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हर साल चावल के समान बढ़ता है शिवलिंग

-शल्लेश्वर मंदिर के गर्भ में छिपा है महाभारतकालीन इतिहास

हर साल चावल के समान बढ़ता है शिवलिंग
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हमीरपुर। उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में शल्लेश्वर शिव मंदिर का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है जहां स्थापित शिवलिंग हर साल चावल के समान बढ़ती है। सोमवार को दूरदराज से बड़ी संख्या में कांवड़ियों ने आकर जलाभिषेक किया। यह मंदिर महाभारतकाल से भी जुड़ा है।

जिले के सरीला कस्बे में शल्लेश्वर मंदिर का वैभव सैकड़ों साल पुराना है। यहां किसी जमाने में सरीला रियासत होती थी। यह जिले का सबसे पिछड़ा क्षेत्र है जिसे लोग महाभारत काल से जुड़ा मानते हैं। शल्लेश्वर मंदिर के गर्भ में एक लम्बा इतिहास छिपा है। बुन्देलखंड का इतिहास महाभारत काल से माना जाता है। उस जमाने में सोलह जनपद हुआ करते थे जिसमें एक जनपद चेदि के नाम से विख्यात था। अब इसे बुन्देलखंड के नाम से भी जाना जाता है। चेदि महा जनपद की राजधानी शुक्तिमती थी। प्राचीनतम राजा शिशुपाल इस जनपद के ही थे जिन्हें श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से मौत की सजा दी थी। चेदि, प्रदेश का छोटा हिस्सा सरीला है जिसमें अति प्राचीनतम शिवलिंग शल्लेश्वर मंदिर में स्थापित है। यहां के इतिहासकार डा.भवानीदीन के मुताबिक शल्लेश्वर धाम सरीला में प्राचीनतम शिवलिंग है जहां बने मठ को देखने से यहीं प्रतीत होता है कि इसका निर्माण गुप्तकाल एवं चंदेल काल के मध्य हुआ है। भगवान शिव के शिवलिंग को देखने से स्पष्ट होता है कि इसका चंदेल काल के पहले निर्माण हुआ है। मठ में भी गुंबद दीवाल होने के कारण यह चंदेल कालीन प्रतीत होता है। सरीला स्टेट की वंशावली महाराज छत्रसाल से प्रारम्भ हुई थी जो आज भी सरीला स्टेट हमीरपुर की एक तहसील है। सरीला के महेन्द्र सिंह राजपूत ने बताया कि बुन्देलखंड में गुप्तकाल को स्वर्ण युग माना गया है। गुप्तकाल में इस क्षेत्र में मंदिरों, गुफाओं और वस्तुकला का उदय हुआ था वहीं उससे पहले मंदिरों का उल्लेख नहीं मिलता है। बुन्देलखंड क्षेत्र में मंदिरों का निर्माण गुप्तकाल में शुरू हुआ था और चंदेलकाल तक उसका विस्तार चरम पर था। बुन्देलखंड में चंदेलों का साम्राज्य नौंवी शताब्दी में स्थापित हुआ था। चंदेल में प्रथम राजा चन्द्रवर्धन थे जो चन्द्रवंशी क्षत्रिय थे। इस क्षेत्र में सर्वाधिक ज्यादा मंदिरों का निर्माण चंदेलकाल में हुआ था। राजा परमलाल सन 1202 में कुतुद्दीन एबक से पराजित होकर कालिंजर पलायन कर गये थे। बाद में यह क्षेत्र मुस्लिम शासकों के आधीन हो गया था। सावन के सोमवार को तड़के से ही शिवलिंग का जलाभिषेक करने के लिये श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। दूरदराज से कांवडिय़ों के शिवलिंग के दर्शन करने का दौर भी जारी है। इस मंदिर में शिवपुराण का आयोजन भी किया गया है।

क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी झांसी डा.एसके दुबे ने बताया कि इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग के गर्भ में प्राचीनतम इतिहास छिपा होगा मगर यह अभी पुरातत्व के हाथ में नहीं आया है। हमीरपुर जिले में कछवा कला व सुमेरपुर सहित कुछ धरोहरें पुरातत्व के आधीन है। जिनके संरक्षण के लिये कार्यवाही चल रही है।

आज भी रहस्य बनी है शिलालेख की भाषा

मंदिर की देखरेख करने वाले हरगोविन्द राजपूत का कहना है कि शल्लेश्वर मंदिर के गर्भ में विशालकाय शिवङ्क्षलग स्थापित है जिसकी तुलना लोधेश्वर, कोटेश्वर सहित कई मंदिरों से की जाती है। मंदिर के प्रवेश करते ही दीवाल में देवनगरी में एक शिलालेख है जिसकी भाषा कोई नहीं समझ सका है। शिलालेख में संवत 1200 लिखा है। इसी में शिल्लसेन प्रवर्धिता का भी लिखा शिलालेख लगा है जिसका अर्थ कोई नहीं समझ पाया।

सरीला के लोगों ने बताया कि इस मंदिर का विस्तार 862 साल पहले हुआ था। कई दशक पहले शिलालेख की भाषा पुरातत्व विभाग को भेजी गयी थी जिसमें यह बात सामने आयी कि राजा परमलाल के पहले शिल्लेसन राजा ने इस मंदिर का विस्तार कराया था। इस मंदिर के पास ही तालाब किनारे शल्हऊ कुआं भी है जिसका कनेक्शन इस मंदिर से है। ऐसा मानना है कि कुयें का पानी पीने से चर्मरोग ठीक हो जाता है।

बिना सरिया मौरंग सीमेंट से बना है मंदिर

सरीला क्षेत्र के लक्ष्मीनारायण मिश्रा ने बताया कि शल्लेश्वर मंदिर में लोहे की सरिया, मौरंग व सीमेंट का इस्तेमाल नहीं किया गया है। यह कंकरीट और चूने से बना है जिसकी मजबूती बेमिसाल है। यह मंदिर चंदेलकालीन तैलीय पत्थर से निर्मित है। समय-समय पर स्थानीय लोगों की मदद से इस मंदिर को आधुनिक रूप देने का काम किया गया है। महेन्द्र राजपूत की मानें तो मंदिर का शिवलिंग हर साल चावल के समान बढ़ता है।

Updated : 6 Aug 2018 10:47 AM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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