प्राकृतिक सौन्दर्य का अनोखा है पचमढ़ी में

पचमढ़ी। सतपुड़ा पर्वत के मनोरम पठार पर अवस्थित पचमढ़ी का प्राकृतिक सौंदर्य ऐसा अनोखा है कि वहाँ पहुँचकर कोई भी पर्यटक मंत्रमुग्ध सा रह जाता है। ग्रीष्मकाल में जब मैदानी भाग लू के तपते थपेड़ों से व्याकुल रहते हैं तब पचमढ़ी में शीतल समीर के झोंकों का स्पर्श अत्यंत आनंददायी तथा सुखद प्रतीत होता है। वहीं पचमढ़ी महोत्सव भी 25 दिसंबर से शुरू हो गया और 30 दिसंबर तक चलेगा। सतुपड़ा की पहाडिय़ों में बसा वाकई भारत के दिल में बसे सबसे खूबसूरत स्थानों में से एक है। पहाडिय़ां, कंदराएं, झरने, और बांस, जामुन व साल के घने जंगल। प्रकृति द्वारा लुटाई गई भरपूर दौलत के अलावा पचमढ़ी के पास पुरातात्विक खजाना भी है। महादेव पहाडिय़ों की गुफाओं में हजारों साल पुरानी रॉक पेंटिंग्स हैं। बाद के सालों में पचमढ़ी को पहले अंग्रेजों और फिर सेना के रखरखाव का फायदा मिला। पर्वतीय जलवायु स्वास्थ्यवर्धक है ही। पचमढ़ी का शाब्दिक अर्थ है पाँच कुटियाँ जो अब इन विद्यमान पाँच गुफाओं की सूचक हैं। प्रचलिलत दंत कथा के अनुसार इनमें पाण्डवों ने वनवास काल का एक वर्ष बिताया था। प्राचीन वास्तुवेत्ता इन गुफाओं को बौद्धकालीन मानते हैं, जो संभवत: - साँची और अजन्ता के बीच की संयोजन कडिय़ां की प्रतीक हैं। पचमढ़ी के दर्शनीय स्थल में प्रियदर्शिनी, हाड़ीखोह पचमढ़ी की सबसे प्रभावोत्पादक घाटी है। अप्सरा, विहार, रजत प्रपात, राजगिरि, लांजी गिरी, आईरीन सरोवर, जलावतरण, जटाशंकर, छोटा महादेव, महादेव, चौरागढ़, धूपगढ़, पांडव गुफाएं, गुफा समूह, धुंआधार, भ्रांत नीर, अस्तांचल, बीनवादक की गुफा तथा सरदार गुफा देखने योग्य हैं।