ज्योतिर्गमय
सबसे बड़ा शत्रु कौन मित्र कौन
मनुष्य स्वयं ही अपना कौन मित्र है और शत्रु भी वही। मनुष्य क्या है, कौन है। मनुष्य विचारों का समूह है। विचार ही मनुष्य को बनाते हैं। स्वस्थ रखते हैं या बीमार करते हैं। रोग की संरचना मन में ही होती है बाद में वह शरीर में फैलता है। चाहे वह छोटा रोग हो या असाध्य रोग हो डर नकारात्मकता की उपज है। नकारात्मकता विश्वास से पैदा होती है। विश्वास डर को अंदर आने से घर बनाने से रोकता है क्योंकि यदि उसने अपने पैर फैलाने शुरू कर दिए तो सब कुछ तहस-नहस हो जाएगा। यदि हम चाहते हैं कि हम स्वस्थ रहें निर्भय होकर जिएं तो डरना छोड़ें। डर यदि दरवाजे पर आए तो दरवाजा न खोलें विश्वास और आत्मविश्वास को दरवाजा खोलने दें तो डर उलटे पैरों भाग जाएगा।
किसी को यदि हम घर में घुसने ही न दें तो उसे लौटना ही पड़ेगा। आखिर वह दरवाजे पर कब तक खड़ा रहेगा इंतजार करेगा। विश्वास और आत्मविश्वास की कमी ही डर पैदा करती हैं। कभी-कभी मन में विचार आता है कि ईश्वर ने हमें ऐसा क्यों बनाया कि वह अपने ही बुने जाल में मकड़ी की तरह फंस जाता है और छटपटाता रहता है। हम चाहें तो हम कभी बीमार न पड़ें और चाहे तो हमेशा खाट पकड़े रहें। डर-डर और डर हमारा सबसे बड़ा शत्रु। इस शत्रु को मित्र बनाएं। सुख से रहें। आदमी के पास सौ तरीके हैं सुखी रहने के पर वह छोटी-छोटी सी बातों और छोटे-छोटे से डरों से अपने जीवन को कष्टों से तकलीफों से भर देता है। थोड़ा सा शांति से सोचें कि आखिर हम क्या और क्यों सोचते हैं। जब हम शांति से आनंद से जी सकते हैं। स्वस्थ रहना हमारा जन्मसिध्द अधिकार है। हम अपने अधिकारों को भुला जाते हैं इसलिए बीमार हो जाते हैं। ईश्वर हमारी सहायता के लिए हमेशा तैयार रहता है और उसको भी हम नकार देते हैं। उसको भूल जाते हैं इसलिए डर लगता है। यह हमारे अंदर ही रहता है बस मौका देखा और बाहर आया। हम अपने लिए कुआं स्वयं ही खोदते हैं। डूबते भी हम ही हैं। अपनी कब्र स्वयं खोदना इसे ही कहते हैं। हम समझते हैं कि हम क्या सोच रहे हैं, क्या कर रहे हैं पर हमारा विश्वास और आत्मविश्वास डगमगाया रहता है इसलिए चोर अंदर घुस जाता है। तो आइए अपने मन का किला बहुत मजबूत बनाएं। मोटी-मोटी अभेद्य दीवालें कि छोटे-मोटे बड़े सभी डर हमसे टकराएं और अपना सिर फोड़ लें। घायल होकर या मरकर विदा हों। तो निष्कर्ष यही है कि हम अपने ही मित्र है और हम ही अपने शत्रु तो मित्र बने और जीवन को आनन्द से जिएं। मरने के लिए पहले न मरे नहीं तो जीना मुश्किल हो जाएगा। बस यही मेरा संदेश है।