जनमानस

छोटे राज्यों में राजनैतिक अस्थिरता
एक बार फिर झारखंड जैसा छोटा राज्य राजनैतिक, अस्थिरता की बलि चढ़ गया, विगत 12 वर्षों में जन्मे झारखंड में अभी तक 8 बार मुख्यमंत्री बदले है तथा दो बार राष्ट्रपति शासन रहा है, मुख्यमंत्री थोड़े थोड़े कार्यकाल के लिए अपने नाम पट्टिका सचिवालय में लगाकर चले गए एक भी मुख्यमंत्री ने अपना पांच साल का निर्धारित कार्यकाल भी पूरा नहीं किया, इस प्रकार की घटनाए विगत वर्षों में गोवा में भी हमें देखने को मिली है, आखिरकार कब तक इन छोटे राज्यों की जनता इस प्रकार की राजनैतिक परिदृश्य है उससे यह स्वीकार करना ही होगा कि अब गठबंधन सरकारों का ही दौर चलता रहेगा। फिर वह केन्द्र हो या राज्य किन्तु इन राजनैतिक दलों को गठबंधन धर्म भी निभाना आना चाहिए, हमने विगत वर्षों में उप्र, कर्नाटक व अब झारखंड में उपजे विवादों का परिणाम भी देखा है, तो फिर ये राजनैतिक दल बीते घटनाक्रम से सबक क्यों नहीं सीखते? क्या इन दलों का केवल अपना ही स्वार्थ है या इनकी जनता के प्रति भी कोई जवाबदेही है, जनता के प्रति जवाबदेही होना चाहिए, किन्तु इन गठबंधन सरकारों के दौर में इन दलों को अपना स्वार्थ ज्यादा प्रिय है, फिर चाहे 5 वर्ष में कितनी ही बार सरकार गिरे या बने या चुनाव होते रहे, वो तो अपना स्वार्थ सिद्ध करते रहेंगे। भगवान इन राजनैतिक दलों को सद्बुद्धि प्रदान करे।
संजय जोशी, ग्वालियर
कड़े कानूनों की सख्त आवश्यकता
महिला उत्पीडऩ के मामलों में हम स्वयं, सरकार और पालक जिम्मेदार है। ऐसी घटनाओं में पहली गलती उन माता-पिता की है जो सही ढंग से अपने बच्चों की परवरिश नहीं कर पाते हैं। उनकी गलतियों पर परदा डालते हैं। दूसरी गलती समाज में रहने वाले उन लोगों की है, जिनके सामने इस प्रकार की घटनाएं होने के बावजूद वे तमाशबीन बन उक्त घटनाओं को निहारते रहते हैं। तीसरी गलती है सरकार एवं पुलिस प्रशासन की जो केवल इस प्रकार की घटनाओं पर विवादित बयान देकर पीडि़त परिवार एवं जनता की भावनाओं से खिलवाड़ करते हैं।
मुकेश जिवने, इन्दौर