पंचतत्व में विलीन हुए गुजराल

पंचतत्व में विलीन हुए गुजराल
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नई दिल्ली | देश के पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल का आज अपराह्न तीन बजे पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार कर दिया गया। इससे पहले पूर्व प्रधानमंत्री का पार्थिव शरीर उनके निवास स्थान 5 जनपथ पर लोगों के दर्शनार्थ रखा गया। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने शुक्रवार शाम को विशेष बैठक बुलाकर शोक संदेश पारित किया जिसमें गुजराल को महान देशभक्त, दूरदर्शी नेता एवं स्वतंत्रता सेनानी बताया गया। गुजराल के निधन पर सरकार ने देश में सात दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया है। वर्ष 1990 के दशक में गठबंधन सरकार का नेतृत्व करने वाले पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल का शुक्रवार अपराह्न 3.27 बजे 93 साल की उम्र में निधन हो गया। गुजराल पिछले काफी समय से बीमार चल रहे थे। गुड़गांव के मेदांता मेडिसिटी अस्पताल में उनका चल रहा था। गुजराल को फेफड़े में संक्रमण की शिकायत की वजह से 19 नवंबर को अस्पताल में भर्ती कराया गया था और इसके बाद से उन्हें वेंटिलेटर के सहारे रखा गया था। पाकिस्तान के झेलम शहर में 4 दिसम्बर 1919 को जन्मे गुजराल स्वतंत्रता सेनानी के परिवार से थे और कम उम्र में ही सक्रिय रूप से स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया था। वर्ष 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान वह जेल गए थे। डीएवी कॉलेज, हेली कॉलेज ऑफ कॉमर्स और फोरमैन क्रिश्चियन कॉलेज लाहौर (अब पाकिस्तान में) से शिक्षित गुजराल ने छात्र राजनीति में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया। वह अप्रैल 1964 में राज्यसभा के सदस्य बने और उस ‘समूह’ के सदस्य बने जिसने 1966 में इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने में सहयोग किया था। जब आपातकाल लागू हुआ (25 जून 1975) तो वह सूचना एवं प्रसारण मंत्री थे जिसमें मनमाने तरीके से प्रेस सेंसरशिप लगा था। लेकिन उन्हें जल्द ही हटा दिया गया। गुजराल 1964 से 1976 के बीच दो बार राज्यसभा के सदस्य रहे, 1989 और 1991 में लोकसभा के सदस्य रहे। पटना लोकसभा सीट से उनका निर्वाचन रद्द होने के बाद लालू प्रसाद के सहयोग से वह 1992 में राज्यसभा के सदस्य बने। गुजराल 1998 में पंजाब के जालंधर से लोकसभा में अकाली दल के सहयोग से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुने गए। उनकी सरकार का विवादास्पद निर्णय 1997 में उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन की अनुशंसा करना था। तत्कालीन राष्ट्रपति के.आर. नारायणन ने उस पर दस्तखत करने से इंकार कर दिया और पुनर्विचार के लिए इसे सरकार के पास वापस भेज दिया। उनकी पत्नी शीला गुजराल कवयित्री और लेखिका थीं जिनका निधन 2011 में हो गया। उनके भाई सतीश गुजराल मशहूर पेंटर और वास्तुविद हैं। उनके परिवार में दो बेटे हैं जिनमें एक नरेश गुजराल राज्यसभा के सदस्य और अकाली दल के नेता हैं।


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