार केजरीवाल का उदय हुआ है। इन ईमान के मसीहाओं से फिर क्यों नहीं ईमानदार राष्ट्र की अनुगूंज सुनाई देती, क्यों नहीं इनकी ईमानदारी से जनता के हित पूरे होते। र्ईमानदार मनमोहन की पहली आवश्यकता महंगाई और भ्रष्टाचार को रोकना होनी चाहिए थी परन्तु वह तो महंगाई और भ्रष्टाचार बढ़ाने के कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं। भारत को पाक और चीन से सुरक्षित रखना एंटनी के रक्षामंत्रालय का सबसे बड़ा फर्ज होना चाहिए था परन्तु वे इस कर्तव्य या दायित्व की ईमानदारी में कहां खरे उतरे हैं। अरविन्द केजरीवाल चुनावी चंदे में विदेशी सहायता का खुलासा तो दे रहे हैं पर किन शर्तों पर यह सहायता ली जा रही है इसकी ईमानदारी का परिचय कहां दिया है। सेवाभावी अन्ना की केजरीवाल से ताजा टकराहट इस बात का प्रमाण है कि केजरीवाल की राजनीति में भी उनके कहे अनुसार नीति का राज नहीं है। इसके अलावा केजरीवाल राजनीतिक हठ के अपने प्रयोग का परिचय जनता को दे चुके हैं। उनका कहना है कि दिल्ली में यदि त्रिशंकु चुनावी परिणाम आते हैं तो वे न किसी को बहुमत देंगे और न लेंगे क्या ऐसे राजनीतिक हठ में दोबारा चुनाव की आशंका का खतरा वो नहीं समझते।

हरिओम जोशी, भिण्ड

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