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भारत जागृत था, जागृत है और आगे भी रहेगा

चार दिवसीय बौद्धिक महाकुंभ लोकमंथन 2018 का समापन

भारत जागृत था, जागृत है और आगे भी रहेगा
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रांची/स्वदेश वेब डेस्क। लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने कहा कि प्रज्ञा प्रवाह का मतलब ही है कि प्रज्ञा का प्रवाह निरंतर चलता रहे। इससे विचारों का मंथन सामने आयेगा। इस प्रवाह में आसपास की सभी चीजें मिलती रहेंगी। भारत की अवधारणा, समाज और समाज का मन क्या कहता है, इस पर यहां चार दिनों तक गहन मंथन किया गया। यह पुनर्निर्माण की एक पहल है। इसमें चिंतक, कर्मशील और कई गणमान्य विद्वानों ने अपने विचार रखे। इस कार्यक्रम में वाद-संवाद हुआ जिससे कुछ बोध समाज के लिए निकलकर सामने आया है।

श्रीमती महाजन रविवार को लोकमंथन 2018 के समापन समारोह को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए कहा कि गणतंत्र में हमें खुद की रक्षा करनी है। इसके लिए हमें काबिल बनना होगा। युद्ध के वक़्त हमें सैनिक को कैसे मदद करनी है, यह भी सोचने की जरूरत है। जब समाज खड़ा होता है तो देश आगे बढ़ता है। लोकसभा अध्यक्ष ने विश्वास जताते हुए कहा कि भारत जागृत था, जागृत है और आगे भी जागृत रहेगा। बस जरूरत है हमारी युवा पीढ़ी को सही दिशा देने की। समापन समारोह में लोकमंथन आयोजन समिति के अध्यक्ष व झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास, विशिष्ठ अतिथि झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष प्रो दिनेश उरांव, झारखंड के कला संस्कृति मंत्री अमर बाउरी, प्रज्ञा प्रवाह के राष्ट्रीय संयोजक जे नंदकुमार, रांची के मेयर आशा लकड़ा, सीयूजे झारखंड के कुलपति प्रो. नंदकुमार इंदू, आयोजन समिति के सह संयोजक राजीव कमल बिट्टू, प्रसिद्ध चिंतक व साहित्यकार देवी सहाय पांडेय और कला संस्कृति विभाग के सचिव मनीष रंजन मंच पर उपस्थित थे। मंच संचालन प्रज्ञा प्रवाह के प्रदेश संयोजक मयंक रंजन ने किया। इस मौके पर आरएसएस के सह कार्यवाह दतात्रेय होसबोले, प्रज्ञा प्रवाह के उत्तर पूर्व क्षेत्र यूपी, बिहार और झारखंड के संयोजक रामाशीष सिंह सहित झारखंड सरकार के कई मंत्री, सांसद, विधायक सहित करीब डेढ़ हजार लोग मौजूद थे।

कुंभ का वास्तविक स्वरूप लोकमंथन

श्रीमती महाजन के कहा, प्रज्ञा प्रवाह विचार का एक महाकुंभ है। कुंभ का वास्तविक स्वरूप लोकमंथन है। कुंभ की परिकल्पना क्यों, इस सवाल का जवाब जब मैंने रामकृष्ण मिशन के स्वामी आत्मानंद जी पूछा तो उन्होंने कहा कि साधु रमता जोगी है। वह घूमता रहता है। देश को देखता है। समाज में क्या चल रहा है उसे समझता है और कुंभ में वही साधु एक नदी के किनारे इकट्ठे होकर विचार-विमर्श करते हैं कि अगले 12 वर्षों में क्या कुछ होगा और क्या कुछ होना चाहिए। तब मुझे महसूस हुआ कि इस तरह का मंथन होते रहना चाहिए।

