जनमानस
क्या हम वास्तव में स्वतंत्र हो गए हैं?
15 अगस्त 1947 को हमारा भारत देश स्वतंत्र हुआ था अंग्रेजों की गुलामी से हमें बहुत खुशी हुई कि हम 100 वर्षों की गुलामी के बाद स्वतंत्र हो गए किन्तु 65 वर्षों के पश्चात हमें यह सोचने को मजबूर होना पड़ रहा है कि क्या हम वास्तव में स्वतंत्र हो गए? नहीं।
पहले हम अंग्रेजों के गुलाम थे अब हम संसद सदस्यों के गुलाम है? कैसे
(1) हमें बोलने की आजादी मिली किन्तु हमारी आवाज को सुनने या नहीं सुनने का अधिकार हमारी संसद का है अत: 125 करोड़ लोगों की इस स्वतंत्रता का कोई महत्व नहीं। यदि हम सांसदों के आचरण पर कोई असंसदीय भाषा का उपयोग करते है तो हमारे ऊपर आईपीसी की धारा लगाकर हमें शान्त रहने को कहा जाता है यदि हमारे सांसद सदन के अन्दर उसी भाषा का उपयोग करते है तो सिर्फ कार्रवाई की बात खत्म कर दी जाती है।
(2) धार्मिक स्वतंत्रता जातीय स्वतंत्रता इसके अन्तर्गत हमें किसी भी जाति या धर्म को अपनाने की स्वतंत्रता है। इस स्वतंत्रता के द्वारा नेताओं ने हमें धर्म एवं जाति के आधार पर बांट दिया जिसके फलस्वरूप चुनाव में जाति एवं धर्म की जनगणना के आधार पर उम्मीदवार खड़ा किया जाता है। जैसे यादव बाहुल्य क्षेत्र से यादव, मुस्लिम क्षेत्र मुस्लिम चाहें वह व्यक्ति योग्य हो या न हो और हम लोग भी उसी व्यक्ति को अपनी स्वार्थ बुद्धी के कारण उसी को मत देकर जिताते हैं।
वर्तमान हमारे देश की जनगणना जाति के आधार पर होने जा रही है जो कुछ इस प्रकार होगी वैश्य 40 प्रतिशत, मुस्लिम 20 प्रतिशत, ईसाई 10 प्रतिशत, सिख 10 प्रतिशत, अनुसूचित जाति 20 प्रतिशत, भारतीय 0 प्रतिशत ऐसा इसलिये कि हम चुनाव जीतना है?
(3) कार्य करने की स्वतंत्रता उक्त स्वतंत्रता के तहत हम कोई भी कार्य कर सकते है जिसके एवज में हमें धन प्राप्त हो जिससे हम अपनेपरिवार का पालन कर सकें। हमें आयकर नियमों के तहत अपनी आय पर कर देना होता है हमारे यहां प्रति व्यक्ति आय 100 प्रतिशत सरकारी आकड़ों के हिसाब से आई है। क्या हमारे सांसद जिन्हें 1 लाख रु. प्रतिमाह वेतन मिलता है क्या अन्य सुविधाएं जैसे भवन, बिजली, टेलीफोन, पेट्रोल, कार मनोरंजन भत्ता कम कीमत पर भोजन क्या हमारे सांसद उक्त समस्त आय पर उचित कर देते हैं।
जी.डी. खण्डेलवाल