ज्योतिर्गमय
स्वास्थ्य संपत्ति है
आज, अस्पतालों में कितने बिस्तर लोगों के लिए उपलब्ध हैं, यह शहरीकरण और आर्थिक उन्नति का मापदंड बन गया है। वास्तव में इसका उल्टा होना चाहिए। स्वास्थ्य-सेवा का परम उद्देश्य यह होना चाहिए कि अस्पतालों की ज़रुरत ही न पड़े । आजकल लोग अपना आधा स्वास्थ्य धन कमाने में गँवा देते हैं और फिर सारा धन तन को वापस स्वस्थ करने में लगा देते हैं और इसे हम प्रगति की निशानी कहते हैं।
पुराने समय में कोई सी.टी.स्कैन या एम.आर.आई नहीं थे फिर भी उस समय का स्तर आजकल के समय से कहीं ऊँचा था। लोग दीर्घ और स्वस्थ जीवन जीते थे और सबसे महत्वपूर्ण यह कि अधिक खुशहाल थे।
हमें शहरी स्वास्थ्य सेवा के प्रति समग्र दृष्टिकोण रखना चाहिए। सिर्फ स्वास्थ्य-सेवा की मूल सुविधाओं को उपलब्ध कराने से स्वस्थ समाज का निर्माण नहीं होगा। आज समाज में नफरत है, लालच है, भय है जिसकी वजह से लोगों के मन में अवसाद और तनाव पैदा हो गया है। शहरी स्वास्थ्य समस्याओं का सबसे बड़ा कारण तनाव है। बड़ी चिंताजनक बात है कि आनेवाले दशकों में अवसाद दुनिया की पहले नंबर की बीमारी होगी। तो स्वस्थ होना किसे कहते हैं? अगर आप अन्दर से रुखा महसूस कर रहे हैं तो आप स्वस्थ नहीं हैं; अगर आपका मन अशांत और कड़ा है तो आप मानसिक स्तर से स्वस्थ नहीं हैं। अगर आपकी भावनाओं में रूखापन है तो आप भावनात्मक स्तर पर स्वस्थ नहीं हैं।
सम्पूर्ण स्वास्थ्य की स्थिति को प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को मानसिक रूप से शांत, स्थिर और भावनात्मक रूप से कोमल होना चाहिए। लेकिन आज की तेज़-रफ्तार जिन्दगी में इस स्थिति को पाना आसान नहीं है।
हम दंत स्वास्थ्य, शारीरिक स्वास्थ्य पर तो ध्यान देते हैं, लेकिन मानसिक स्वच्छता के बारे में भूल गए हैं जो सबसे ज़रूरी है। मानसिक सेहत है अच्छी ग्रहण शक्ति, अच्छी विश्लेषण शक्ति और अच्छी अभिव्यक्ति। हमारा मन एक डिब्बे की तरह है। हम बस इसमें चीजें डालते जाते हैं और इसकी स्वच्छता पर ध्यान ही नहीं देते। इस तरह तनाव को हम इकठ्ठा किये जा रहे हैं और अपने स्वास्थ्य को बर्बाद कर रहे हैं। अपने तनाव-स्तर को सम्भालने के दो तरीके हैं। पहला, हम अपने मानसिक और शारीरिक कार्यभार को कम कर दें। यह बड़ा नामुमकिन सा लगता है। इसका दूसरा तरीका यह है कि हम अपने उर्जा के स्तर को बढ़ा लें। प्राणायाम, ध्यान और योग जैसी मनोशारीरिक क्रियाएँ हमारे उर्जा और प्राण के स्तर को बढ़ाने में अद्भुत परिणाम दे सकतीं हैं। योगाभ्यास से तनाव और नकारात्मक भावनाओं को हम बाहर निकाल कर फेंक सकते हैं। योग हमारी शारीरिक तंत्र को तनाव मुक्त रखने का एक आसान तरीका है। ध्यान आत्मा का आहार है और वह हमारे अंदर की संपत्ति को उजागर करता है। ध्यान हठी विचारों और पूर्वाग्रहों को मिटा देता है और रोज़मर्रा की जि़न्दगी के तनावों को भी मिटा देता है। ये निद्रा से सौ गुणा अधिक स्फूर्ति देता है क्योंकि ये हमें वर्तमान क्षण में जीने में सहायक है और भूतकाल के क्रोध और भविष्य की चिंता से मुक्त कराता है।
योग, प्राणायाम और ध्यान जैसे अभ्यास आपको सिर्फ शारीरिक ही नहीं बल्कि मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य भी देते हैं, और यही सच्ची संपत्ति है।