जनमानस
काटजू के नहीं, विवेकानंद के विचारों की आवश्यकता है
भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष एवं पूर्व न्यायमूर्ति श्री मार्कन्डेय काटजू ने पुन: 90 प्रतिशत भारतीयों के मूर्ख कह कर स्वयं को मूर्ख शिरोमणि घोषित कर दिया है। उन्होंने पिछले दिनों दिल्ली में इस तरह का मूर्खतापूर्ण बयान पहली बार नहीं दिया है इसके पूर्व भी उन्होंने 22 अप्रैल 2012 को ग्वालियर में एक प्रेसकांफ्रेंस में अपने निहायत बेबकूफी पूर्ण चिन्तन का परिचय दिया था। बड़ी आसानी से देश के 90 प्रतिशत लोगों की मूर्खता को स्वीकार करने वाले काटजू महोदय को देश के अन्य दस फीसदी बचे लोगों की क्या पृष्ठभूमि है, इसका भी खुलासा कहना चाहिए काटजू साहब का एक बेतुका तर्क कि दिल्ली में महज 2000 रु. के लिए साम्प्रदायिक दंगा भड़काया जा सकता है। पर उन्होंने यह नहीं बताया कि ये रुपए दे कौन रहा है। सच तो यह है कि देश के दस प्रतिशत चालाक भेडि़ए देश के 90 प्रतिशत बेबस, कमजोर, लाचार और असहाय लोगों को बरगला कर ठीक उसी तरह अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं जिस तरह स्वतंत्रता पूर्व हम भारतीय के साथ मुट्ठी भर अंग्रेज करते आ रहे थे। अंग्रेजों की नीति थी, फूट डालो और राज करो, हमें इस सच्चाई को भी स्वीकार करना होगा कि ऐसे दस प्रतिशत लोग जो स्वयं को सर्वाधिक समझदार समझते हैं, वे धूर्त अंग्रेजी नीति के हिमायती हैं। इन्हें न तो राष्ट्र के स्वाभिमान की चिन्ता है और न ही राष्ट्रवासियों के हित की ये अपनी चतुराई से देश को बरगला कर मात्र अपना और अपने परिजनों का हित साधने में लगे हुए हैं। फलस्वरूप देश के 90 फीसदी लाचार असहाय एवं कमजोर लोगों के गाढ़े पसीने की कमाई काले धन के रूप में इन दस प्रतिशत काले शातिरों के नाम ही विदेशी बैंकों में जमा हो रहा है। जब देश की राजनीति ही, साम्प्रदाय, जातिवाद और ऊंच नीच पर आधारित हो जाए तो इसका जिम्मेदार कौन हो सकता है। निश्चित ही इसका श्रेय संसद में बैठे हमारे राष्ट्रीय कर्णधारों को ही जाता है। भारत विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में जाना जाता है। किसी लोकतंत्र की सबसे बड़ी शक्ति वहां की जनता होती है। लेकिन जिस लोकतंत्र की महाशक्ति ही 90 प्रतिशत जनता को मूर्ख कहा जाए तो उसे उस देश का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है। आज देश को काटजू महोदय जैसे लोगों के घृष्टतापूर्ण बयान के बजाए स्वामी विवेकानन्द जी के आदर्श विचारों की आवश्यकता है। जिन्हें देश की जनता में मूर्ख लोग नहीं बल्कि ईश्वर का दर्शन होता था।
प्रवीण प्रजापति, ग्वालियर