विमर्श

बाल ठाकरे-मैं हूं- 'न
- अतुल तारे
न केवल मुंबई, न केवल महाराष्ट्र अपितु देश के लिए बाल ठाकरे का होना किसी भी राष्ट्रीय संकट के समय एक आश्वास्ति का नाम कल तक था। उनका होना ही एक विश्वास की उपस्थिति का पर्याय था कि 'मैं हूं न। पर आज यह एक कटु सत्य है कि बाल ठाकरे अब हमारे बीच में नहीं है। कहते हैं कि मुंबई किसी के लिए ठहरती नहीं है। रफ्तार का दूसरा नाम है मुंंबई। पर आज मुंबई ठहर गई। आज मुंबई नि:शब्द थी। दादर (मातोश्री) से शिवाजी पार्क की दूरी महज डेढ़ किलोमीटर की है पर आज बाल ठाकरे की अंतिम यात्रा का डेढ़ किलोमीटर का यह सफर लगभग साढ़े छह घंटे में तय हुआ। लगभग 20 लाख जनों ने बाल ठाकरे को अपनी अंतिम विदाई प्रत्यक्ष रूप से दी। देश भर में सारे चैनल्स पर सुबह से देर रात तक सिर्फ और सिर्फ एक ही खबर थी बाल ठाकरे नहीं रहे और देशवासी नम आंखों से अपने नेता को इतनी दूर जाते देख रहे थे जहां से कोई आज तक वापस नहीं आया। क्या बाल ठाकरे सिर्फ मराठीजनों के नेता थे? क्या वे सिर्फ महाराष्ट्र के नेता थे? या वे पूरे देश के राष्ट्रवादियों के लिए भी एक विश्वास के पर्याय थे? नि:संदेह शिवसेना का वजूद मुंबई एवं मुंबई के आसपास के क्षेत्रों में सर्वाधिक है। संपूर्ण महाराष्ट्र में शिवसेना का प्रभावी राजनीतिक अस्तित्व नहीं है और महाराष्ट्र की सीमा से बाहर तो लगभग नगण्य है। राजनीतिक धरातल की इस कसौटी पर शिवसेना को एक क्षेत्रीय ताकत का दर्जा ही दिया जा सकता है। पर स्वयं बाला साहेब ठाकरे जो समय समय पर दो टूक बिना लाग लपेट अपनी बात रखते थे उसकी स्वीकार्यता का दायरा पूरे देश में था। यह सच है इस स्वीकार्यता में देशभर में रत अन्य राष्ट्रवादी संगठनों का भी अहम योगदान था पर इसमें उनकी भूमिका को भी नकारना गलत होगा। पर अब एक प्रश्न इससे भी कहीं अधिक गंभीर है। वह प्रश्न मात्र यहां तक सीमित नहीं है कि शिवसेना का अब क्या होगा? राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे का मिलाप होगा या नहीं होगा? बेशक इन प्रश्नों का न केवल महाराष्ट्र की राजनीति पर अपितु देश की राजनीति पर निर्णायक असर होगा। पर बाल ठाकरे का अवसान ऐसे निर्णायक संघर्ष की बेला में हुआ है वह भविष्य में कई आशंकाओं को जन्म देता है। कारण आज ऐसे राष्ट्रवादियों की देश को आज बेहद आवश्यकता है जो बिना राजनीतिक नफा नुकसान का आकलन किए वह बात साफ शब्दों में कहें जो राष्ट्रद्रोहियों के गाल पर सीधा तमाचा हो। आज इस तमाचे का ही असर है कि चाहे गुजरात हो या महाराष्ट्र जहां भी इसकी गूंज हुई देशद्रोही ताकतों ने अपने आपको समेटे रखा। निश्चित रूप से अब जबकि बाल ठाकरे नहीं है तो ऐसी परिस्थिति में देशभर में देश को तोडऩे वाली ताकतों को उनके निधन से ऑक्सीजन मिलेगी जो एक खतरनाक आशंका है। बाल ठाकरे ने अपने अंतिम भाषण में जो उन्होंने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए शिवसैनिकों को विजयादशमी पर दिया उसमें कहा था कि अब तक शिवसेना की देखरेख उन्होंने की अब वे शिवसेना को उन्हें ही सौंपते हैं। शिवसेना को सिर्फ एक राजनीतिक दल के नाते न देखें तो इसके विस्तारित अर्थ में यह देश भगवान शिव का ही है, वीर शिवाजी का है, महाराणा प्रताप का है, वीर सावरकर का है, डॉ. केशव बालीराम हेडगेवार का है और उनका सब का है जो इस देश की मिट्टी से जुड़े हैं जिनकी आस्था इस देश की चिति में है। अत: बाला साहेब की कार्य पद्धति पर बहस की गुंजाइश बरकरार रखते हुए भी उनकी विचारों की विरासत वस्तुत: देश के मूल विचार ही हैं, देश का वैचारिक अधिष्ठान ही है। अत: दुख के इन क्षणों में देश के समस्त राष्ट्रभक्तों का कर्तव्य है कि वह अपनी दहाड़ से समवेत स्वरों में ऐसा नाद करें कि राष्ट्रघाती शाक्ति अपने फन फैलाने का दुस्साहस ही न कर सके। मुझे लगता है यही बाला साहेब ठाकरे को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। अंतिम प्रणाम
और अंत में:- बाला साहेब आज आप जहां भी है क्या अपने ही कहे शेर को मुंबई की सड़कों पर सार्थक होता देख रहे हैं? आपको याद है आप क्या कहते थे
भगवान ये आरजू है, जिस शान से आया हूं
जब यहां से जाऊं, तब फिर उसी शान से जाऊं
बारम्बार अंतिम प्रणाम।