ज्योतिर्गमय
श्रद्धा की महत्ता
श्रद्धा का मानवीय जीवन में विशेष महत्व है। यह भाव एक बच्चे का अपने माता-पिता के लिए और शिष्य का अपने गुरु के प्रति देखा जा सकता है। जीवन की नींव भी सही मायने में श्रद्धा-आस्था और विश्वास के मजबूत स्तंभों पर टिकी होती है। श्रद्धा स्व के सीमित क्षेत्र से ऊपर उठाती है, दूसरों के प्रति सहयोग करने की प्रेरणा देती है। जीवन को किसी भी दिशा में सफलता दिलाने के लिए श्रद्धा एक पायदान का कार्य करती है। श्रद्धा जिस किसी के मन में होती है वह विश्वास और आस्था से परिपूरित होता है। यह आस्था जब सिद्धांत व व्यवहार में उतरती है तब निष्ठा कहलाती है। श्रद्धा मुक्ति का मार्ग है। भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं, यदि दान या जप-तप श्रद्धा सहित नहीं किया गया तो वह असत है। वह न ही इस लोक में लाभदायक है और न ही मरने के बाद। इससे सीख मिलती है कि हम हम जो भी कार्य करें, श्रद्धापूर्वक करें। मृत्यु के बाद हम पितरों का संस्कार करते हैं, परंतु यदि वह भी श्रद्धापूर्वक नहीं किया गया तो व्यर्थ है।
सभी विचारों व कर्र्मों में श्रद्धा प्राण स्वरूप है। श्रद्धा हृदय में सत्य की अनुभूति करने की प्रेरणा देती है। त्याग व समर्पण के साथ श्रद्धा का विशेष महत्व है। श्रद्धा का अंकुर जगाने के लिए हृदय पवित्र व शुद्ध होना चाहिए। श्रद्धा ही है मां पार्वती। श्रद्धा टूटे हृदय को जोडऩे के साथ-साथ प्रगति का मार्ग भी प्रशस्त करती है।