IAS संतोष वर्मा पर घिरा विवाद: बर्खास्तगी की मांग में अब ‘पोस्टकार्ड आंदोलन’

IAS संतोष वर्मा पर घिरा विवाद: बर्खास्तगी की मांग में अब ‘पोस्टकार्ड आंदोलन’
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कूटरचित दस्तावेजों के आधार पर आईएएस अवार्ड लेने वाले अधिकारी संतोष वर्मा की बर्खास्तगी की मांग को लेकर अभियान शुरू किया जाएगा। इसके तहत मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को प्रदेश के विभिन्न जिलों से पोस्टकार्ड भेजे जाएंगे। बेटियों पर बदजुबानी के बाद देशभर में हो रहे विरोध के बीच यह पहल मप्र कर्मचारी मंच के तत्वाधान में आगामी 8 दिसंबर से शुरू की जा रही है।

प्रदेश अध्यक्ष अशोक पांडे के अनुसार, वर्मा ने कूटरचित दस्तावेज प्रस्तुत करके कार्मिक मंत्रालय से आईएएस अवार्ड हासिल किया है। इसके बावजूद, पुलिस जांच रिपोर्ट के आधार पर सामान्य प्रशासन विभाग ने न तो उन्हें बर्खास्त करने और न ही पदावनति करने की आवश्यकता समझी। वहीं दूसरी ओर, उन्हें महत्वपूर्ण पदों पर पदस्थापना देकर खुलेआम भ्रष्टाचार की छूट भी दी गई।

बेटियों को लेकर दिए गए आपत्तिजनक बयान के बाद भी वह अपने पद पर बने हुए हैं। इस प्रशासनिक अराजकता को देखते हुए राज्य के अधिकारी-कर्मचारी भी आहत हैं। जिले–जिले से पोस्टकार्ड भेजकर मुख्यमंत्री के संज्ञान में लाते हुए कार्रवाई की मांग की जाएगी।

सरकार की सद्बुद्धि के लिए यज्ञ

आईएएस संतोष वर्मा की करतूत सामने आने के बाद भी सरकार के सकारात्मक रूख का अभाव देखकर अधिकारी-कर्मचारी हतप्रभ हैं। विरोध स्वरूप मंत्रालय परिसर में “सद्बुद्धि यज्ञ” कराने का प्रस्ताव है। इसमें मंत्रालय, विंध्याचल और सतपुड़ा भवनों में पदस्थ अधिकारी-कर्मचारियों की भूमिका अहम रहेगी।

तिथि निर्धारण को लेकर विचार-विमर्श जारी है। इस दौरान गोस्वामी तुलसीदास कृत श्रीरामचरित मानस के सुंदरकांड का पाठ भी किया जाएगा।

मुख्य मांगें

फर्जी दस्तावेजों पर एफआईआर दर्ज की जाए।

पदावनति और निलंबन की कार्रवाई की जाए।

सरकार केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय से बर्खास्तगी की सिफारिश करे।

इस अवधि में लिये गए वेतन–भत्तों की रिकवरी कराई जाए।

कार्रवाई होती तो चार साल पहले पदावनत हो जाते वर्मा

आईएएस वर्मा ने भले ही 2010 में दस्तावेजों में हेराफेरी कर शासन को गुमराह करते हुए पदोन्नति ले ली थी, लेकिन इंदौर के जज बृजेंद्र सिंह रावत द्वारा 2021 में दर्ज कराई गई एफआईआर और उसके बाद हुई पुलिस जांच में इनकी ओर से किए गए फर्जीवाड़े की पुष्टि हो गई थी।सामान्य प्रशासन विभाग को भी इसकी जानकारी भेजी गई थी। यदि जिम्मेदार अधिकारी कार्रवाई से नहीं बचते, तो वर्मा चार साल पहले ही पदावनत हो जाते और धोखाधड़ी के आरोप में जेल भी जा सकते थे।

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