ज्योतिर्गमय
चंचल मन
यह मन बहुआयामी है। अगर हम इसे साध लें, तो यह हमें महान बना देता है और अगर इसके गुलाम हो जाएं तो यह धोखा दे देता है। इसलिए इस मन को प्रभुमय बनाओ। सद्गुरु की कृपा का पात्र बनाओ। यह मन शरीर रूपी मंदिर का एक महत्वपूर्ण पुजारी है। यह परमात्मा तक जाने के मार्ग पर बैठा है। यह सभी योगियों की गुफा द्वार का पहरेदार है। यह मन कभी खाली नहीं बैठता। मन ही मनुष्य की पहचान है। यह मन ही अगर रास्ता दे दे तो सारे प्रश्न अर्थहीन हो जाएं। हृदय में कोई प्रश्न नहीं उठता है, हृदय में दुविधा नहीं है। हृदय को सब कुछ मिल जाता है। इस मन के पास हजारों-लाखों प्रश्न हैं, किंतु इसे कभी किसी प्रश्न का उत्तर नहीं मिल पाता है। इसके पास किसी उत्तर को समझने की क्षमता ही नहीं है। मन उत्तर स्वीकार नहीं करता है। यह तो हृदय का विषय है। मन कभी इंतजार नहीं करता। यह हमेशा जल्दी में रहता है। इसे धैर्य पसंद नहीं। इसे गति पसंद है। इसे क्रियाशीलता पसंद है। यह हमेशा सवाल पर सवाल पैदा करता है। इसे उन सवालों का उत्तर पाने की भी प्रतीक्षा नहीं रहती है। इसे तो केवल प्रश्न ही करना है। मनुष्य को मन को समझने के लिए संयम चाहिए। इसकी गतिविधियों को पकडऩे के लिए दृष्टा भाव होना चाहिए। समय के महत्व को जानना चाहिए। तुम कितने तैयार हो, तुममें कितनी क्षमता है। तुममें कितनी जागृति है इसे पकडऩे के लिए मन बडा चंचल है, बडा क्रियाशील है। इसमें प्रतीक्षा करने की इच्छा नहीं। मनुष्यता की यही पहचान है कि वह इससे मुक्त हो सके। यह संसार इसी मन का है। जगत के विस्तार और विकास में चार चांद लगाने वाला यह मन ही है। आरामदायक, आनंददायक बनाने के पथ में जितनी भी दुर्लभ खोज हुई हैं-वे सब मन के कारण ही हुई हैं। अगर तुम इस मन को समझ लो-अगर तुम इसे अपने अनुकूल बना लो, तो यह तुम्हें तुमसे मिला देगा। अगर तुम चैतन्य होकर, जाग्रत होकर प्रतीक्षा करते हो तो तुम महसूस कर सकते थे कि तुम्हारे मन के हर प्रश्न का उत्तर तुम्हारे पास है।