वंदेमातरम् के गौरवशाली 150 वर्ष

यह हमारे लिए बेहद गौरवशाली पल है जब हम आज देशभर में “आन, बान, शान – वंदेमातरम्” के 150 वर्ष मना रहे हैं। यह राष्ट्रगीत है, जिसे गाकर भारत के क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी हुकूमत का सीना तानकर न सिर्फ विरोध किया बल्कि हंसते-हंसते कुर्बानी भी दी। यही कारण है कि यह गीत आज भी हमारी रगों में सिहरन पैदा कर देता है। इसे गाकर भारतीयों का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है।
सात नवंबर 1875 को, अक्षय नवमी के अवसर पर, बंकिमचंद्र चटर्जी ने राष्ट्रीय गीत “वंदेमातरम्” की रचना की थी। वंदेमातरम् पहली बार साहित्यिक पत्रिका ‘बंगदर्शन’ में चटर्जी के उपन्यास “आनंदमठ” के एक भाग के रूप में प्रकाशित हुआ था। वंदेमातरम् कभी देश की आज़ादी के आंदोलनकारियों का अमर वाक्य रहा है। आज भी यह मातृभूमि के प्रति हमारे अटूट प्रेम की निशानी है।
राष्ट्रगान “जन गण मन” के रचनाकार रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे संगीत के सुरों में पिरोया था। एक कविता से राष्ट्रीय गीत बनने की वंदेमातरम् की यात्रा कभी न भूलने वाली है। वंदेमातरम् का इतिहास अपने आप में देशवासियों का सीना गर्व से ऊंचा करने वाला है। अरबिंदो ने 16 अप्रैल 1907 को अंग्रेजी दैनिक ‘वंदेमातरम्’ में एक लेख में बताया था कि बंकिमचंद्र चटर्जी ने 32 साल पहले, यानी 1875 में, इस अमर गीत को लिखा था।
किताब के रूप में प्रकाशित होने से पहले, “आनंदमठ” बंगाली मासिक मैगजीन ‘बंगदर्शन’ में धारावाहिक “वंदेमातरम्” के रूप में प्रकाशित हुआ था। देश की स्वतंत्रता के अहम किरदारों में मैडम भीकाजी कामा ने 1907 में पहली बार भारत के बाहर, स्टटगार्ट (जर्मनी) में, तिरंगा झंडा फहराया, जिस पर वंदेमातरम् लिखा था।
आजादी की लड़ाई के दौरान, पश्चिम बंगाल के रंगपुर इलाके के एक स्कूल में नवंबर 1905 में 200 छात्रों पर वंदेमातरम् गाने पर 5-5 रुपए का जुर्माना लगाया गया, तो अंदर ही अंदर सुलग रही चिंगारी शोलों में बदल गई। यह ब्रिटिश हुकूमत के विरोध का प्रतीक बन गया। वंदेमातरम् गाने को रोकने के लिए जगह-जगह इंस्पेक्टर तैनात किए गए।
महाराष्ट्र के धुलिया इलाके में नवंबर 1906 में हुई एक बड़ी सभा में वंदेमातरम् के नारे लगे, तो ब्रिटिश सरकार की चूलें हिल गईं। लोकमान्य तिलक को मांडले जेल भेजे जाने के दौरान भी सैकड़ों आंदोलनकारियों ने यही गीत गाया, तो पुलिस ने लाठीचार्ज और गिरफ्तारियाँ कीं। कलकत्ता में हर रविवार वंदेमातरम् गाते हुए प्रभातफेरी निकाली जाती थी। इस दौरान रवींद्रनाथ टैगोर भी कई बार शामिल हुए।
देशभर में इस राष्ट्रीय गीत को एक वर्ष तक उत्सव की तरह मनाया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में राष्ट्रगीत “वंदेमातरम्” के 150 साल पूरे होने पर सालभर चलने वाले स्मरणोत्सव कार्यक्रम का उद्घाटन किया। इसके साथ ही उन्होंने एक स्मारक डाक टिकट और सिक्का भी जारी किया।
श्री मोदी ने अपने संबोधन में कहा
“वंदेमातरम्, यह शब्द एक मंत्र है, एक ऊर्जा है, एक स्वप्न है, एक संकल्प है। वंदेमातरम्, यह शब्द मां भारती की सावना है, मां भारती की आराधना है। वंदेमातरम्, यह शब्द हमें इतिहास में ले जाता है। यह हमारे वर्तमान को नए आत्मविश्वास से भर देता है और हमारे भविष्य को नया हौसला देता है कि ऐसा कोई संकल्प नहीं जिसकी सिद्धि न हो सके, ऐसा कोई लक्ष्य नहीं जिसे हम भारतवासी पूरा न कर सकें।”