आरक्षण जरूरी, पर उसका उद्देश्य भी पूरा होना चाहिए

लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि कमजोर तबके के लिए हमारे देश में आरक्षण की बहुत ही अच्छी व्यवस्था है। मैं इसका समर्थन करती हूं। यह होना भी चाहिए। लेकिन, इस आरक्षण का लाभ जब व्यक्ति उठा लेता है तो उसे यह सोचना चाहिए कि हमने समाज को क्या दिया। समाज के लिए क्या किया क्योकिं आरक्षण का लाभ लेने के बाद समाज के प्रति उसका भी दायित्व बढ़ जाता है। उन्होंने कहा, डॉ. भीम राव अंबेडकर ने मात्र दस वर्ष के लिए आरक्षण की व्यवस्था दी थी। उनकी कल्पना थी कि 10 वर्ष बाद इसकी जरूरत नहीं होगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मैं साक्षी हूं कि हर 10 वर्ष में इस आरक्षण को अगले 10 वर्ष के लिए तो कभी 20 साल के लिए बढ़ा दिया जाता है।

देश के विकास के प्रति अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन करें युवा

महाजन ने युवाओं से आह्वान करते हुए कहा कि वे देश और विदेश के महान व्यक्तियों के बारे में पढ़ें-जाने। उन्होंने कहा कि जब मैंने इन महान व्यक्तियों के बारे में पढ़ा तो जाना की युवाओं का महत्व देश निर्माण में कितना महत्वपूर्ण होता है। आज देश को जागृत करने की जरूरत है। इसलिए मैं युवाओं से आग्रह करती हूं कि वे अपने देश की संस्कृति, परंपरा और आर्दश को जाने और उससे सीख लेते हुए देश के विकास के प्रति अपने उत्तरदायित्व निर्वहन करे। महाजन ने कहा कि लोकमंथन के उद्घाटन सत्र में उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने कहा था कि राष्ट्र पहली प्राथमिकता है। संसद में जो लोग आते हैं वो देश के बारे में सोचने वाले लोग हैं। वे पॉलिसी मेकर हैं । संसद में जब बहस होती है तो अंत में देश के लिए कुछ बेहतर हो यह सभापति के रूप में मुझे सोचना होता है। और वैसी स्थिति के लिए लोकमंथन जैसे मंच पर आना बहुत ही जरूरी होता है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। सरकार क्या है इसे समझने की जरूरत है। इसलिए जन का मन और गण का मन बनना जरूरी है।

देश की अस्मिता के लिए हर भारतीय का भाव एक होना चाहिए

महाजन ने कहा, लोकमंथन के दौरान चार दिनों में महत्वपूर्ण चर्चा हुई है। उन्होंने कहा कि साहित्य और इतिहास को जानना बहुत जरूरी है। पिछले दिनों मैं नालंदा गयी थी। वहां विश्व भर से लोग आते थे अध्ययन के लिए, लेकिन उसका अस्तित्व मिट गया था । यह क्यों हुआ, इस पर भी विचार होना चाहिए। हर भारतीय के लिए उसकी अस्मिता और उसका भाव एक होना चाहिए। उन्होंने कहा कि कांवर यात्रा पहले भी होती थी। लेकिन आज उसका स्वरूप बदल गया है। हम कहते हैं कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है, लेकिन इसे सिर्फ कहें नहीं, इसे जानना भी जरूरी है।

स्त्री-पुरुष रथ के समान, स्त्री सारथी है तो पुरुष पराक्रमी

महाजन ने कहा, लोकमंथन के एक सत्र में स्वामी नरसिम्हा ने कहा कि हमारे देश में लोग नारी पूजा तो करते हैं, लेकिन नारी का सम्मान नहीं करते । यह सत्य है। हम हमेशा नारी की ओज की बात तो करते है, लेकिन व्यवहारिकता में ऐसा नहीं होता। नारी अगर पीछे रह गयी तो समाज आगे नहीं बढ़ सकता। स्त्री को पुरुष नहीं बनाना है। स्त्री पुरुष की समानता होनी चाहिए। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि मौसी केलकर हमेशा कहती थीं कि स्त्री पुरुष एक रथ के पहिये हैं, लेकिन स्त्री रथ की सारथी है जो पुरुष को सही दिशा में ले जाने की कहती है। स्त्री रथ को आगे ले जाती है और फिर पुरुष से कहती है अब अपना पराक्रम दिखाओ। जब ऐसा होने लगेगा तो समाज सही दिशा में जायेगा।

