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ज्योतिर्गमय

भगवान से कुछ पाना चाहते हैं तो इस बात को हमेशा याद रखें 


हम लोग भगवान से हमेशा कुछ न कुछ मांगते रहते हैं। हमारे मांगने का कभी अंत नहीं होता। कई बार हमारी मांगी मुराद पूरी होती है तो कई बार ऐसा लगने लगता है कि प्रार्थना बेकार जा रही है, भगवान हमारी सुन ही नहीं रहा है। जबकि सच यह है कि भगवान हर किसी की सुनते हैं और सभी की झोली भरने की कोशिश करते हैं।
लेकिन जब झोली भरी हो या आपको भरी झोली को खाली करने का तरीका नहीं मालूम हो तो भगवान यही सोचता है कि इसे देने का भी क्या फायदा। अगर आप वस्तुओं का उपयोग समुचित प्रकार से करेंगे तो निश्चित ही आपको आपकी मांगी गई चीज मिल जाएगी। लेकिन अगर आप उपयोग करना ही नहीं जानेंगे तो वस्तु लेकर करेंगे क्या। इस संदर्भ में एक रोचक कथा है।
भगवान बुद्ध के एक शिष्य ने कहा, प्रभु! मुझे आपसे एक निवेदन करना है। बुद्ध ने उसकी ओर देखा जैसे कह रहे हों कि पूछो। शिष्य ने कहा कि मेरे वस्त्र पुराने हो चुके हैं। अब ये पहनने लायक नहीं रहे। मुझे नए वस्त्र चाहिए। बुद्ध ने शिष्य के वस्त्रों की ओर देखा। वस्त्र सचमुच बिलकुल जीर्ण हो चुके थे।
बुद्ध ने दूसरे शिष्य से नए वस्त्र लाने के लिए कहा। कुछ दिनों बाद बुद्ध अपने उस शिष्य के निवास पर पहुंचे। कुशलक्षेम के बाद उन्होंने पूछा,? तुम्हें और कुछ तो नहीं चाहिए? शिष्य ने कहा कि मैं इन वस्त्रों में बिलकुल आराम से हूं। मुझे और कुछ नहीं चाहिए।
अब बुद्ध और शिष्य का संवाद शुरू हुआ जो इस प्रकार था। बुद्ध- अब जबकि तुम्हारे पास नए वस्त्र हैं तो तुमने पुराने वस्त्रों का क्या किया?
शिष्य- मैं अब उसे ओढ़ता हूं।
बुद्ध- ओढऩे के पुराने वस्त्रों का क्या किया?
शिष्य- जी मैंने उसे खिड़की पर लगा दिया है।
बुद्ध- तो क्या तुमने पुराने परदे फेंक दिए?
शिष्य- जी नहीं, मैंने उसके चार टुकड़े किए। रसोई में उनका इस्तेमाल चूल्हे पर से गरम पतीलों को उतारने के लिए करता हूं।
बुद्ध- तो फिर रसोई के पुराने कपड़ों का क्या किया?
शिष्य- अब मैं उन्हें रसोई साफ करने के लिए प्रयोग करूंगा।
बुद्ध- तो रसोई के पुराने वस्त्रों का क्या किया?
शिष्य- प्रभु वह अब इतना तार-तार हो चुका था कि उसका कुछ नहीं किया जा सकता था। मैंने उसका एक-एक धागा अलग करके बातियां तैयार कर लीं। उन्हीं में एक से कल रात आपके कक्ष को प्रकाशित था।
बुद्ध शिष्य के इन उत्तरों से संतुष्ट हो गए। वे प्रसन्न थे कि उनका शिष्य वस्तुओं को बर्बाद नहीं करता और उसमे समझ है कि उनका उपयोग किस तरह से किया जा सकता है। कथा सुना कर संत ने कहा इन दिनों जब प्राकृतिक संसाधन दिन-प्रतिदिन कम होते जा रहे हैं तो हमें कोशिश करनी चाहिए कि चीजों को बर्बाद ना करें और अपने छोटे छोटे प्रयत्नों से इस धरती को सुरक्षित बना कर रखें।

Updated : 28 Oct 2013 12:00 AM GMT
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