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सदियों पुरानी है ग्वालियर की समृद्ध संगीत विरासत

  • हितेन्द्र सिंह भदौरिया

ग्वालियर की समृद्ध संगीत विरासत सदियों पुरानी हैं। राजा मानसिंह तोमर के शासनकाल या संभवत: उससे पहले ही आरंभ हुए''ग्वालियर घराने ने संगीत के क्षेत्र में देश को एक से एक नायाब नगीने दिए हैं। उर्दू इतिहासकार फरिस्ता द्वारा लिखित ग्रंथ ''तारीख-ए-फरिस्ता के शुरूआती अध्याय में ही ग्वालियर की संगीत विरासत के संबंध में मनोरंजक उल्लेख मिलता है। फरिस्ता लिखता है कि यहाँ संगीत का प्रादुर्भाव मालचंद द्वारा किया गया। मालचंद जिसके बारे में मालवा में कई किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं, जो संगीत को दक्षिण भारत से ग्वालियर लाया। मालचंद लम्बे समय तक ग्वालियर में रहा और तलिंगी संगीतकारों के वंशज पूरे उत्तर भारत में फैल गए। फरिस्ता द्वारा लिखे गए इस वाकये से जाहिर होता है कि ग्वालियर की संगीत परंपरा बहुत पुरानी है और कई शताब्दियों से संबंध रखती है। ग्वालियर की संगीत परंपरा राजा मानसिंह तोमर के राज्यकाल में अपने चर्मोत्कर्ष पर पहुंची। तोमर राजवंश द्वारा संगीत की विकास यात्रा में दिए गए योगदान के एतिहासिक प्रमाण ख्वाजा नजीमुद्दीन अहमद द्वारा लिखित ''तबाकात-ए-अकबरी में मिलते हैं। जिसमे उल्लेख है कि तोमर वंशी राजा डूंगर सिंह और कश्मीर के शासक जैन-उल-आबेदीन के बीच संगीत संबंधी ग्रंथों का आदान प्रदान हुआ था। पन्द्रहवीं शताब्दी में राजा मानसिंह के प्रोत्साहन से ग्वालियर संगीत कला का विख्यात केन्द्र बना। राजा मानसिंह स्वयं भी संगीत के महान पारखी थे। उन्हें संगीत साधना में अपनी प्रेयसी रानी मृगनयनी से भी बहुत सहायता प्राप्त होती थी। जिसकी यादगार के रूप में चार रागों का सृजन भी हुआ। इन रागों को मृगनयनी के नाम के आधार पर गूजरी, बहुल गूजरी, माल गूजरी और मंगल गूजरी कहा गया। राजा मानसिंह ने ''मानकुतूहल नामक एक संगीत ग्रंथ की रचना भी की। इस ग्रंथ में राजा मानसिंह द्वारा एक विशाल सगीत सम्मेलन कराए जाने का उल्लेख भी मिलता है। इसकी पुष्टि मुगल काल में अबुल फजल द्वारा लिखी गई प्रसिद्ध पुस्तक आइन-ए-अकबरी से भी होती है। अबुल फजल ने लिखा है कि राजा मानसिंह द्वारा आयोजित किए गए सम्मेलन में राजदरबार के कलाकारों अर्थात नायक, बक्सू, मच्चू और भानु ने ऐसे गीतों का संकलन किया जो भारतीय संस्कृति की गंगा जमुनी तहजीब के अनुकूल थे। राजा मानसिंह का राजदरबार बैजू बावरा, कर्ण और महमूद जैसे महान संगीताचार्य और गायक गणों से सुशोभित था। इन्हीं के सहयोग से राजा मानसिंह तोमर ने संगीत की ध्रुपद गायकी का आविष्कार और प्रचार किया था। राजदरबार में बिख्शु, घोन्डी और चरजू के नामों का भी उल्लेख मिलता है। एम सी गांगुली द्वारा रचित ''रागज एण्ड रागनीज पुस्तक में जिक्र है कि इन्हीं तीनों कलाकारों द्वारा रागों के भण्डार में एक नए प्रकार के मल्हार का प्रणयन किया, जो बिक्शु की मल्हार, धोन्डिया की मल्हार और चाजू की मल्हार के नाम से मशहूर हुईं।
