दहेज हत्या में उम्र कैद से कम सजा नहीं
नई दिल्ली दहेज हत्या को जघन्य अपराध मानते हुए उच्चतम न्यायालय ने अपने एक फैसले में कहा कि ऐसे मामलों में इसके दोषियों को उम्रकैद से कम की सजा नहीं दी जानी चाहिए। न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार और न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की खंडपीठ ने रेणु की दहेज हत्या मामले में बचावपक्ष की याचिका को खारिज कर दिया।
याचिका में रेणु के पति और उसके देवर की युवा अवस्था और सास की अधिक उम्र का हवाला देते हुए उनको दी हुई सजा में नरमी बरतने का अनुरोध किया था। न्यायमूर्ति कुमार ने अपने निर्णय में कहा कि धारा 304बी के तहत यह अपराध क्रुर श्रेणी का है। टीवी या कूलर आदि की मांग करना साबित करता है कि बचावपक्ष की यह दलील की रेणु की मौत महज एक दुर्घटना थी मिथ्या है। इस तरह की क्रूर दहेज हत्याओं में अदालत को कम से कम उम्रकैद की सजा सुनानी चाहिए। इसके साथ ही सुप्रीमकोर्ट ने रेणु के पति मुकेश भटनागर, उसके देवर राजेश भटनागर और सास कैलाशो उर्फ कैलाशवती की सजा को बरकरार रखा। सुप्रीमकोर्ट ने रेणु के पति की उस दलील को भी खारिज कर दिया जिसमें मुकेश ने कहा था कि उसने रेणु को बचाने का प्रयास किया था। सुप्रीमकोर्ट ने कहा कि इस दलील में कोई दम नहीं दिखता क्योंकि जलती हुई रेणु को बचाने के दौरान मुकेश को एक खरोंच तक नहीं आना दहेज हत्या के शक की पुष्टि करता है।
सुप्रीमकोर्ट ने कहा कि विशेषज्ञों और दस्तावेज के आधार पर साबित होता है कि रेणु की मौत अप्राकृतिक थी। इसमें कोई विवाद नहीं ससुराल वालों ने दहेज की मांग पूरी नहीं करने पर रेणु पर तेल छिडक़कर आग लगा दी। सात साल के भीतर हुई रेणु की मौत को धारा 304 बी [दहेज हत्या] के तहत मानते हुए दोनों अभियुक्तों की याचिका खारिज कर दी। अभियोजन पक्ष का आरोप था कि तीनों अभियुक्त रेणु से टीवी सेट और कूलर की मांग करते थे और उसे शारीरिक और मानसिक रूप से लगातार प्रताडि़त कर रहे थे।