अग्रलेख

महाराष्ट्र में हुई कुछ उथलपुथल
- मा.गो. वैद्य
मराठी में 'घडामोड (बनना-बिगडना) यह एक बहुत अच्छा अर्थवादी शब्द है। 'घडामोड मतलब जिसमें कुछ बनता है और कुछ बिगड़ता भी है। बात सही तरीके से बनती नहीं रहती और सीधे बिगड़ती भी नहीं. लेकिन कभी-कभी 'बिगड़ते रहती है। ऐसा ही अभी महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस में हुआ।
चर्चा प्रासंगिक
महाराष्ट्र में अभी जो गठबंधन की सरकार सत्तारूढ़ है, उसमें उपमुख्यमंत्री अजित पवार के त्यागपत्र से 'बनना-बिगडऩा शुरू हुआ है ऐसा कहना गलत साबित हो सकता है। लेकिन सत्तारूढ़ गठबंधन की दूसरे क्रमांक की पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस में निश्चित ही जो बनने-बिगडऩे की क्रिया शुरू हुई, उसका निर्णय आज की स्थिति में लग चुका है। इस पार्टी की उथलपुथल पर सरकार का भविष्य निर्भर था। इसलिए उसकी चर्चा प्रासंगिक है।
राकां का महत्व
कांग्रेस पार्टी के पास, महाराष्ट्र विधानसभा की 288 में से 86 सीटें हैं, तो राकां के पास 62. दोनों मिलाकर 148 सीटे होती हैं और इस गठबंधन को बहुमत प्राप्त होता है। कुछ निर्दलीय भी इस गठबंधन के साथ हैं, ऐसा बताया जाता है, लेकिन उनकी संख्या और प्रभाव भी नगण्य है। जिसकी चिंता करनी चाहिए ऐसी एकमात्र पार्टी है राकां. विद्यमान सरकार में उपमुख्यमंत्री पद अजित पवार के पास था। वे, राकां के सर्वेसर्वा शरद पवार के भतीजे हैं। रिश्तेदारी के इस संबंध का भी महत्व है।
अजित पवार
2009 के विधानसभा के चुनाव के बाद फिर इस गठबंधन को सत्ता मिली। 2004 से 2009 में भी वे सत्ता में थे। उस समय उपमुख्यमंत्री छगन भुजबल थे। लेकिन 2009 में वे उपमुख्यमंत्री न बने, ऐसी इच्छा पश्चिम महाराष्ट्र का प्रतिनिधित्व करने वाले अजित पवार की थी; स्वयं उपमुख्यमंत्री बने ऐसी उनकी तीव्र इच्छा थी और इस बारे में उन्हें पश्चिम महाराष्ट्र के अधिकांश विधायकों का समर्थन था। ऐसा कहा जाता है और वह सच भी होगा 62 में 60 विधायक अजित पवार के समर्थक हैं। यह वस्तुस्थिति ध्यान में लेकर चाणक्य चाचा ने, भतीजे को उपमुख्यमंत्री पद पर आरूढ़ होने की सहमति दी। उपमुख्यमंत्री बने अजित पवार के पास अर्थ और जलसंपदा यह दो महत्वपूर्ण विभाग थे।
महाराष्ट्र का सिंचाई विभाग
सरकारी सिंचाई प्रकल्पों में बहुत बड़े घोटाले होने के आरोप गत अनेक माह से हो रहे हैं। तब आघात लक्ष्य मंत्री सुनील तटकरे थे। वे भी राकां के ही हैं। भाजपा के नेता किरीट सोमय्या ने भ्रष्टाचार के आंकड़ें देकर तटकरे के विरुद्ध आरोप किए हैं। अब यह मामला उच्च न्यायालय में गया है, इस कारण उस संदर्भ में अधिक लिखना उचित नहीं। लेकिन अजित पवार के बारे में बात कुछ और थी। यह सच है कि जलसंपदा विभाग के मुख्य अभियंता विजय पांढरे ने सरकार पर भी कुछ गंभीर आरोप लगाए थे। उन आरोपों की जानकारी उन्होंने पत्र लिखकर मुख्यमंत्री और राज्यपाल को भी दी थी। बताया जाता है कि, राज्यपाल ने इस पत्र को गम्भीरता से लिया और अजित पवार ने तुरंत त्यागपत्र देने का निर्णय लिया। गत दस वर्षों में सिंचाई प्रकल्पों पर 60 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए; और सिंचाई की क्षमता केवल 1/10 प्रतिशत ही बढ़ी! जून से अगस्त 2009 केवल इन तीन माह की अवधि में 20 हजार करोड़ रुपयों के 32 प्रकल्पों को मंजूरी दी गई। विदर्भ के लिए सिंचाई में करीब एक वर्ष के लिए एक हजार करोड़ रुपयों का बजट रहता है। वह छह गुना बढ़ा। मजेदार बात यह है कि बांध बनाना हो तो जमीन अधिग्रहित करनी पड़ती है; लेकिन घोटाले करने के उत्साह और जल्दबाजी में यह मूलभूत प्राथमिक काम भी नहीं किया गया! इस बारे में पैनगंगा नदी के बांध का उदाहरण पर्याप्त है। यह एक बड़ा बांध है। महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश मिलकर उसे बना रहे हैं। इसके लिए 13 हजार हेक्टर जमीन का अधिग्र्रहण करने की आवश्यकता है। जबकि वास्तव में केवल 325 हेक्टर जमीन का ही अधिग्र्रहण हुआ है। लेकिन टेंडर सब प्रकल्पों के लिए हैं! नियमों का पालन न करना, अपात्र ठेकेदारों को ठेके देना, उन्हें सैकड़ों करोड़ रुपये अग्रिम राशि देना आदि अन्य आरोप भी हैं। उन आरोपों की सुई अजित पवार की दिशा में ही मुड़ी है।
कांग्रेस की चरित्र शैली
लेकिन, ऐसे आरोपों से कांग्रेस और उसी के पेट से निकले राकां के विचलित होने का इतिहास नहीं। 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला, राष्ट्रकुल क्रीड़ा घोटाला, लवासा घोटाला, आदर्श इमारत घोटाला या अभी अभी का कोयला घोटाला, ये घोटाले विस्मृति में खो जाने लायक पुराने नहीं हुए हैं। किसी ने स्वयं त्यागपत्र दिया? नहीं. पानी सर तक आने के बाद, ए. राजा इस मंत्री ने त्यागपत्र दिया। वह द्रमुक के हैं। कांग्रेस के सांसद सुरेश कलमाडी की भी वहीं कहानी। दिल्ली में कांग्रेस प्रशासन की मुश्किल होने लगी तब उन्होंने त्यागपत्र दिया। कोयला खदान बटंवारे के घोटाले की संसद और संसद के बाहर इतनी चर्चा हो रही है। कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जयसवाल ने त्यागपत्र दिया? महाराष्ट्र में भुजबल और तटकरे पर भी गंंभीर आरोप लगे है। लेकिन अभी भी वे मंत्री पद से चिपके हैं। ऐसी पृष्ठभूमि और चरित्रशैली के रहते, अजित पवार एकदम त्यागपत्र दे, यह अनोखी बात है। उन्होंने कहा है कि, श्वेतपत्र निकालने में मुझे आपत्ति नहीं। निश्पक्ष जांच समिति से जांच हो। लेकिन मेरा त्यागपत्र का निर्णय पक्का है। इतना पक्का कि जांच में निर्दोष साबित होने के बाद भी, मैं त्यागपत्र वापस नहीं लूंगा।