ज्योतिर्गमय
चेतन तत्व
संसार परिवर्तनशील है। इसमें कोई किसी का नहीं है। आप स्वयं में अकेले थे, हैं और रहेंगे। जगत में संबंध बनते, बिगड़ते रहते हैं। स्मरण करें, जब आप प्रथम बार विद्यालय में भेजे गए थे। दाखिला होने के बाद उस विद्यालय में कितने लोगों से मिले। संयोग बना और संबंध बनने लगे। कालांतर में ये संबंध धीरे-धीरे आगे बढ़ते गए। बाद में आप काम संभालते हैं और फिर नए-नए संबंध बनने लगते हैं और पुराने टूटते जाते हैं। जगत में रहते हुए संयोग बनते रहते हैं और बिगड़ते भी जाते हैं। जब संयोग बना, तब भी आप थे और जब वियोग हुआ, तब भी आप ही थे। उसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ। आप वहीं के वहीं रहे। आपका अस्तित्व किसी के साथ संबंध बनने व समाप्त हो जाने के अधीन नहीं है। संयोग बनना व वियोग होना तो सांसारिक प्रपंच मात्र है। हां, संसार में जीवित रहने पर लोगों से संबंध बनते अवश्य हैं, परंतु यह संदेहरहित है कि सत्य स्वरूप आप अकेले थे और अकेले ही रहेंगे। मनुष्य का पारिवारिक संबंध जिसे अति आत्मीय व रक्त का संबंध कहा जाता है और जो सांसारिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण व मजबूत माना जाता है, वह संबंध भी स्थायी नहीं हैं। इस सत्यता का प्रकटीकरण तभी हो पाता है, जब कोई सबसे निकटतम प्रियजन इस संसार से विदा हो जाता है। तब मनुष्य के मस्तिष्क को जोरदार झटका लगता है। सच्चाई प्रकट हो जाती है कि इस जगत में कोई किसी का नहीं है। सभी मार्ग में सफर करते हुए यात्री मात्र हैं। जैसे-जैसे यात्रा आगे बढ़ती जाती है, नए-नए यात्री मिलते जाते हैं।
ढका हुआ सत्य पूर्ण रूप से प्रकट होकर सामने आ जाता है। वह ठहर कर सोचने लगता है कि अरे मैंने तो सोचा था कि संसार से विदा हो जाने वाले से हमारा कभी संबंध विच्छेद होगा ही नहीं, यह केवल मेरा मिथ्या भ्रम ही था। लोग बदलते हैं, समाज बदलता है, दुनिया बदलती है, मनुष्य का समय व आयु भी परिवर्तित हो जाती है, परंतु आपका चेतन स्वरूप वही रहता है। आप पूर्ण सत्यस्वरूप चेतन तत्व के अंश हैं, जिसका कभी परिवर्तन नहीं होता।