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शांति के टापू पर अशांति का षड्यंत्र ...कौन जलाना चाहता है मप्र को ?

स्वदेश वेब विशेष

शांति के टापू पर अशांति का षड्यंत्र ...कौन जलाना चाहता है मप्र को ?
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स्वदेश वेब विशेष। साफ सुथरी राजनीति करने के बड़े बड़े दावे करते हमने बड़े बड़े नेताओं को देखा और सुना है निश्चित ही आपने भी देखा और सुना होगा लेकिन वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य बिलकुल इससे उलट है। यहाँ माहौल को संभालने की जगह उसे बिगाड़ने के लिए नेता दांव - पेंच आजमा रहे हैं। बड़ी बात ये है कि अब इसमें समाजिक संगठन भी कूद पड़े हैं। नेता एक दूसरे के साथ बयान युद्ध लड़ते लड़ते अब हमलावर भी होने लगे हैं। चुरहट में मुख्यमंत्री के जन आशीर्वाद यात्रा रथ पर पत्थर फेंकना, मुख्यमंत्री की तरफ चप्पल फेंकना और कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया को फेसबुक पर धमकी भरा पोस्ट करना इसके ताजे उदाहरण हैं। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि इसके पीछे क्या कोई षड्यंत्र है। शांति का टापू कहे जाने वाले मध्यप्रदेश को कोई नफरत की आग में जलाना चाहता है, इसे खोजना अब आवश्यक हो गया है।

राजस्थान में राजपूतों की लड़ाई लड़ने वाली राजपूत करणी सेना का अचानक मध्यप्रदेश के एससी एसटी एक्ट के खिलाफ सवर्णों और ओबीसी के समर्थन में खड़ा होना समझ से परे है। 4 सितम्बर को स्वाभिमान सम्मेलन के लिए ग्वालियर की धरती को चुना जाना कई सवाल खड़े करता है, क्या 2 अप्रैल को भारत बंद के दौरान ग्वालियर चम्बल संभाग में हुई हिंसा ने करणी सेना को इसके लिए प्रेरित किया ? क्या इसके पीछे कोई विशेष प्रयोजन है अथवा समाज के रास्ते राजनीति में जाने वाली कोई महत्वाकांक्षा छिपी है ? ग्वालियर के बाद करणी सेना 16 सितम्बर को भिंड और मुरैना में ग्वालियर की तरह ही सम्मेलन करने वाली है। यहाँ भी 2 अप्रैल के आंदोलन में हिंसा भड़की थी, इसके बाद 23 सितम्बर को राजस्थान के चित्तोड़ में स्वाभिमान सम्मेलन आयोजित होगा।

मंच करणी सेना का और मुख्य अतिथि भागवताचार्य देवकीनंदन ठाकुर। सम्मेलन में करणी सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष महिपाल सिंह सरकार के खिलाफ खूब बरसे तो देवकीनंदन ठाकुर के निशाने पर भी देश के सांसद, मंत्री और सरकार रही। उन्होंने अपनी शैली में लोगों को सन्देश दिया कि जो देश को बांटे और जाति के नाम पर वोट मांगे तो उसे नगर से खदेड़ दो। अब उनके इस सन्देश को कितने लोग अहिंसा के साथ मानते है और कितने नहीं ये तो समय ही बताएगा। नेताओं को गद्दार कहते हुए देवकीनंदन ठाकुर ने यहाँ तक कह दिया कि यदि रोका नहीं गया तो जो काम अंग्रेज नहीं कर सके वो काम हमारे देश के नेता कर देंगे। अब इन दोनों सन्देश में कितना आक्रोश छिपा है ये तो देवकीनंदन ही जानते है या वे जिन तक अपना सन्देश पहुँचना चाहते हैं वो जानते हैं। हालांकि उन्होंने ग्वालियर में आने का कारण बुधवार 5 सितम्बर को वृंदावन में आयोजित विप्र सम्मेलन का निमंत्रण देने आना बताया।

अब बात करते हैं राजनेताओं की। हमेशा अपने बयानों से आग में घी डालने का काम करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की भूमिका भी संदेह के घेरे में है। पिछले कुछ वर्षों में आतंकवादियों से उनका प्रेम जग जाहिर चुका है। इसी बीच भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ्तार माओवादियों के पास से मिले दस्तावेजों में कांग्रेस की दोस्ती उसके द्वारा फंडिंग का भरोसा और दिग्विजय सिंह का नंबर लिखा मिलना शंकाओं को जन्म देता है। तो क्या इन सबूतों से ये माना जाये कि मध्यप्रदेश में भी ये माओवादी अपनी जड़ें जमाने लगे हैं और इसकी वजह उसके साथ खड़ी कांग्रेस है। ये जांच का विषय है । लेकिन जिस तरह जेएनयू विवाद में देश तोड़ने वाली ताकतों का साथ, हाफिज सईद जैसे आतंकवादियों का समर्थन, सर्जिकल स्ट्राइक को फर्जीकल स्ट्राइक कहना, प्रधानमंत्री को सैनिकों के खून का दलाल कहना, सेना अध्यक्ष को गुंडा कहना, ये सब कहीं न कहीं कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करता है। माओवादियों से सम्बन्ध होने की बात से हालाँकि दिग्विजय सिंह इंकार कर रहे हैं और कांग्रेस सभी दस्तावेजों को फर्जी बता रही है बल्कि वो गिरफ्तार माओवादियों को सामाजिक कार्यकर्ता बता रही है लेकिन चिट्ठी में केवल मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के मोबाइल का नंबर मिलना शंका बढ़ाता है क्योंकि मध्यप्रदेश के कांग्रेस नेताओं में दिग्विजय सिंह ही ऐसा नाम हैं जो माओवादियों का समर्थन हमेशा से करते रहे हैं।

अब ये समझने की बात है कि शांति के टापू मध्यप्रदेश में कौन अशांति फैलाना चाहता है। हमारी इंटेलिजेंस एजेंसियां इसमें लगीं हैं। मुख्यमंत्री के वाहन पर चिन्हित किये गए कांग्रेसियों की अभी गिरफ्तारी होना बाकी है। सरकार और प्रशासन ने सांसद ज्योतिरादित्य को फेसबुक पर धमकी देने वाले विधायक के बेटे को गिरफ्तार कर ये सन्देश दिया है कि अपराध किसी ने भी किया हो कानून उसे छोड़ने वाला नहीं है। ऐसे में सभी को सतर्क रहना होगा, अपने आसपास हो रही घटनाओं पर नजर रखनी होगी, सोशल मीडिया पर परोसी जा रही आग लगाने वाली पोस्ट में छिपे मंतव्य को पढ़ने, उसमें झाँकने उसके अंदर छिपी नफरत की आग देखने की शक्ति विकसित करनी होगी। वरना वो दिन दूर नहीं जब हमारी आने वाली पीढ़ियां हमें दोष देंगी कि समाजों के बीच नफरत का जहर घोलने वाले मलाई खाते रहे और हमने उन्हें रोकने का प्रयास भी नहीं किया। तो उठो, जागो और अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ते हुए समाज विरोधी ताकतों को रोकने के लिए पथरीले रास्ते पर चल पड़ो। तभी शांति के टापू पर शांति बनी रह पायेगी ।

Updated : 5 Sep 2018 7:08 PM GMT
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Atul Saxena

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