आदिवासी सांस्कृतिक रूप से समृद्ध, पर आर्थिक स्थिति कमजोर

समापन समारोह में सुमित्रा महाजन ने कहा, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने इसी लोकमंथन के सत्र में बताया कि आदिवासी सांस्कृति और पारंपरिक रूप से समृद्ध हैं , लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर है। अत: हमें उनकी स्थिति पर सोचना होगा। उनकी संस्कृति को साथ ले कर चलते हुए उनको सशक्त बनाना होगा।

राष्ट्रीयता का भाव जागृत होना जरूरी, पर हम इसे भूल रहे हैं

महाजन ने कहा कि इस मंथन में अलग-अलग मत आये। डेविड फ्रॉले ने कहा कि भारत आज उदासीन है। आज हम सामाजिक समरसता की बातें करते हैं। जब समरसता की बात होती है तो हमें आत्मचिंतन करने की जरूरत है। इस चिंतन में समाज का हर वर्ग शामिल है। उन्होंने कहा कि एक समय था जब गुलाम थे तो सरकार का विरोध था। लेकिन अब यह हमारी सरकार है। हमने चुनी है यह सरकार। हर सामान्य व्यक्ति ने अपना मत दिया है। आज जब भी आंदोलन होता है तो सरकारी संपत्ति का नुकसान किया जाता है। लेकिन, हमे सोचना होगा कि सरकारी संपत्ति हमारी है। हमारे टैक्स के पैसे उसे तैयार किया गया है। इसलिए सरकारी संपत्ति का नुकसान हमारा नुकसान है। इसका भी ध्यान रखना होगा। इसके लिए हम सभी में राष्ट्रीयता का भाव जागृत होना जरूरी है, पर आज हम इस भाव को भूल रहे हैं।

जब तक हम जागृत नहीं होंगे , देश का विकास नहीं होगा

लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि हाल ही में इंग्लैंड गयी थी। म्यूजियम में हम भारत की चीजें देख रहे थे। जब कोहिनूर पर नजर पड़ी तो नजदीक से उसे देखने लगी। तभी वहां के गार्ड ने मुझे इशारा करते हुए कहा कि आप थोड़ा पीछे होकर देखेंगी तो यह और चमकता हुआ दिखेगा। इस पर मैंने कहा, यह हमारा है। तब उसने कहा कि ये आपका तो था, लेकिन इस कोहिनूर को आपलोग संभाल कर नहीं रख सकीं। इसलिए अब हमें जागरूक होने की जरूरत है। जब तक हम जागृत नहीं होंगे देश का विकास नहीं होगा।

जीवन में जो मिला है उससे ज्यादा दान देना ही भारतीय संस्कृति

लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि भारत और यहां की सरकार अलग-अलग नहीं है। अभी जीएसटी की चर्चा हो रही है। जब मैं व्यापारियों के बीच जाती हूं तो कहती हूं कि क्या हम सरकार को पूरा टैक्स दे रहे हैं। भारतीय संस्कृति कहती है कि जो आपको जीवन में मिला है उससे ज्यादा आप दान में दें। उन्होंने कहा कि गाय हमारी माता है। अपना अनुभव साझा करते हुए कहा, दुध दुहने के बाद गाय सड़क पर छोड़ दी जाती हैं। दिन भर इधर-उधर भटकने और डंडे खाने के बाद शाम में अपने घर आ जाती है, लेकिन इस स्थिति को बदलना होगा। गाय के लिए बेहतर व्यवस्था की जानी चाहिए। लेकिन यह सिर्फ सरकार के भरोसे संभव नहीं है। हम सभी को मिल कर इसमें सुधार करना होगा। सामाजिक व्यवस्था का ख्याल रखने का काम सिर्फ सरकार का नहीं है। हम जब प्रजातंत्र में जी रहे हैं और आगे भी जीना चाहते हैं तो हमे सरकार के साथ अपने कर्तव्य बोध का अहसास भी होना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत मे विवाह संस्कार होता है। एक विवाह में 12 बलुटेदारों को काम मिलता है। पहले जब विवाह संस्कार होता था तो पास में चलने वाले विद्या सनातन में एक वर्ष का अनाज देना होता था।

Updated : 30 Sep 2018 9:46 PM GMT
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Swadesh Digital

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