Home > Archived > ज्योतिर्गमय

ज्योतिर्गमय

चरित्र

चरित्र ही इंसान की सबसे बड़ी पूंजी है। चरित्र मतलब आपका व्यवहार आपकी बातें आपके काम उनमें कितना साम्य है। कहीं आप बोलते कुछ हैं, करते कुछ और हैं तो यह गलत है। चरित्र की बड़ी व्याख्या हो सकती है। एक होता है व्यक्तिगत चरित्र की आप अंदर से कैसे हैं, क्या सोचते हैं, और आपकी कथनी और करनी में फर्क तो नहीं है। कहते कुछ हैं, करते कुछ और हैं। सोचते क्या हैं यह तो भगवान ही जाने। आदमी को हमेशा अच्छी बातें सोचनी चाहिए। बहुजन हिताय बहुजन सुखाय। एक होता है स्वान्त: सुखाय अपने सुख के लिए। पर आदमी को स्वयं सच्चा सुख तभी मिलेगा जब वह सही दिशा में सोचेगा। सकारात्मक सोचेगा। विचारों का आपके मन पर, शरीर पर प्रभाव पड़ता ही है।
यदि विचार का सृजन सही दिशा में होगा तो आगे सब कुछ ठीक होगा। आप बोलेंगे सही करेंगे सही यही चरित्र कहलाता है। यह पूरा विश्व विचारों की ही देन है जो भी अच्छा-बुरा घटता है वह सब विचारों से संचालित होता है। कहते हैं आदमी के कई चेहरे होते हैं। चरित्र भी व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय पर यदि इनमें एकरूपता रहती है तो वह पूजनीय हो जाता है वरना निंदनीय।
एक पिक्चर आई थी शीर्षक था-आदमी के हजार चेहरे। उसमें एक ही कलाकार कई-कई पात्रों को जीता है। बहुत मुश्किल काम है पर यह कला है। कला में विविधता हो सकती है पर हम और आप स्टेज या सिनेमा के कलाकार नहीं हैं। साधारण इंसान हैं। कलाकार कई पात्रों को जी सकता है, वह एक्टिंग का कमाल है पर आम आदमी को यह कई रोल वाली जिंदगी जीना बहुत मुश्किल है पर लोग जीते हैं। बड़े लोग कहते हैं कि आदमी को अंदर-बाहर एक होना चाहिए। जो बोलते हैं, करते हैं उसके पीछे विचार होने चाहिए। हम कोई राजनेता तो नहीं हैं जिनके कई चेहरे होते हैं। मंच पर कुछ, गोष्ठियों में कुछ, परिवार में कुछ। पता नहीं लोग इतनी क्लिष्ट जिंदगी कैसे जी लेते हैं। स्वयं कष्ट पर क्या कहें आज का यही राजनैतिक चरित्र है। आप सीधी सादी जिंदगी जिएं अपना चरित्र आइने और पानी की तरह साफ रखें। यही आपके हमारे हित में है। जीवन में जितनी सादगी, सरलता रहेगी उतने ही हम शांत और खुश रहेंगे। पेचीदगी में आदमी स्वयं फंस जाता है। मुंशी प्रेमचंद की एक कहानी है-बड़े भाई। बड़े भाई छोटे भाई को हमेशा डांटा करते थे कि तुम्हारा पढ़ाई में मन नहीं लगता, तुम खेलकूद में यादा ध्यान देते हो अपने आप को सुधारो। दोनों मैदान में खड़े होकर बातें करते रहते हैं इतने में एक पतंग कट कर मैदान में आती है। बड़े भाई बातों को भूलकर पतंग का धागा लूटने के लिए दौड़ पड़ता है। ऐसा बढिय़ा व्यंग्य है कि पढ़ते ही बनता है। ऐसा हो गया है हमारा चरित्र। इसे सुधारें स्वयं सुखी रहें औरों को सुख दें, सुख पहुंचाएं।

Updated : 3 Oct 2013 12:00 AM GMT
Next Story
Top