अल्पसंख्यक कोटा : सरकार ने दस्तावेजों के साथ पेश किए तर्क

अल्पसंख्यक कोटा : सरकार ने दस्तावेजों के साथ पेश किए तर्क
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$img_titleनई दिल्ली। केंद्र सरकार ने मंगलवार को अल्पसंख्यक आरक्षण से जुड़े दस्तावेज सुप्रीमकोर्ट को सौंपे। 1800 पन्ने के इन दस्तावेजों में सरकार ने अल्पसंख्यक आरक्षण के समर्थन में कई तर्क पेश किए हैं। इनमें मुसलमानों को गरीब बताकर उनके लिए आरक्षण की वकालत करने वाली राजेंद्र सच्चर समिति की रिपोर्ट भी शामिल है। वर्ष 1993 में तैयार की गई मुस्लिमों की पिछड़ी हुई जातियों की सूची भी दस्तावेजों के साथ पेश की गई है। सरकार ने कर्नाटक और केरल जैसे राज्यों का हवाला देते हुए अपने पक्ष को मजबूती से रखा। इसके अलावा दस्तावेजों में मंडल समिति और रंगनाथ मिश्रा की रिपोर्ट भी शामिल है।

मुस्लिम कोटा कहे जाने वाले साढ़े चार फीसद अल्पसंख्यक आरक्षण पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार फटकार लगाई थी। कोर्ट ने आरक्षण के तरीके पर नाराजगी जताते हुए सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किए और कोटे का आधार तलब किया था। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने आइआइटी सरीखे केंद्रीय शिक्षण संस्थानों में अल्पसंख्यकों के लिए साढ़े चार फीसद कोटे के प्रावधान को खारिज करने के आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इन्कार कर दिया था।

हाल में संपन्न उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के चुनाव के वक्त मुसलमानों को आरक्षण की सियासत केंद्र सरकार के गले में फंस गई है। कोर्ट ने सोमवार को आरक्षण की वजहें और संबंधित तथ्य देखने से पहले सरकार को कोई भी अंतरिम राहत देने से इन्कार कर दिया। मामले में अगली सुनवाई 13 जून को होगी। गत वर्ष दिसंबर में केंद्र सरकार ने पिछड़े वर्ग के लिए तय 27 फीसद आरक्षण से अल्पसंख्यकों [विशेष तौर पर मुस्लिमों] को 4.5 फीसद आरक्षण देने का आदेश जारी किया था। पिछले महीने आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने इसे धर्म आधारित बताकर रद कर दिया था। सरकार ने हाई कोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। केंद्र सरकार की ओर से पेश अटार्नी जनरल जीई वाहनवती ने अदालत से तत्काल राहत की मांग करते हुए कहा, आइआइटी में 325 छात्रों को इसका लाभ मिलने वाला है। वहां काउंसलिंग शुरू हो चुकी है अगर हाई कोर्ट के आदेश पर रोक नहीं लगी तो उन्हें नुकसान होगा। कम से कम इन छात्रों को काउंसलिंग में हिस्सा लेने की अनुमति दे दी जाए। वाहनवती ने हाई कोर्ट के आदेश को गलत बताते हुए कहा, यह कोई नया आरक्षण नहीं है बल्कि 1993 से पिछड़ों के लिए लागू 27 फीसद में से ही अल्पसंख्यकों को कोटा दिया गया है।

न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन और जेएस खेहर ने वाहनवती से इसका आधार पूछा। पीठ का सवाल था कि क्या कोटा तय करने से पहले सरकार ने पिछड़ा वर्ग आयोग या अल्पसंख्यक आयोग को मामला भेजा था? अटार्नी जनरल के यह कहने पर कि इसकी जरूरत नहीं थी, पीठ ने नाराजगी जताते हुए कहा कि सरकार इन विधायी संस्थाओं को कैसे नजरअंदाज कर सकती है? क्या 4.5 फीसद अल्पसंख्यक कोटा देने से 27 फीसद ओबीसी कोटा प्रभावित नहीं होगा?

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