आतंक का नया चेहरा ज्यादा खतरनाक

दिल्ली के लालकिले के पास सोमवार को हुए बम धमाके ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। इस भीषण विस्फोट में अब तक 13 निर्दोष नागरिक अपनी जान गंवा चुके हैं, जबकि 21 से अधिक लोग घायल अवस्था में अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष कर रहे हैं। प्रारंभिक जांच में यह स्पष्ट हो चुका है कि यह कोई सामान्य आतंकी वारदात नहीं थी, बल्कि एक सुनियोजित आत्मघाती हमला था, जिसे डॉ. उमर उन नबी ने अंजाम दिया।
यह तथ्य अपने आप में भयावह है कि अब आतंक का चेहरा केवल बंदूकधारी या पहाड़ों में छिपे चरमपंथियों का नहीं रह गया है, बल्कि वह अब शिक्षित वर्ग के भीतर भी घर कर रहा है।
जांच एजेंसियों के अनुसार, डॉ. उमर का संबंध फरीदाबाद में सक्रिय एक आतंकी समूह से था, जिसके पास हाल ही में पुलिस ने 2,900 किलो अमोनियम नाइट्रेट बरामद किया था। इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटक किसी छोटे लक्ष्य के लिए नहीं, बल्कि बड़े विनाश की योजना के लिए जुटाया गया था। यह संयोग नहीं कहा जा सकता कि उसी बरामदगी के कुछ घंटों के भीतर दिल्ली में धमाका हुआ।
इससे यह भी संकेत मिलता है कि आतंकवादी नेटवर्क न केवल योजनाबद्ध ढंग से काम कर रहा था, बल्कि उसके सदस्य समाज के उस तबके से आए थे, जिन पर आमतौर पर शक करना कठिन होता है — डॉक्टर, शिक्षक, विश्वविद्यालय से जुड़े लोग। इस मॉड्यूल की भयावहता इस बात में निहित है कि आतंक अब 'व्हाइट कॉलर' रूप में सामने आ रहा है।
डॉक्टरों का पेशा जहां जीवन बचाने का प्रतीक माना जाता है, वहीं उन्हीं हाथों का मौत का औजार बन जाना समाज की नैतिकता और मानवता दोनों पर गहरी चोट है। अलफलाह यूनिवर्सिटी का इस्तेमाल 'कवर' की तरह करना, डॉक्टरों को आतंकी मॉड्यूल में शामिल करना, और महिला डॉक्टर शाहीन की कार से AK-47 जैसी घातक राइफल का बरामद होना — ये सारे तथ्य इस नए खतरे की गंभीरता को रेखांकित करते हैं।
देश के गृहमंत्री अमित शाह ने घटनास्थल का दौरा कर जांच एजेंसियों को सख्त निर्देश दिए हैं कि इस षड्यंत्र की जड़ तक पहुंचा जाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कहना कि "जो भी लोग इसके लिए जिम्मेदार हैं, उन्हें किसी भी कीमत पर नहीं बख्शा जाएगा," न केवल दृढ़ संकल्प का संदेश देता है, बल्कि देश के हर नागरिक की भावना को भी व्यक्त करता है।
यह घटना हमें चेतावनी देती है कि आतंक अब सिर्फ सीमाओं के पार से नहीं आता, वह हमारे समाज की परतों में भी रिस रहा है। यह 'ब्रेनवॉश' किया गया शिक्षित तबका न केवल अधिक खतरनाक है, बल्कि इसकी पहचान करना भी कहीं कठिन है।
सुरक्षा एजेंसियों को अब पारंपरिक जांच सीमाओं से आगे बढ़कर सायबर नेटवर्क, विश्वविद्यालय परिसरों और पेशेवर समूहों में निगरानी तंत्र को मजबूत करना होगा। लालकिले के पास हुआ यह हमला सिर्फ एक विस्फोट नहीं था, बल्कि हमारे विश्वास और सामाजिक ताने-बाने पर किया गया प्रहार था।
देश को इस दर्दनाक घटना को केवल एक समाचार की तरह नहीं देखना चाहिए, बल्कि इसे चेतावनी के रूप में समझना चाहिए कि आतंक अब हमारे बीच भी छिप सकता है — पढ़े-लिखे, सुसंस्कृत चेहरों के पीछे। देश इन बेगुनाहों की हत्या का हिसाब मांग रहा है, और यह हिसाब केवल अपराधियों की गिरफ्तारी से नहीं, बल्कि आतंक की इस नई सोच को जड़ से मिटाने से पूरा किया जा सकता है।
