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ज्योतिर्गमय

परोक्ष के विश्लेषण की उपलब्धि


इस विश्व ब्रह्मांड के प्रत्येक घटक की संरचना में दो तथ्य अविच्छिन्न रूप से जुड़े हुए हैं- एक प्रत्यक्ष, दूसरा परोक्ष- प्रत्यक्ष वह जो इंद्रियगम्य है। परोक्ष जिसे इंद्रियातीत कहा जा सकता है। इंद्रियातीत अर्थात बुद्धिगम्य। प्रत्यक्ष को ज्ञान कहते हैं और परोक्ष को विज्ञान। इन्हीं दो पक्षों को अध्यात्म की भाषा में स्थूल एवं सूक्ष्म भी कहा जाता है। हर घटक की प्रत्यक्ष क्षमता एवं उपयोगिता स्वल्प है। उसका वर्चस्व परोक्ष में छिपा है। समग्र क्षमता एवं उपयोगिता समझने पर ही समुचित लाभ उठाया जाना संभव है अन्यथा इस दुनिया में सर्वत्र मिट्टी बिखरी पड़ी है। पानी के गड्ढ़े और पेड़-पौधे भर दृष्टिगोचर होते हैं। चाबीदार खिलौनों की तरह कुछ जीवधारी चित्र-विचित्र हलचलें करते दिखाई पड़ते हैं. इतने भर से संतोष होता और काम चलता होता तो मनुष्य भी अन्य प्राणियों की भांति अपने निर्वाह की आवश्यकता जुटाने भर तक सीमाबद्ध रहा होता। जमीन पर बिखरी धूलि की कोई कीमत नहीं, पर उसके छोटे से परमाणु की परोक्ष शक्ति को देखकर आश्चर्यचकित रह जाना पड़ता है। आकाश नीले शामियाने जैसा दिखता है, पर इस प्रत्यक्ष से आगे बढ़कर जब इंद्रियातीत रहस्यों का पता चलता रहता है कि उस पोल में उससे भी अधिक संपदा भरी पड़ी है जितनी कि इस धरती पर इंद्रियों के सहारे बिखरी हुई लगती है। यह रहस्य लोक ही है, जिसे इंद्रियातीत या बुद्धिगम्य कहते है। परोक्ष भी प्रत्यक्ष के साथ ही गुथा हुआ है, पर उसे जानने, पकडऩे और करतलगत करने के लिए बुद्धि क्षेत्र की प्रखरता उभारकर मोती ढूंढ निकालने का पुरुषार्थ करना पड़ता है। प्रत्यक्ष जानकारी को ज्ञान और परोक्ष के रहस्योद्घाटन को विज्ञान कहते हैं। ज्ञान, सब प्राणियों को समान मिला है। विज्ञान मनुष्य की अपनी उपलब्धि है। जमीन पर उगी घास प्रत्यक्षत- हरे-भरे कालीन जैसी दिखती है, पर विश्लेषण करने पर उनमें कितनी ही अमृतोपम जड़ी-बूटियां सिद्ध होती हैं। खनिज पदार्थ अपने प्रकृत रूप में भारी मिट्टी जैसे होते हैं, किंतु विश्लेषण करने पर उनमें से एक लोहा, दूसरा सोना सिद्ध होता है। यह परोक्ष के विश्लेषण की उपलब्धि है। विज्ञान ने मनुष्य के हाथ इतनी सामथ्र्य प्रदान कर दी है कि उसे पौराणिक महादैत्यों के समतुल्य मानने में कोई अत्युक्ति नहीं। पांचों देवता उसकी सेवा में नियुक्त हैं। अग्निदेव खाना पकाते हैं। वरूण देव नल में विराजमान आज्ञा की प्रतीक्षा करते हैं. पवन पंखा झेलते हैं। आकाश रेडियो सुनाते हैं। धरती अपनी छिपी हुई संपदा की तिजोरी खोल-खोल कर उसका वैभव बढ़ाती चली जाती है।

Updated : 7 Dec 2012 12:00 AM GMT
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