जेएनयू को सियासी अखाड़ा बनाना और इसके निहितार्थ
उम्दा स्तर की शिक्षा के लिहाज से जेएनयू का आज भी कोई सानी नहीं
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- डॉ. रमेश ठाकुर
विवादों से जेएनयू का पुराना नाता रहा है। हिंदुस्तान की यही एक मात्र ऐसी यूनिवर्सिटी है जिसके परिसर में हमेशा कुछ न कुछ होता रहता है। 15-20 दिनों से वहां हंगामा हो रहा था। इस बार विवाद फीस बढ़ोतरी को लेकर हो रहा था। फिलहाल विरोध का पटाक्षेप हो चुका है। सरकार ने जेएनयू के लिए जो नए नियम लागू करने का आदेश दिया था। छात्रों के भारी विरोध के बाद फिलहाल उसे वापस ले लिया है। वापसी का मसौदा एचआरडी मंत्रालय एकाध दिनों में जेएनयू प्रशासन को भेज देगा। कॉलेज में फिर से पुराने नियम यथावत रहेंगे। वैसे देखा जाए, तो जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय पिछले तीन वर्षों से लगातार चर्चा में है।
जेएनयू सन् 2016 से उस समय से चर्चाओं में है, जब वहां देश-विरोधी नारे लगे थे। उस घटना के बाद वहां के पठन-पाठन का माहौल काफी खराब हुआ। यूनिवर्सिटी की इमेज देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी खराब हुई। क्योंकि, जेएनयू में अन्य मुल्कों के छात्र भी पढ़ाई करते हैं। फीस बढ़ोतरी से माहौल और ज्यादा खराब न हो, इसलिए सरकार ने समझदारी का परिचय देते हुए विरोध की लपटों को तुरंत शांत कराया। जेएनयू को वाम विचारधारा का गढ़ कहा जाता है। इसी कारण वहां दो परस्पर विरोधी विचारधाराओं के बीच टकराव होता रहता है। जेएनयू के छात्र फीस बढ़ोतरी और ड्रेस कोड आदि को लेकर जो विरोध कर रहे थे, उसके पीछे भी सियासत होने लगी थी। हालात इस कदर बिगड़े कि पुलिस को भी मोर्चा संभालना पड़ा।
जेएनयू छात्रों की आपत्ति वाली थ्योरी को भी समझना जरूरी है कि आखिर उनका विरोध किस बात का था? दरअसल, कॉलेज में लागू ताजे नियमों के अनुसार हॉस्टल की फीस में बड़ा फेरबदल किया गया था। ऐसा पंद्रह साल के बाद किया गया था। नए नियम के मुताबिक हॉस्टल की फीस में बढ़ोतरी की गई। पहले डबल सीटर कमरे का भाड़ा मात्र दस रुपये महीना हुआ करता था जो सालों से चला आ रहा था। जिसे तीन सौ रुपये कर दिया गया। इसके अलावा सिंगल कमरे का किराया पहले बीस रुपये महीना था, जिसे बढ़ाकर छह सौ रुपये कर दिया गया। इसी बढ़ोतरी का छात्र विरोध कर रहे थे। छात्र संगठनों का कहना था कि कॉलेज प्रशासन ने बिना छात्र यूनियन को सूचित किए गुपचुप तरीके से फीस वृद्धि की। छात्र संगठन कॉलेज प्रशासन से तत्काल प्रभाव से बढ़ी फीस को वापस लेने का दबाव डाल रहे थे। आखिरकार उनकी मांगों को माना गया।
ये बात सौ आने सच है कि उम्दा स्तर की शिक्षा के लिहाज से जेएनयू का आज भी कोई सानी नहीं है। देश ही नहीं, विदेशों में भी यहां से शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्र भारत डंका बजा रहे हैं। हाल ही में अर्थशास्त्र में दिया गया नोबेल पुरस्कार, यहीं से निकले पूर्व छात्र अभिजीत बनर्जी को दिया गया था। दिल्ली स्थित जेएनयू में समूचे हिंदुस्तान से गरीब तबके के छात्र शिक्षा ग्रहण करते हैं। कम से कम 40 फीसदी छात्र ऐसे होते हैं, जो बेहद गरीब परिवारों से आते हैं। उनकी चिंता यही थी कि बढ़ी हुई फीस को वह कैसे चुका पाएंगे? छात्रों के बढ़ते विरोध को देखकर केंद्र सरकार सकते में आई। सरकार पहले दिन से ही उग्र छात्रों के मूवमेंट को शांत कराने में लग गई थी। अनंत: आंदोलनकारी छात्रों को सफलता मिली।
जेएनयू में बीते 11 नवम्बर को दीक्षांत समारोह था। उसमें भाग लेने शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक भी पहुंचे थे। उन्हें देखकर छात्र और उग्र हो गए। छात्रों ने मंत्री के निकलने के सभी रास्तों को अवरोध कर दिया। इस कारण वह कई घंटों तक ऑडिटोरियम में ही फंसे रहे। काफी प्रयास के बाद सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें बाहर निकाला। एचआरडी मंत्री के अलावा दीक्षांत समारोह में उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू भी शामिल होने के लिए पहुंचे थे। उनको भी छात्रों के विरोध का सामना करना पड़ा। उनको भी छात्रों ने घेर लिया। सुरक्षाकर्मियों ने उनको किसी तरह वहां से बाहर निकाला।
बहरहाल, छात्रों का मूवमेंट शांत हो गया है। कुछ दिनों बाद जेएनयू में परीक्षाएं आरंभ होनी हैं। जेएनयू अपनी शिक्षा सभ्यता के लिए दुनिया में विख्यात है। छात्रों पर पुलिस द्वारा पानी की बौछारें मारना, डंडे बरसाना, कतई सुखद नहीं। पुलिस कार्रवाई में कई छात्रों को हल्की चोटें आईं। इसे उचित नहीं कहा जा सकता। लेकिन छात्रों को भी अपनी बात सलीके से कहना चाहिए था। दरअसल, जितनी फीस वृद्धि की गई थी, उससे कहीं ज्यादा पैसा छात्र अपने मोबाइल में फूंक देते हैं। आज के युग में पांच-छह सौ रुपये ज्यादा मायने नहीं रखते। उसके लिए इतना उग्र होना, छात्रों को भी शोभा नहीं देता। शिक्षण संस्थाओं को किसी के कहने पर सियासी अखाड़ा नहीं बनाना चाहिए। छात्रों को शायद नहीं पता कि उनकी आड़ में लोग कितना सियासी लाभ उठा जाते हैं।
(लेखक पत्रकार हैं।)
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