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ज्योतिर्गमय

वर्तमान हमारे लिए नहीं रुकता

जीने पर मेरा जोर है, चिंतन पर नहीं। हम सिर्फ वर्तमान में ही जी सकते हैं, भविष्य में नहीं। मेरा जोर है जीने पर। जैसे मेरा जोर है खाना खाने पर। अब मुझसे कोई कहे कि हम भविष्य की रोटी खाएं, तो क्या यह संभव है? पहली बात तो यह है कि भविष्य की रोटी खाना संभव नहीं, सिर्फ उसका सपना देख सकते हैं। सपने में खतरा यह है कि हो सकता है इससे आज की रोटी चूक जाए। सपने में खतरा यह भी है कि आप भविष्य की रोटी खाएंगे, तो वर्तमान की रोटी कौन खाएगा?
वर्तमान आपके लिए एक क्षण भी नहीं रुकता। आप वर्तमान में हों या न हों, वह भागा जा रहा है। जिस क्षण हम नहीं होते, वह क्षण खाली निकल जाता है। और अगर चित्त की ऐसी आदत बन जाए कि वह सदा भविष्य में जीने लगे, तो समझना चाहिए कि वह पूरी जिंदगी चूक जाएगा। क्योंकि नियम यह है कि हाथ में अभी एक क्षण है। एक साथ दो क्षण हाथ में कभी नहीं होते। वर्तमान में जीने वाला अगर भविष्य में जीने वालों के साथ जिएगा, तब भविष्य के लिए अगर उसे सोचना पड़ा, तो वह कभी उसमें रसमुग्ध तो होने वाला नहीं। उसका सोचना कुछ अलग ढंग का हो सकता है। कुछ इस प्रकार कि कल तुम्हें रुपए देने हैं, तो आज डाक से भेज दूं। रुपए तुम्हें कल ही मिलेंगे। आज रुपए तुम्हें दे नहीं रहा हूं, सिर्फ डाक से भेज रहा हूं। डाक चौबीस घंटे लेगी पहुंचने में, तो आज मैं डाक में डाले दे रहा हूं। लेकिन भविष्य में मेरा कोई रस नहीं है। रसमुग्ध नहीं हूं उसमें। रसमुग्ध तो वर्तमान में हूं। मैं यह जो डाक से तुम्हें रुपए भेज रहा हूं, इस भेजने के कृत्य को मैं पूरा जिऊंगा।


Updated : 18 July 2012 12:00 AM GMT
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