ध्रुपद, धमार, ख्याल, टप्पा, ठुमरी, दादरा, लेदा, गजल, तराना, त्रिपट और चतुरंग आदि संगीत शैलियाँ ग्वालियर घराने की प्रमुख विशेषताएँ हैं। राजा मानसिंह द्वारा पोषित संगीत घराने की विशेषता यह थी कि उसने उत्तर भारत के लोकप्रिय लोक संगीत को अंगीकार किया और उसे उच्च कोटि के वैविध्यपूर्ण संगीत के रूप में सजाया। इससे लोक रागों, शास्त्रीय रागों और संगीत की पारंपरिक विविधता को एक नई और ओजस्वी अभिव्यक्ति मिली। इस घराने ने संगीत की ध्रुपद नामक एक नई शैली की आधारशिला रखी, जो तानसेन का जादू भरा स्पर्श पाकर लोकप्रियता के उच्च शिखर तक पहुंची।
कंठ संगीत में तानसेन अद्वितीय थे। अबुल फजल ने ''आइन-ए-अकबरी में तानसेन के बारे में लिखा है कि ''उनके जैसा गायक हिंदुस्तान में पिछले हजार वर्षों में कोई दूसरा नहीं हुआ है उन्होंने जहाँ ''मियां की टोड़ी जैसे राग का आविष्कार किया वहीं पुराने रागों में परिवर्तन कर कई नई - नई समधुर रागनियों को जन्म दिया। मुगल काल में ग्वालियर का संगीत के क्षेत्र में कितना अधिक योगदान था इसका जिक्र अबुल फजल ने बड़ी शिद्दत के साथ किया है। उसने आइन-ए-अकबरी में जिन 36 महान संगीतकारों का उल्लेख किया है उनमें तानसेन सहित 16 संगीतकार ग्वालियर के ही थे।
सिंधिया शासकों के समय भी ग्वालियर में संगीत कला खूब फली फूली। उनके आश्रय में ख्याल शैली के प्रथम शास्त्रीय घराने का भी जन्म हुआ। ग्वालियर शैली जिसे लश्करी गायकी के नाम से भी जाना जाता है। इसकी स्थापना का श्रेय हद्दू खाँ, हस्सू खाँ और नत्थू खाँ को जाता है। इन्ही तीनों भाईयों को द्रुत गति वाली ख्याल गायकी की शैली के आविष्कार का श्रेय है। इस शैली में ''कलावंत और ''कब्बाली का मिश्रण देखने को मिलता है। हद्दू खाँ और हस्सू खाँ के वंशजों और शिष्यों में रहमत खाँ और हुसैन खाँ ने भी संगीत के क्षेत्र में काफी ख्याति प्राप्त की।
संगीत परंपरा की इसी कडी में शंकर पंडित ने आधुनिक काल में लोक प्रियता का परचम लहराया। उनके सुपुत्र श्री कृष्ण राव पंडित भी उच्च कोटि के संगीत कलाकार थे। इन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत की बहुरंगी धरोहर को सहेजने के लिये शंकर गांधर्व महाविद्यालय का संचालन भी किया। शंकर पंडित के एक शिष्य राजा भैया पूँछवाले भी श्रेष्ठ ''ख्यालियों में शुमार रहे हैं। श्री कृष्णराव शंकर पंडित की नातिन मीता पंडित भी वर्तमान दौर में ग्वालियर घराने की संगीत की परंपरा का परचम सारी दुनिया में लहरा रही हैं।
उस्ताद अलाउद्दीन खां और वर्तमान में सरोद वादन से स्वर लहरियां बिखेर रहे उनके सुपुत्र विख्यात सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खां भी ग्वालियर से वास्ता रखते हैं। उस्ताद अमजद अली खां के पुत्रगण श्री अमान अली व अयान अली ने भी संगीत के क्षेत्र में खूब ख्याति अर्जित कर ली है। इससे जाहिर होता है कि वाद्य संगीत के क्षेत्र में भी ग्वालियर ने एक से एक अद्वितीय कलाकर दिये हैं। गणपतराव शिंदे उर्फ भैयाजी भी प्रमुख हरमोनियम कलाकार रहे हैं, जिन्हें हारमोनियम वादकों का राजकुमार कहा जाता था। सितार वादकों में फजल हुसैन का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। 

अमृत समान है गौ मूत्र

  • मेनका गांधी 


