जनमानस
तब मीडिया कहां था?
हरियाणा सरकार में सेवा दे रहे वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अशोक खेमका के तबादले को राष्ट्रीय एवं प्रदेश के कई हिस्सों में मीडिया में काफी स्थान मिल रहा है। चाहे वह प्रिंट मीडिया हो या फिर इलेक्ट्रॉनिक। बताया जा रहा है कि अशोक खेमका एक ईमानदार अधिकारी हैं। सरकार कोई भी रही हों लेकिन बताया जाता है कि अशोक खेमका की 21 साल की सर्विस में लगभग 42 बार तबादला किया गया है। इसमें यह सवाल उठना लाजमी है कि अगर मीडिया की इनके प्रति इतनी संवेदना है तो जब अशोक खेमका का 20 साल की सर्विस में 40 बार तबादला हुआ था तब मीडिया कहां था? तब उन्हें इतनी अहमियत क्यों नहीं दी गई? अगर उन्हें अहमियत दी जाती तो शायद उनका 42वां तबादला करने से पहले हरियाणा सरकार को 100 बार सोचना पड़ता। खेमका का तबादला भी नहीं होता और सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ड वाड्रा का केस इन्हीं के हाथ होता।
सुमित राठौर, ग्वालियर
पर उपदेश कुशल बहुतेरे
शहर की पुलिस 'पर उपदेश कुशल बहुतेरे की तर्ज पर काम कर रही है। पुलिस के जवान नाइट गस्त (राउण्ड) करते समय ए.टी.एम. एवं अन्य प्रतिष्ठिानों पर जाकर सिक्योरिटी गार्डों को डाट डपट कर पुलिसिया रौब झाड़ते हैं। और जागकर ड्टूयी करने का आदेश देते हैं। और खुद थानों पुलिस चौकियों पर विस्तर लगाकर सोते हैं। गस्त करने वाले जवान खुद अफसरों की निगाह बचाकर घण्टे दो घण्टे की झपकी इधर उधर मार लेते हैं। तीन चार हजार रुपए में 12 घंटे ड्यूटी करने वाले बेचारे सिक्योरिटी गार्ड जो कुर्सी पर बैठे बैठे अगर भूल से झपकी लेते पकड़ा जाता है तो गुनाह माना जाता है। क्या सारे नियम कानून गरीब आदमी के लिए ही बने है? दो पैसे की नौकरी और दो लाख की जिम्मेदारी निभाने वाले सिक्योरिटी गार्डों के बारे में कोई कुछ बात नहीं करता, पुलिस दोस्ताना व्यवहार की जगह बदसलूकी करते हैं। इसी कारण गार्ड महत्व पूर्ण सुरक्षा जानकारियां जानते हुए भी पुलिस को नहीं देते। क्योंकि जानकारी देकर खुद को पुलिस के लपड़े में फसाना है। पुलिस कप्तान महोदय अपने मतहतों को खुद नैतिक व्यवहार की क्लास भी लगानी चाहिए।
कुवर वी.एस. विद्रोही, ग्वालियर