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जनमानस

''जागो युवा जागो''

गत दिनों देश की राजधानी दिल्ली में एक सामूहिक रेप काण्ड ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है। अगर इस रेप काण्ड को सीधे-सीधे राष्ट्र का रेप कहें तो कोई गलती नहीं होगी। कितना आश्चर्य होता है जब अपराधी इस तरह के जघन्यताओं को अंजाम पर अंजाम देते चले जा रहे है और हमारे राष्ट्र के कर्णधारों के पास ऐसे जधन्य कृत्यों को रोकने के लिए कोई कड़ा कानून ही नहीं है। शर्म आती है सत्ता में काबिज ऐसे राष्ट्र चिन्तकों को अपना नेता कहते हुए। यह समस्त राष्ट्रवासियों के लिए चुल्लूभर पानी में डूब मरने की बात है कि, ऐसे सत्ता लोलुप हमारे कंधों पर चढ़ कर सत्ता में स्वर्ग का सुख भोग रहे हैं। कितना विचित्र सा लगता है जब अपराधी कुछ ही घंटों में दुष्कर्म जैसे अपराधों को अंजाम दे कर बड़ी सफाई से निकल जाता है तथा हमारे सुरक्षा के आकाओं को कानूनी रास्ता निकालने के लिए दशकों लग जाते हैं संवेदना के मगरमच्छी आंसू निकालना इनकी आदत है। इस दुष्कृत्य को अपराधियों ने मात्र कुछ ही घंटों में अंजाम दिया मगर हमारी सरकार इतने दिनों के बाद भी राष्ट्र को सुरक्षा के प्रति आस्वस्थ नहीं कर पाई बल्कि उनके खिलाफ उठने वाली आवाज को लाठियों, आंसूगैस और पानी के बौछारों से दवाया जा रहा है। सच तो यह है कि दिल्ली के गैंगरेप की पीडि़ता सत्ता में बैठे किसी नेता या मंत्री की बेटी या बहन नहीं है, वरना इतनी देर नहीं लगती। इस दिशा में देश की युवाशक्ति एकजुट आक्रोषित है। इनका एक जुट आक्रोषित होना भी लाजमी है। युवाशक्ति किसी भी राष्ट्र का भविष्य है। युवा शक्ति की भावना और संभावना से खिलवाड़ राष्ट्र के भविष्य से खिलवाड़ है। आज जरूरत है राष्ट्र के हर युवाओं को इस दिशा में बढ़ चढ़ कर आगे आने की जरुरत है। आज संसद में बैठे उन खूंखार भेडिय़ों को जो नेता के रूप में देश के युवाओं को मात्र अपना संबल बना कर अपना उल्लू सीधा कर रहे है, उन्हें उखाड़ फेंकने की जरूरत है। अत: जागो युवा जागो। देश तुम्हें पुकार रहा है।
तलवारों की धारों पर
इतिहास बदलते देखा है
जिस ओर जवानी चलती है
उस ओर जमाना चलता है।
प्रवीण प्रजापति, ग्वालियर

अमानवीयता की पराकाष्ठा

वहशी दरिंदों का खेल! प्रशासन की सुस्तता। इन सबके चलते पुन: एक लड़की शिकार हो गई। उसका जीवन जान सहित दांव पर लग गया। क्या इन लोगों के हाथ नहीं कांपे होंगे? क्या इनके संस्कारों ने इन्हें नहीं रोका होगा? क्या इनका वजूद इन्हें ऐसी हरकत करने से नहीं रोक पाया? इतने प्रश्नों का उत्तर एक ही है, नहीं। क्योंकि उन्हें ऐसे संस्कार थे ही नहीं, वरना वे ऐसे घृणित कार्य को अंजाम नहीं देते। इस घटना को टी.वी. पर देखकर, अखबार में पढ़कर एक साधारण व्यक्ति के रोंगटे खड़े हो गए। आंखों में आंसू आ गए। ऐसी वारदात करने वाले राक्षसों को वाकई में कठोर सजा देने का मन करता है। वह भी अपने हाथों से। आश्चर्य होता है उन मानवरूपी राक्षसों के बारे में विचार करके कि इन्हें परिणामों की भी चिंता नहीं और हो भी क्यों नहीं पता है, हमारा कानून है ही इतना लचीला। अब तो समय आ गया है कि इन दरिंदों को सजा देने के लिए कानून व कानूनी प्रक्रिया के बजाय शहर के सामाजिक संगठनों को यह अधिकार दे देना चाहिए।
शर्मिष्ठा मारू, इंदौर

Updated : 26 Dec 2012 12:00 AM GMT
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