चमन महल में गूंजे सुर और विरासत के रंग: ‘हृदय दृश्यम’ की दूसरी संगीत सभा मनमोहक अनुभव

चमन महल में गूंजे सुर और विरासत के रंग: ‘हृदय दृश्यम’ की दूसरी संगीत सभा मनमोहक अनुभव
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जगदीशपुर स्थित ऐतिहासिक चमन महल की शांत, शीतल और रम्य आभा में 'हृदय दृश्यम' के आठवें संस्करण की दूसरी संगीत सभा शनिवार की शाम एक अद्वितीय सांस्कृतिक अनुभव में परिवर्तित हो उठी। मध्यप्रदेश शासन के संस्कृति एवं पर्यटन विभाग द्वारा आयोजित यह तीन दिवसीय आयोजन जैसे-जैसे अपने पड़ावों से गुजर रहा है, संगीत, विरासत और कला का संगम नई संवेदना जगा रहा है।



सितार, बांसुरी और तबले की लय में रची विरासत


चमन महल की प्राचीन दीवारें जब सितार और तबले की अनुगूंज से आलोकित हुईं, तो पूरा परिसर मानो एक जीवंत धरोहर-चित्र बन गया, जहाँ इतिहास ध्वनियों की लय में साँस लेता हुआ प्रतीत हुआ। सांध्यकालीन मंद प्रकाश और हवाओं में घुली मिट्टी की सोंधी सुगंध के संग चमन महल का वातावरण एक ऐसे सुरलोक में बदल चुका था, जहाँ श्रोताओं की चेतना स्वरलहरियों में डूबने को अभिसारित कर रही थी।

कार्यक्रम का शुभारंभ आयुक्त, पुरातत्व एवं अभिलेखागार श्रीमती उर्मिला शुक्ला द्वारा कलाकारों के सम्मान के साथ हुआ। इस अवसर पर संचालक संस्कृति एन.पी. नामदेव एवं उप-संचालक डॉ. पूजा शुक्ला भी उपस्थित रहीं।

सभा की प्रथम प्रस्तुति सुप्रसिद्ध सितार वादक पंडित रवि चारी की रही, जो शास्त्रीय परंपरा की गंभीरता और आधुनिक संगीत सौंदर्य के संतुलित प्रतिनिधि माने जाते हैं। उन्होंने राग यमन के आलाप से कार्यक्रम का प्रारंभ किया- एक ऐसा राग जिसमें कोमलता, उज्ज्वलता और शांति का दिव्य संगम है। जैसे ही राग के प्रारंभिक स्वर प्रांगण में गूंजे, वातावरण में एक पवित्र निस्तब्धता उतर आई। आलाप, जोड़ और झाले की क्रमिक उन्मेष से उन्होंने सुरों की एक ऐसी सुरसरिता प्रवाहित की, जिसने श्रोताओं को भीतर तक स्पंदित कर दिया। उनके साथ युवा और कुशल तबला वादक रामेंद्र सिंह सोलंकी ने प्रभावपूर्ण संगत दी।

इसके पश्चात् मंच पर उभरा विश्व संगीत का रंगीन ताना-बाना, पंडित आदित्य कल्याणपुरकर के नेतृत्व में 'इस्क्रा फ्यूजन बैंड'। उस्ताद अल्ला रक्खां और उस्ताद जाकिर हुसैन की परंपरा से निकले आदित्य के साथ सारंगी पर उस्ताद दिलशाद खान, संतूर पर निनाद दायितरकर तथा कीबोर्ड पर अविनाश चंद्रचूड़ उपस्थित थे। भारतीय शास्त्रीय शैली को जैज़, अरेबिक और फोक संगीत से जोड़ते हुए उनकी प्रस्तुति ने चमन महल को एक वैश्विक संगीत मंच-सा रूप दे दिया।

उन्होंने भजन "जानकी नाथ सहाय करे..." से आरंभ कर, लयों के अनगिन रेशों को सुरीले ढंग से पिरोते हुए श्रोताओं को आनंद के रस में डुबो दिया। पंडित आदित्य द्वारा अपने गुरुओं को समर्पित तबला एकल विशेष रूप से प्रशंसित रहा। सभा के अंतिम दिवस रविवार को संध्या 6:30 बजे 'नाद ब्रह्मा' की फ्यूजन प्रस्तुति से कार्यक्रम का आरंभ होगा। इसके बाद अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त बांसुरी वादक पंडित राकेश चौरसिया अपनी मधुर बांसुरी से वातावरण को सुरमय करेंगे। समापन प्रस्तुति प्रख्यात तालवादक श्री सेल्वगणेश द्वारा होगी, जिनकी लयकारी भारतीय ताल परंपरा की गहराई और रोमांच को नई ऊँचाइयों तक ले जाती है।

पारंपरिक स्वाद और शिल्प ने बढ़ाया उत्सव का आनंद

संगीत के साथ-साथ मध्यप्रदेश के स्वाद और शिल्प की प्रदर्शनी भी आयोजन की महत्वपूर्ण आकर्षण बनी रही। भुट्टे का कीस, दाल बाफला, पोहा-जलेबी, रागी रोल, मिलेट स्प्रिंग रोल और मावा बाटी जैसे पारंपरिक व्यंजनों की सुगंध ने वातावरण में एक अलग ही मिठास घोल दी। परिसर में सजे हस्तशिल्पों में प्रदेश की पारंपरिक कारीगरी की बारीकियाँ झलक रही थीं, जो दर्शकों को देर तक रोक लेती थीं।

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