पिछले सप्ताह मैं दिल्ली के बाहर एक गांव में एक छोटी सी गौशाला का उद्घाटन करने गई थी। समारोह के पश्चात गौशाला समिति के प्रमुख ने मुझे साफ किए हुए (डिस्टिल्ड) गौ मूत्र की एक बोतल दी। मैंने पूछा कि इसका क्या करना है। उसने कहा इसे पी लीजिए, यह शरीर को साफ करता है। मैं एक पशु प्रेमी हूं परंतु गाय का मूत्र पीना मेरी सीमा के बाहर है। मैंने उसे ले लिया और उसे एक कुत्ते पर उसे आजमाने का निर्णय लिया जिस पर पिस्सू तथा टिक थे। हमने उस पर गौमूत्र मला और कुछ देर तक धूप में रखने के पश्चात उसे साबुन से नहला दिया। पिस्सू और टिक गायब हो गए तथा मूत्र की भी कोई गंध नहीं रही थी। मैं अब इसे अपने पशु अस्पताल में भेज रही हूं ताकि परजीवी वाले अन्य पशुओं पर इसको आजमाया जा सके। गौमूत्र को पीने वालो के अनुसार इसके कई लाभ होते हैं-यह पाचन शक्ति तथा बुद्धिमता में सुधार करता है, यह पेट के कोलिक दर्द तथा सूजन के उपचार में उपयोगी होता है। यह आंत के कीड़ों तथा त्वचा रोग, मोटापे, एनीमिया जैसी स्थितियों में भी लाभदायक होता है। यह प्राकृतिक रूप से विष समाप्त करने का भी कार्य करता है। स्पष्ट रूप से इसे पहले उबाला तथा साफ किया जाना चाहिए। साफ किया गया गौमूत्र बेचने वाली कई कंपनियां है। परंतु यदि आपको ताजा मूत्र मिले तो आप इस प्रकार इसे साफ कर सकते है। इसे एक प्रेशर कूकर में डाले। ऊपर की ओर मुख पर जहां सामान्यत: सीटी होती है, वहां एक उष्मा प्रतिरोधी पाइप लगाए। पाइप का दूसरा सिरा पानी में डुबो कर रखे गए एक साफ बर्तन में डूबा हुआ होना चाहिए। मूत्र को प्रेशर कूकर में गर्म करें और साफ किए गए मूत्र को एक बर्तन में इक_ा करें। प्रेशर कूकर का उपयोग किसी और चीज के लिए मत करें। साफ किए गए मूत्र को एक हवाबंद डिब्बे में सुरक्षित रखे जाने पर उसका उपयोग 1-2 माह तक किया जा सकता है। दिन में एक या दो बार गाय के मूत्र की 3-4 बूंदे पीने से शुरू करें। एक सप्ताह पश्चात इसे बढ़ा कर दिन में दो बार एक चम्मच कर दें। तथापि, इसमें कई सारे कार्य किया जाना और न किया जाना शामिल है- पहले यह जांच लें कि गाय स्वस्थ है या नहीं। गाय के कच्चे मूत्र को एक घंटे से अधिक तक इक_ा करने मत रखे। गौमूत्र को निर्धारित की गई अवधि के लिए ही लें। जैसेकि यदि खराब हाजमे के लिए लिया गया है तो केवल तब तक लें जब तक कि हाजमा ठीक न हो जाएं। इसे मत ले यदि आप बहुत पतले, कमजोर, थके हुए, थकान से ग्रस्त, पुरूष नपुंसकता तथा नींद न आने की बीमारी से ग्रस्त हैंै। इसे बच्चों को नहीं दिया जाना चाहिए। याद रखें कि गौमूत्र का उपचार पोषक नहीं है। इसकी प्रकृति विष हटाने तथा सफाई करने वाली है।
कई आयुर्वेदिक दवाएं गौमूत्र का उपयोग एक अवयव के रूप में करती है- शिव गुटिका, पंचगव्यघृता, महापंचगव्यघृता, गोमूत्र हरीतकी, मंदोरा वटकम। कुछ आयुर्वेदिक दवाओं में उनके सेवन के साथ-साथ गौमूत्र पीने की सिफारिश की जाती है- पूर्णावदी कश्यम, महायोगराज गूगल - एनीमिया के उपचार में। व्योशदी गूगल, खडीराडी कश्यम - कीड़ों के संक्रमण, कंकायन वटी - कफ उत्पत्ति वाली पेट की गांठ के उपचार के लिए। इसका उपयोग एक हर्बल पाउडर पथयादि लेप चूर्ण के साथ एक लेप के रूप में किया जाता है जिसका उपयोग डर्मेटाइटिस जैसे त्वचा रोगों से