जनमानस

स्वतंत्रता के पैंसठ साल

कल एक कॉर्टून देखा तो लगा कि क्या? देश का आम आदमी स्वतंत्र हो गया है। या हम केवल स्वतंत्रता दिवस मनाने का ढकोसला करते आ रहे हैं। और आम आदमी विकास व्यवस्था के हाशिए पर पड़ा है। खड़ा भी नहीं है। 65 वर्षों के बाद भी गरीब गरीब हो रहा और अमीर और अमीर यह सामाजिक स्टैटस की खाई दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। सरकारी आंकड़ों में गरीबी की दर घटती जाती है। और गरीबी वास्तविकता में बढ़ती जाती है। क्या आम आदमी स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) की छुट्टी को एन्जॉय कर सकता है। नहीं उसे शाम चूल्हे जलाने की व्यवस्था में जुटना होता है। समाज के 20 प्रतिशत लोग है। जो समाज में स्वतंत्र है। एन्जॉय करने के हकदार हैं। भ्रष्टाचार का यह आलम है कि बिना लिए उसे कोई काम नहीं होता है। और प्रदेश सरकारे और केन्द्र सरकारें गरीबी को मुफ्त मोबाइल फोन वितरण करने की शेख चिल्ली घोषणाएं कर रही है। आम आदमी की पहली आवश्यकता रोटी है। मोबाइल नहीं स्वतंत्रता कैसे मिली आधी मिली या पूरी मिली हमने क्या खोया और क्या पाया यह आने वाली पीढ़ी को बताना होगा।
कुवर वी.एस. विद्रोही, ग्वालियर

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