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रिटेल में एफडीआई आया तो सरकार नहीं टिकेगी : अरुण जेटली

रिटेल में एफडीआई आया तो सरकार नहीं टिकेगी : अरुण जेटली
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नई दिल्ली:
रिटेल में एफडीआई पर बहस के दौरान राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने कहा, खेती के बाद सबसे ज्यादा लोग खुदरा कारोबार से ही रोजगार पाते हैं। 18 से 20 करोड़ लोग खुदरा कारोबार पर निर्भर हैं। सो वालमार्ट कहीं से भी इन लोगों के लिए सही नहीं होगा। निर्माण क्षेत्र में इससे नौकरियों को नुकसान होगा।

उन्होंने आगे कहा, हर बदलाव सुधार नहीं होता। अब दुनिया को सुधार की परिभाषा बतलाने का वक्त आ गया है। सरकार ने नीतियां बनाई हैं, लेकिन फिर भी सुधार नहीं हुए। एफडीआई के लिए सरकार जिस बुनियादी सोच के साथ आगे बढ़ रही है, वह गलत है।

जेटली ने कहा, ज्यादातर पार्टियां आज एफडीआई के खिलाफ हैं। यानी सरकार लड़खड़ा रही है, सहयोगी भी इस मामले में विरोधी रुख अपनाए हुए हैं। सो, एफडीआई किस क्षेत्र में आए इसका फैसला देश को करना ही करने देना चाहिए।

उन्होंने कहा कि मैं कपिल सिब्बल को चुनौती देता हूं कि वह अपने संसदीय क्षेत्र चांदनी चौक में विदेशी रिटेल स्टोर खुलवाकर दिखाएं।

अरुण ने कहा कि एफडीआई के सबसे बड़े पैरोकार शरद पवार की पार्टी एनसीपी ने महाराष्ट्र में कह दिया है कि वह अभी राज्य में इसे लागू नहीं होने देगी। उन्होंने कहा कि रिटेल में एफडीआई से विदेशी समान भारत के स्टोर में बिकेगा, जो कि देश के बिलकुल अच्छा नहीं है।

उन्होंने उदाहरण दिया कि दो साल पहले वॉलमार्ट का टर्नओवर साढ़े 21 लाख करोड़ था और भारत का टोटल रिटेल बाजार साढ़े दस लाख करोड़ का है। यानी भारत के बाजार से उसका टर्नओवर दोगुना है।

अरुण ने कहा कि हमेशा दलील दी जाती है कि इससे बिचौलिए खत्म हो जाएंगे लेकिन इसके आने के बाद बड़े बिचौलिए पैदा हो जाएंगे। कहा जाता है कि इससे किसानों को फायदा होगा, तो बताना चाहता हूं कि अगर किसानों को मालामाल करना होता तो यूरोप और अमेरिका के किसान अब तक काफी अमीर हो चुके होते। हकीकत यह है कि वहां की सरकारें किसानों को भारी सब्सिडी देती हैं। वहां के स्थानीय लोगों के विरोध के चलते मैनहटन में भी वालमार्ट नहीं खुल पाया।

जेटली ने सरकार को आगाह किया कि सरकार रिटेल में एफडीआई लाकर टिक नहीं पाएगी। इससे पूर्व एआईएडीमे के सांसद मैत्रेयन ने एफडीआई पर प्रस्ताव रखा।

उधर, लोकसभा में बाजी जीतने के बाद इस मुद्दे पर सरकार के हौसले बुलंद हैं, हालांकि संख्या बल साथ न होने पर सरकार को राज्यसभा में कड़ी चुनौती मिल सकती है। सवाल यही है कि क्या राज्यसभा में भी सपा और बसपा सरकार की नैय्या पार लगाएंगे।

ऊपरी सदन में बहस नियम 167−168 के तहत होगी, जिसमें बहस के बाद वोटिंग का भी प्रावधान है। 244 सदस्यों वाले इस सदन में सरकार को अपने पक्ष में 123 वोटों की जरूरत होगी। सदन में इस समय कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों के 89 सदस्य हैं। इसके अलावा उसे आरजेडी और एलजेपी का भी समर्थन मिला हुआ है।

वहीं विपक्ष में बीजेपी और उसकी सहयोगी पार्टियों के पास 65 मत हैं। इसके अलावा वामदलों के 14 और तृणमूल कांग्रेस के नौ सांसद भी इस मुद्दे पर सरकार के खिलाफ वोट करेंगे। 

Updated : 6 Dec 2012 12:00 AM GMT
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