मुक्ति के लिए होता है। इसका उपयोग लौहभस्म बनाने की प्रक्रिया में किया जाता है। हमारे प्राचीन ग्रंथ जैसेकि अर्थववेद, चरक संहिता, रजनी घुंटू, वृधाभागाभट, अमृतसागर, भव्यप्रकाश, सुश्रत समहिता गौमूत्र के लाभों का गुणगान करते हैं। गाय मूत्र उपचार तथा अनुसंधान केन्द्र, इंदौर ने अनुसंधान किया है और यह दावा करता है कि इससे मधुमेह, रक्तचाप, अस्थमा, सोराइसिस, खाज, हृदय रोग, धमनियां अवरूद्ध होने, दौरा पडऩे, कैंसर, बवासीर, प्रोस्टेट, आर्थराइटिस, माइग्रेन, थाइराइड, अल्सर, एसीडिटी, कब्ज, स्त्री रोग की समस्याओं, कान तथा नाक की परेशानियों, नस फूलना, दाद, त्वचा समस्याएं, मुंहासे का उपचार करने में समर्थ है। प्रमुख दावा एड्स का उपचार करने का है - कितना अच्छा हो यदि यह दावा सही निकले। ग्रामवासी अब गौमूत्र का उपयोग एक संक्रमण हटाने वाले के रूप में करते हुए इसे अपने घावों पर मलते है। गौमूत्र का विश्लेषण दर्शाता है कि इसमें नाइट्रोजन, सल्फर, एमोनिया, कॉपर, फॉस्फेट, सोडियम, पोटेशियम, मैगनीज, कार्बोलिक एसिड, लौह, यूरिक एसिड, यूरिया, सिलीकॉन, क्लोरीन, मैगनेशियम, कैल्शियम सॉल्ट, विटामिन ए, बी, सी, डी, ई, मिनरल, लैक्टोस, एन्जाइम, क्रिटेनिन, औरम हाइड्रोऑक्साइड होता है। मैं इसे भले ही न पीऊं, परंतु मैं निश्चित रूप से यह मानती हूं कि इसका उपयोग कीटनाशक तथा जैव ऊर्वरक दोनों के रूप में किया जा सकता है। सैंकड़ों मामले अध्ययन किए गए हैं। एक में महाराष्ट्र में काली तलावडी में 11 किसानों ने एक ऐसा क्लब बनाया जो गौमूत्र का उपयोग कपास, मूंगफली, मक्का, अरंडी, मिर्च की फसलों पर जैव ऊर्वरक के रूप में करता है। वे कहते हैं कि प्रति एकड़ में 100-200 लीटर का छिड़काव फसलों का उत्पादन बढ़ा देता है और उत्पादन की लागत तो कम करता ही है क्योंकि मूत्र को गांवों की गायों से एकत्र किया जाता है। किसानों ने सूचित किया कि मिर्च के उत्पादन में 10 प्रतिशत और मक्के के उत्पादन में 15 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। इस क्लब से किसान सभी पशुओं को एक शेड के नीचे लाकर रात में मूत्र एकत्र करते हैं। दो वर्ष में उन्होंने 1.7 लाख लीटर गौमूत्र को एकत्र किया और 2.50 रुपए प्रति लीटर की दर से 1.68 लीटर बेच कर 4.2 लाख रुपए कमाएं। वर्तमान में उस क्षेत्र में 107 परिवार जैव ऊर्वरक के रूप में गौमूत्र का उपयोग कर रहे हैं और वे कहते हैं कि यदि गाय के मूत्र का उपयोग 3 वर्षों तक खेतों में किया जाए तो आपको फिर कभी रसायनिक ऊर्वरक तथा कीटनाशकों की आवश्यकता नहीं होगी। मेरा यह दृढ़ मत है कि गाय तथा भैंस हमारे सभी कृषि मुद्दों का समाधान हैं। यदि वह सरकार जिसने हमारे किसानों को रसायनिक निर्भरता के लिए बाध्य किया है केवल यह समझ लें कि गाय इस जंजाल से हमें बचा सकती है और उसे चमड़े तथा मांस निर्यात के लिए हत्या किए जाने से रोक लें, तो हमें सस्ता भोजन, कैंसर के कम मामले और काफी अधिक अच्छी अर्थव्यवस्था मिलेगी।
आग्रह-पशु कल्याण आंदोलन में भाग लेने के लिए कोई भी इच्छुक हो तो श्रीमती मेनका गांधी से 14, अशोक रोड, नई दिल्ली-110001 से संपर्क कर सकता है।

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