छत्तीसगढ़ ऐतिहासिक जीत के दो सूरमा..
प्रमोद पचौरी
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छत्तीसगढ मे कांग्रेस की ऐतिहासिक जीत मे कांग्रेस के दो धुरन्धर नेताओं की ही अहम भूमिका रही है। इसमे संगठन को मजबूती के साथ खड़ा करने मे भूपेश बघेल और आम जनता में कांग्रेस की सकारात्मक छवि बनाने मे टी.एस.सिंहदेव ने जो मेहनत की वह इस जीत में मील का पत्थर साबित हुई। झीरमघाटी में नक्सलवादियों द्वारा प्रदेश कांग्रेस के समूचे नेतृत्व को खत्म कर देने के बाद एक बारगी तो ऐसा लगा था कि प्रदेश मे कांग्रेस का नेतृत्व करने लायक कोई नेता बचा ही नही। ऐसा लगना लाजमी भी था। विध्याचरण शुक्ला महेन्द्र कर्मा नन्दकुमार पटेल मुदलियार जैसे पहली पक्ंित के नेता शहीद हो चुके थे। दस साल सत्ता से बाहर रहने के कारण पार्टी कार्यकर्ताओं की हताशा और उस पर प्रदेश के शीर्ष नेतृत्व के खत्म होने जाने से पार्टी का आत्मविश्वास शून्य पर था। इसी बीच पार्टी को एक और जबरजस्त झटका अजीत जोगी ने अलग पार्टी बना कर दे दिया था। पार्टी से भारी संख्या मे पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं के जोगी कांग्रेस मे चले जाने से एक समय तो ऐसा लगने लगा था कि कांग्रेस संगठन छत्तीसगढ़ मे लगभग खत्म हो गया। ऐसी जबरजस्त विषम परिस्थितियों मे पार्टी को पुनर्जीवित करने की जिम्मेदारी भूपेश बघेल ने संभाली। भूपेश बघेल ने बेहद आक्रामक और तीखे तेबरों के साथ पार्टी को खड़ा करना शुरू किया पूरी भाजपा रमनसिंह और अजीत जोगी से कड़ा संघर्ष करते हुए भूपेश बघेल कई विवादों मे उलझे मगर संघर्ष जारी रखा और कांग्रेस को आज इस स्थिती मे ला खड़ा किया कि छत्तीसगढ़ मे कांग्रेस आज बेहद मजबूत संगठन बन सका।
टी.एस. सिंह देव
छत्तीसगढ मे लगातार कांग्रेस के बिखराव, जनता के बीच भाजपा और डॉ. रमनसिंह के विकल्पहीनता की स्थिती मे कांग्रेस के प्रति विश्वास और कांग्रेस से सरकार बना पाने का भरोसा आमजन मे पैदा करना सबसे बड़ी चुनौती थी। प्रदेश की आम जनता को मतदाताओं को यह भरोसा देना बेहद कठिन था कि कांग्रेस मे न सिर्फ डॉ. रमनसिंह का विकल्प मौजूद है बल्कि कांग्रेस प्रदेश की जनता के सर्वागींण विकास कर पाने वाली लोकहित की सरकार बना पाने मे सक्षम है। इस चुनौती पूर्ण स्थिती में एक ऐसे चेहरे की जरूरत थी जनता जिसकी बातों पर वादों पर और विश्वसनीयता पर भरोसा कर सके। इस कमी को पूरा करने मे नेता प्रतिपक्ष और अम्बिकापुर के महाराजा टी.एस.सिहंदेव को सामने किया गया। अपनी ईमानदार स्पष्टवादी और बेदाग सामाजिक राजनीतिक चरित्र की सार्वजनिक छवि के लिए चर्चित इस नेता ने कांग्रेस के पक्ष मे लोगों को आकर्षित करने जनघोषणा पत्र का कांन्सेप्ट अपनाया। यानी कांग्रेस वो करेगी जो जनता चाहेगी जनता कहेगी जो जनभावनाओं के अनुरूप होगा। इस कान्सेप्ट को मूर्तरूप देना आसान नही था। पूरे प्रदेश के कोने-कोने मे जाकर हर वर्ग हर सम्प्रदाय हर समाजिक व्यवसायिक संगठन से मिलना उन्हे विश्वास में लेना और जनघोषणा पत्र में उन्हें भागीदार बनाना था। टी.एस.सिंहदेव ने प्रदेश भर में हजारों किलोमीटर की यात्रा कर सैकड़ों बैठकें की। एक लाख लोगों से मुलाकाते की। टीएस सिंहदेव ने सरकार से असंतुष्ट चल रहे शासकीय कर्मचारियों को भी विश्वास में लिया। आंगनबाडी कार्यकर्ता, तृतीय वर्ग चतुर्थ वर्ग दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी नर्स यहां तक कि पुलिस कर्मचारियों को भी अपने विश्वास में लिया। जल जंगल जमीन के मुद्दे पर आदिवासियों को तो कर्जमाफी के मुद्दे पर प्रदेश के किसानों को साथ जोड़ कर टी.एस.सिंहदेव सभी वर्गों के चहेते नेता के तौर पर अपनी पहचान बनाने मे कामयाब रहे। ये एक ऐसा प्रयास था जिसने पूरे प्रदेश को कांग्रेसमय कर दिया। पूरा प्रदेश टी.एस.सिंहदेव को भावी मुख्यमंत्री मान कर कांग्रेस के साथ खड़ा हो गया। परन्तु लोकसभा चुनाव में प्रदेश के सिर्फ पिछडे वर्ग के मतदातों को लुभाने के लिए कांग्रेस हाई कमान ने भूपेश बघेल को मुख्यमंत्री बनाना लाजमी समझा। बावजूद इसके पिछडे वर्ग के ही बेहद ताकतबर साहू समाज ने लोकसभा चुनाव मे कांग्रेस को सबक सिखाने की धमकी दे डाली है। साहू समाज ताम्रध्वज साहू को मुख्यमंत्री देखना चाहता था।
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