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जनमानस

सरकार मीडिया शास्त्री जी को भूल गए


11 जनवरी को शास्त्री जी की पुण्य तिथि थी लेकिन दूरदर्शन और समाचार पत्रों में इस बारे में न कोई विचार सुनने को मिले और न कोई पासपोर्ट जितना छोटा फोटो ही देखने को मिला। उनकी समाधि पर भी केवल उपराष्ट्रपति की उपस्थिति का समाचार मिला। ऐसी अपेक्षा क्यों और क्या वह राष्ट्रहित में है विशेषकर 3-4 दिन पहले ही पाक सेना ने 2 भारतीय सैनिकों हत्यी की है। इस सम्बन्ध में यह भी उल्लेखनीय है कि नेहरू, इंदिरा, राजीव गांधी की जयंती और पुण्यतिथियों पर अखबारों में केन्द्र सरकार के कई मंत्रालय अलग अलग विज्ञापन छपवाते हैं जिनमें इन नेताओं के आदम कद फोटो भी छपते हैं जबकि इन सभी नेताओं पर तरह तरह के आरोप लगे हैं। नेहरू जी कश्मीर और चीन समस्या के लिए व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार थे लेकिन उन्होंने खुद स्तीफा नहीं दिया। केवल कृष्णा मेनन का स्तीफा दिलवाकर अपनी गद्दी सलामत रखी हालांकि सिर्फ एक रेल दुर्घटना होने पर शास्त्री जी ने स्तीफा देने का उदाहरण उनके सामने था इंदिरा गांधी ने न्यायालय द्वारा अपना चुनाव निरस्त किए जाने पर स्तीफा नहीं दिया बल्कि अपने हित में संविधान संशोधन तक कर डाला। राजीव पर घोटाले के आरोप लगे। ऐसे आरोप शाी जी पर नहीं लगे। बल्कि ताशकंद समझौते की प्रतिक्रिया पर उन्होंने अपने प्राणों का भी उत्सर्ग कर दिया। ऐसे नेता की कांग्रेस सरकारों द्वारा की गई उपेक्षा शर्मनाक है।

लालाराम गांधी, ग्वालियर

आशाराम बापू बनाम बहुरुपिया


आजकल आशाराम बापू बनाम नाशकाम डाकू सुर्खियों में हैं। अपने अर्नगलप्रलाप के कारण सारी संत समाज को बदनाम कर रहे हैं। वे निश्चित ही कार्पोरेट व्यापारी बहूरुपिया है। अकूत धन दौलत जमा करके अब राजनैतिक भाषा में अनगर्ल प्रलाप करने लगे हैं। गैंगरैप की पीडि़ता दामिनी के प्रति सहानुभूति के बजाय मृतक को सीख दे रहे हैं कि दरिन्दों को भाई बोलकर पांव पकड़ लेना चाहिए था। क्या बहशी दरिन्दों को ऐसा करने से हृदय परिवर्तन हो जाता में समझता हूं। जबकि गैंगरैप का आरोपी जुर्म कबूलने के बाद भी रामसिंह का कहना है कि उसे अपने किए पर कोई पश्चाताप नहीं है। रहा सवाल कपड़ों का सो महिलाओं को स्वविवेक से बदन को शालीनता से ढंकने वाले का चयन करना चाहिए अर्धनग्न पश्चिमी सभ्यता की नकल नहीं करनी चाहिए। और बहुत ज्यादा फर्क कपड़ों से नहीं पड़ता आदमी की मानसिकता के उपर निर्भर है कि वह क्या विचार करता है। चूंकि भारतीय समाज पश्चिमी संस्कृति को अभी शिरोधार्य करने की स्थिति में नहीं पहुंचा है। आशाराम को परमात्मा सद्बुद्धि दे, गलत बयान ऊपर से गलत सिद्ध करने वाले को पच्चास लाख का इनाम देने वाले बाबा आशाराम सुनिश्चत ही मानसिक रूप से विक्षिप्त अवस्था में पहुंच गए हैं।

कुंवर वी.एस. विद्रोही, ग्वालियर

Updated : 14 Jan 2013 12:00 AM GMT
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