Home > Archived > जनमानस

जनमानस

अतिशबाजी भारतीय परंपरा नहीं

दीपावली पर अतिशबाजी चलाना हमारी भारतीय परम्परा कभी नहीं रही, यह प्रचलन अरब देश और पश्चिम की देन है। प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए की अतिशबाजी चलाकर हम अपने वैभव का प्रदर्शन करते है। अतिशबाजी चलाना विध्वसंक मानसिकता का परिचायक है। कहीं नअंतस में विध्वंंसक विद्रोह होता है। जिसे हम अतिशबाजी चलाकर क्षणिक दिली संतोष पा लेते हैं। ऐसा कहा जाए तो अतिश्योक्ति न होगी, कि बारूद विस्फोटक पदार्थ हिंसा को प्रेरणा देते हैं। बारूद दहन से उत्पन्न होने वाला कार्बन युक्त सल्फर आक्साइड का धुंआ प्राणों के लिए घातक है। दमा के रोगियों के लिए तो और भी खतरनाक साबित होता है। बेचारे निरीह मूक पक्षी-पशु विध्वंसकारी धमाकों की आवाज से भयभीत रहते है। और कई काल के गाल में भी समा जाते है। पर्यावरण बिगड़ता है सो अलग ध्वनि एवं वायु प्रदूषण को ग्राफ दिपावली पर बढ़ जाता है। कर्ण भेदी धमाकों और आंखों को चुधियां देने वाले प्रकाश में हम कैसा आनन्द खोजते हैं। समझ से परे है। खुशियों में दीप जलाएं मंगलगान करें, नृत्य करें, नव सृजन करे, सुबह से देर रात तक धमाके चलाकर कैसा विकृत आनन्द हम खोज रहे हैं।


कुवर वी.एस. विद्रोही, ग्वालियर

Updated : 17 Nov 2012 12:00 AM GMT
Next Story
Top