जंगली हाथियों की आबादी पर मंडराता संकट

हाल ही में जंगली हाथियों पर डीएनए आधारित जनगणना के नतीजे सामने आए हैं। ये परिणाम सुखद नहीं बल्कि चिंताजनक हैं। भारत के जंगलों में हाथियों की आबादी तेजी से घट रही है। यदि यह रफ्तार ऐसे ही बनी रही, तो भविष्य में जंगलों से हाथियों की गर्जना भी शांत हो सकती है।
यह रिपोर्ट पर्यावरणविदों की उन चेतावनियों को भी पुष्ट करती है, जिनमें उन्होंने लंबे समय से केंद्र और राज्य सरकारों से हाथियों को बचाने की मांग की थी। जंगली हाथियों की आबादी में बड़े पैमाने पर गिरावट होना स्पष्ट रूप से सरकारी तंत्र की विफलता दर्शाता है।गणना पूरी तरह आधुनिक तकनीकों से की गई है। इसमें प्रत्येक हाथी को उसके जेनेटिक सिग्नेचर के आधार पर पहचाना गया। इसे दुनिया की पहली व्यापक डीएनए आधारित हाथी गणना कहा जा रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार, सबसे ज्यादा हाथी कर्नाटक में हैं—6,013। इसके बाद असम में 4,159, तमिलनाडु में 3,136, केरल में 2,785, उत्तराखंड में 1,792 और ओडिशा में 912 हाथी बचे हैं। उत्तराखंड के तराई क्षेत्र और हिमाचल प्रदेश में हालात बहुत खराब हैं।इस गणना में यह पाया गया कि किसी भी हाथी प्रजाति में गिरावट दर्ज नहीं हुई हो—ऐसा कोई मामला नहीं है। पिछले आठ वर्षों में भारत में हाथियों की संख्या लगभग 25 प्रतिशत घट गई है। जंगलों में रहने वाली अन्य कई जंगली प्रजातियों की तरह हाथियों की संख्या भी लगातार कम हो रही है।
हाथियों के रहने के स्थान लगातार कम हो रहे हैं। जंगलों का टुकड़ों में बंटना, गलियारों का कटना और इंसानों के साथ टकराव उनकी आबादी को और प्रभावित कर रहा है। कई बार हाथी खेतों और आवासीय क्षेत्रों में चले जाते हैं और शिकारियों के चंगुल में फंस जाते हैं। कुछ महीने पहले असम से ऐसी खबर आई थी कि दर्जनों हाथी रेलवे पटरी पर आकर मारे गए।
केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की पिछली गणना 2017 में हुई थी, जिसमें कुल 29,964 हाथी बताए गए थे। वहीं, नई गणना में संख्या घटकर 22,446 रह गई है। यानी पिछले आठ वर्षों में करीब साढ़े सात हजार हाथी कम हो गए।हाथियों की घटती आबादी जंगलों के सिकुड़ते आकार और इंसानों के बढ़ते हस्तक्षेप का स्पष्ट संकेत देती है। असम के जंगलों में अवैध शिकार अब भी बड़े स्तर पर जारी है। हाथियों के दांत और शरीर के अन्य अंग अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारी मांग में हैं, जिससे तस्करी होती है। कई बार इसमें वनकर्मियों की मिलीभगत भी सामने आती है।
वैश्विक स्तर पर भी हाथियों की आबादी तेजी से घट रही है। वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की नई डीएनए आधारित गणना इस गिरावट की पुष्टि करती है। पूर्व में पारंपरिक तरीके—जैसे हाथियों को देखकर या उनके प्रजनन के आधार पर अनुमान—उतने सटीक नहीं होते थे।अफ्रीका में ‘सवाना हाथियों’ की संख्या में लगभग एक तिहाई की कमी आ चुकी है। कुल मिलाकर, वैश्विक हाथियों की आबादी में औसतन 77 प्रतिशत की गिरावट हुई है। तीन दशक पहले 37 देशों के 475 स्थलों पर किए गए सर्वेक्षण में भारतीय जंगल भी शामिल थे, जहां भी गिरावट दर्ज की गई थी।
हालांकि, अभी भी भारत में हाथियों की संख्या अपेक्षाकृत अधिक है। पश्चिमी घाट में 11,934 हाथी हैं, जबकि 2017 में यह संख्या 14,587 थी। उत्तर-पूर्वी पहाड़ियों और ब्रह्मपुत्र के मैदानों में 6,559 हाथी हैं, जो 2017 के 10,139 से कम हैं। मध्य भारत और पूर्वी घाट में कुल 1,891 हाथी बचे हैं।अभी भी हाथियों को बचाया जा सकता है, लेकिन इसके लिए तत्काल और प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता है।
(लेखक भारत सरकार के राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान के सदस्य हैं)
